आखिलेश यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही समाजवादी पार्टी में मुलायम युग का अंत लगभग हो चुका है. अब उनकी पार्टी में भूमिका एक संरक्षक के रूप में ही है जिसे राजनीति में संन्यास के रूप में देखा जाता है.
अखिलेश के पार्टी सुप्रीमो बनते ही एक नई परम्परा की भी शुरुआत हुई है जिसे पॉलिटिकल पंडित कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह देख रहे हैं. दरअसल यह वही मुलायम सिंह यादव हैं जिन्होंने करीब 27 साल पहले कांग्रेस को उत्तर प्रदेश से उखाड़ फेंका था. वे मुलायम ही थे जिन्होंने कांग्रेस की परंपरागत वोट बैंक (मुसलमान) में सेंध लगाकर समाजवादी पार्टी को खड़ा किया. इतना ही नहीं उन्होंने मुसलमानों के सामने एक विकल्प भी पेश किया और कई बार सत्ता में पहुंचे.
मुसलमानों में उनकी पैठ यहां तक हो चुकी थी कि उन्हें 'मुल्ला मुलायम' का तमगा भी मिला था, लेकिन अब अखिलेश ने कांग्रेस से गठबंधन कर कहीं न कहीं कांग्रेस को प्रदेश में पैर फैलाने का मौका दे दिया है. इतना ही नहीं यह पहली बार है जब सपा प्रदेश में एक राष्ट्रीय पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है. जानकारों का कहना है कि इस गठबंधन का फायदा समाजवादी पार्टी को कितना होगा उसका पता तो 11 मार्च को चलेगा लेकिन कांग्रेस इससे सबसे ज्यादा लाभान्वित होगी.
लेकिन अब अखिलेश यादव ने कांग्रेस से गठबंधन कर एक बार फिर कांग्रेस को संजीवनी देने का काम किया है. गठबंधन के तहत कांग्रेस 105 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यह स्थिति कांग्रेस के लिए काफी पॉजिटिव है क्योंकि उसकी निगाहें 2019 के लोकसभा चुनावों पर है. इसके अलावा जिस तरह से देश के अन्य राज्यों से कांग्रेस का सफाया हो रहा है ऐसे में वह अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं थी. यही वजह था कि कांग्रेस सपा से गठबंधन की आस लगाए बैठी थी. बिहार में भी उसे गठबंधन का फायदा मिला था. पार्टी ने वहां 41 में से 27 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि 2010 में कांग्रेस के पास महज चार सीटें थीं.
2012 में रालोद से गठबंधन की वजह से मिली थी 28 सीटें
2012 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने रालोद से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था जिसकी वजह से उसकी झोली में 28 सीटें आईं थीं. इतना ही नहीं उसका वोट शेयर 11.63 फ़ीसदी रहा. इसके अलावा उसके 31 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे जबकि तीसरे स्थान पर 87 और चौथे नंबर पर 122 उम्मीदवार थे. पांचवे स्थान पर 62 और छठे स्थान पर 22 उम्मीदवार थे.
इन आंकड़ों को अगर देखें तो कांग्रेस कहीं से भी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं थी. ऐसे में उसे समाजवादी पार्टी का सहारा चाहिए था. इतना ही नहीं कांग्रेस की हालत ऐसी थी कि अगर गठबंधन नहीं होता तो उसके पास कई सीटों के लिए उम्मीदवार तक नहीं थे.
अब अगर 2014 लोकसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस को 7.5 फ़ीसदी वोट ही मिले थे और पार्टी सिर्फ दो सीट ही जीत सकी थी. ऐसे में कांग्रेस को यह लग रहा था कि अगर वह अकेले चुनाव लड़ती है तो उसके लिए दहाई का आंकड़ा भी पार करना मुश्किल होगा.
अखिलेश की बैसाखी से कांग्रेस जीतना चाहती है ज्यादा सीटें
दरअसल अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर कांग्रेस पार्टी तकरीबन 70-80 सीटों पर जीत दर्ज करना चाहती है. जिससे उसे 2019 के लोकसभा में चुनाव में अपनी संख्या बढ़ाने में मदद मिले. यही वजह है कि उसने अपनी पहली लिस्ट में उसने पूर्व सांसदों को टिकट दिया है. पहली लिस्ट में पूर्व सांसद जितिन प्रसाद को तिलहर से टिकट दिया है जबकि मुरादनगर से पूर्व सांसद सुरेन्द्र गोयल को भी टिकट दिया गया है. उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाली लिस्ट में भी कई दिग्गजों को टिकट मिल सकता है.
23rd January, 2017