नई दिल्ली-- नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के घर सोमवार रात चोरी हो गई। बदमाश ताला तोड़कर उनके घर में घुसे और नोबेल पुरस्कार का सर्टिफिकेट भी ले गए। जानकारी के मुताबिक, सत्यार्थी एक प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए बोगोटा (लैटिन अमेरिका) गए हैं। चोरों ने गहने और कई महंगे सामान भी चुरा लिए। घटना का खुलासा मंगलवार को हुआ, पुलिस और फोरेंसिक एक्सपर्ट की टीम ने अहम सबूत जुटाए हैं। पॉश इलाके में है सत्यार्थी का घर...
- सत्यार्थी साउथ-ईस्ट दिल्ली के अलकनंदा अपार्टमेंट में रहते हैं। यह दिल्ली के सबसे पॉश इलाके जीके पार्ट-2 में आता है।
- मंगलवार को एनजीओ के इम्प्लॉइज उनके घर पहुंचे तो ताला टूटा मिला और सामान गायब था।
- दिल्ली पुलिस और फोरेंसिक एक्सपर्ट ने सबूत जुटाए हैं। घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली गई है।
- न्यूज एजेंसी के मुताबिक, सत्यार्थी के ऑफिस की तरफ से कहा गया है कि मेडल नहीं, सर्टिफिकेट चोरी हुआ है। सत्यार्थी ने अवॉर्ड देश को समर्पित कर दिया था, इसलिए उनका मेडल राष्ट्रपति भवन में रखा है।
टैगोर का नोबेल पुरस्कार भी हो चुका है चोरी
- नोबेल पुरस्कार चोरी होने का यह पहला मामला नहीं है। 25 मार्च, 2004 को रवींद्र नाथ टैगोर का नोबेल पुरस्कार भी चोरी हुआ था।
- बंगाल में विश्व भारती यूनिवर्सिटी से चोर टैगोर को मिले नोबेल प्राइज, मेडल और अहम कागजात उड़ा ले गए थे। इनमें एक रेप्लिका गोल्ड की और एक ब्रॉन्ज की थी।
- बंगाल सरकार ने इस मामले की जांच सीआईडी को सौंपी गई थी।
कौन हैं सत्यार्थी?
- मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को पैदा हुए कैलाश सत्यार्थी 'बचपन बचाओ आंदोलन' एनजीओ चलाते हैं।
- उन्हें 2014 में शांति का नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। इसी साल पाकिस्तान की मलाला युसुफ़ज़ई को भी साझा अवॉर्ड दिया गया।
- पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रहे सत्यार्थी ने 26 साल की उम्र में ही करियर छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था।
कैसे शुरू हुई हक की लड़ाई?
- इंजीनियरिंग में साथी रहे वेद प्रकाश शर्मा ने बताया था कि सत्यार्थी बचपन से ही कुरीति-विरोधी रहे हैं। गरीबी कभी उन्हें डिगा नहीं सकी। हाल यह था कि उनके पास आटा गूंथने के लिए बर्तन नहीं था और वह पत्थर पर आटा गूंथकर रोटी बनाया करते थे।
- सत्यार्थी पहली बार चर्चा में तब आए जब उन्होंने विदिशा में महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास सफाई कामगारों से भोजन बनवाया था। उनके इस गांधीवादी कदम ने इलाके में नई बहस को जन्म दिया।
- सत्यार्थी ने बच्चों के हक के लिए काम करते हुए जिस आसमान को छुआ, उसकी जमीन आर्थिक अभावों और संघर्षों में तैयार हुई। सालों तक सामाजिक आंदालनों में भाग लेते रहे। विदिशा में बना उनका घर आज भी सामान्य हालत में है। उनके भतीजे उमेश शर्मा लोकल लेवल पर बचपन बचाओ आंदोलन का काम संभालते हैं।
7th February, 2017