लखनऊ-- पश्चिमी यूपी में पहले दो चरणों के मतदान वाले जिलों में सियासी पार्टियां मुसलमानों को लुभाने में जुटी हुई हैं. वजह भी है, पहले चरण की अधिकतर सीटों पर मुसलिम वोट सत्ता का खेल बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं. मुसलिमों का रुख पूरी तरह साफ नहीं है. कहीं सपा-कांग्रेस गंठबंधन तो कही बसपा उनकी पसंद बनती दिख रही है. कुछ सीटों पर रालोद भी मुसलिम वोटों की दावेदारी में लगा हुआ है.
पश्चिमी यूपी के 26 जिलों में पहले और दूसरे चरण में क्रमश: 73 और 67 सीटों पर वोट पड़ेंगे. इन 140 विधानसभा क्षेत्रों में 11 व 15 फरवरी को मतदान होगा. इसमें 14 जिलों में मुसलिम आबादी 20 से 50 प्रतिशत तक है. नौ जिलों में 30 फीसदी से अधिक और 4 जिलों में 40 फीसदी से अधिक मुसलिम मतदाता है. करीब 70 विधानसभा सीटों पर उनकी अहम भूमिका होगी. उनके वोटों का बंटवारा हो या एकजुटता रहे, दोनों ही स्थिति में चुनावी नतीजे प्रभावित होते हैं. भाजपा इन जिलों में हिंदू मतों के ध्रुवीकरण की आस संजोये है तो सपा-बसपा अपने परंपरागत वोटों के साथ ही मुसलिम मतों को सहेजने में जुटे हैं. कुछ जगह उनका रुझान साफ है, लेकिन वोटिंग की तारीख एकदम नजदीक आ जाने के बावजूद ज्यादातर सीटों पर मुसलिम वोटरों ने पत्ते नहीं खोले हैं.
मुसलिमों की सियासत में सक्रिय नेता भी उनके वोट के सवाल पर बंटे हुए हैं. जिसका जैसा चश्मा है, उसे वैसा ही नजर आ रहा हैं. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के प्रो असलम जमशेदपुरी कहते हैं कि मुसलमानों की पहली सोच भाजपा से खुद को बचाने की है.
सपा, बसपा, कांग्रेस की पॉलिसी यूज एंड थ्रो की
मौलाना तौकीर रजा कहते हैं कि मुसलमान इसलिए भाजपा को वोट नहीं देते कि उसके पीछे आरएसएस है, वरना मुसलिमों के लिए भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस सब एक जैसे हैं. भाजपा, आरएसएस के रिमोट कंट्रोल से मुक्त हो जाये तो उससे क्या परेशानी है. वे कहते हैं कि सपा, कांग्रेस और बसपा सेकुलरिज्म के नाम पर मुसलमानों का इस्तेमाल करते हैं. इनकी पॉलिसी यूज एंड थ्रो की है. उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत न मिले और छोटे दलों की मदद से सरकार बने.
रुख साफ नहीं, सपा-बसपा में बंटे हैं मुसलिम : सज्जाद
अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सज्जाद का कहना है कि पहले और दूसरे चरण की वोटिंग नजदीक आने के बावजूद मुसलिमों का सियासी रुख एकदम साफ नहीं है. देहात के गरीब और निम्न मध्यवर्गीय मुसलमानों का रुझान आमतौर पर बसपा की तरफ है, जबकि शहरी, मध्यवर्गीय और संपन्न मुसलमान सपा की तरफ है. कई जगह सीट-दर सीट स्थिति बदली हुई है. वह कहते हैं कि मुसलिमों के मुद्दे चुनाव से नदारद हैं.
सपा और कांग्रेस में गंठबंधन के बाद आया बदलाव : डॉ असलम
चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ के प्रोफेसर डॉ असलम जमशेदपुरी कहते हैं कि सपा और कांग्रेस गंठबंधन के बाद हालात में बदलाव हैं. दोनों को इसका लाभ मिलेगा. मुसलिमों में राहुल और अखिलेश की जोड़ी को पसंद की जा रही है. वे कहते हैं कि मायावती सफाई दे चुकी हैं, लेकिन कुछ मुसलमानों में आशंका यह रहती है कि विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश रहने पर बसपा कहीं भाजपा के साथ मिलकर सरकार न बना ले. इसका उसे नुकसान हो रहा है.
मजलिस समेत छोटे दल बिगाड़ेंगे गणित
असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम, आइएमसी समेत मुसलिमों की सियासत करने वाले कई छोटे दल भी चुनाव में सक्रिय हैं. ओवैसी पहली बार चुनाव में उतरे हैं. वह पश्चिमी यूपी के कई जिलों में सभाएं कर चुके हैं. छोटे दल मुसलिम बहुल क्षेत्रों में खासतौर से उम्मीदवार उतार रहे हैं.
9th February, 2017