लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बदायूं में जब दो बहनों का शव पेड़ पर लटका मिला तो ना सिर्फ प्रदेश बल्कि दुनियाभर में इस खबर ने सुर्खियां बटोरी। बदायूं से महज कुछ किलोमीटर दूर कटरा सादतगंज गांव में 2014 में दो नाबालिग बहनों का का शव पेड़ से लटकता देख गांव के लोग इस बात पर यकीन नहीं कर सके कि ऐसा कैसे हो सकता है। आरोप था कि दोनों बहनों के साथ गैंगरेप किया गया था।
बदायूं में कटरा सादतकंज कटरा के लोगों ने गुरुवार को वोट किया और यहां के गांव व आस-पास के गांवों के लोगों का वोट इस बार समाजवादी पार्टी के खिलाफ गया और लोगों ने वैलेट के जरिए जमकर अपना गुस्सा निकाला, लोगों ने समाजवादी पार्टी के गुंडाराज के खिलाफ वोटिंग की, ऐसे में यह साफ है कि इन लोगों का वोट सपा की बजाए या तो भाजपा या बसपा को गया है।
यहां के गांवों के लोगों के जेहन में आज भी बदायूं कांड की यादें ताजा हैं। बदायूं कांड के बाद पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई और उन्हें रिहा कर दिया गया, यह मामला अभी भी कोर्ट में है। लेकिन यहां के लोगों का मानना है कि आरोपियों को समाजवादी पार्टी की शरण मिली हुई है और इसकी अहम वजह है कि ये पांचों आरोपी यादव हैं। यहां के स्थानीय विधायक सिनोद कुमार साक्य ने 2012 के चुनाव में सपा के प्रेमपाल यादव को 5327 वोटों से हराया था लेकिन इस बार सपा ने फिर से प्रेमपाल यादव को मैदान में उतारा है। प्रेमपाल यादव ने 2002 में यहां से जीत दर्ज की थी लेकिन उसके बाद से सिनोद ही यहां के विधायक हैं, वहीं इस बार भाजपा ने राजीव कुमार सिंह उर्फ बब्बु भैया को यहां से टिकट दिया है।
यहां के स्थानीय लोग ना सिर्फ बदायूं कांड की वजह से सपा को सत्ता से बाहर करना चाहते हैं बल्कि इनका आरोप है कि उनकी जमीनों पर कब्जा बढ़ा है, यहां के स्थानीय ग्रामीण रिशिपाल साक्य का कहना है कि यादव यहां उनकी जमीनों पर अवैध कब्जा करते हैं और जमीन के मालिक को जबरन काम करने के लिए मजबूर करते हैं। दातागंज गांव की मुख्य फसल तंबाकू और गेंहू है। यहां के विधायक सपा से नहीं है लिहाजा वह इन सभी पर रोक लगाने में विफल हैं।
दातागंज व आसपास के तमाम गांव में रहने वाले लोगों का आरोप है कि उन्हें बीपीएल कार्ड तक नहीं दिए गए हैं और ना ही सरकारी राशन की सुविधा मिल रही है। तमाम राज्य और केंद्र सरकार की योजनाएं बीपीएल कार्ड धारकों से जुड़ी हुई है जिसमें एलपीजी सिलेंडर भी अहम हैं, लेकिन बीपीएल कार्ड नहीं होने की वजह से यहां के लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। कद्दी नगरा, कुमारपुर, खिरिया, मधुकार, हजूरा पुख्ता, सैपुर नागरा के लोगों का कहना है कि मुट्ठीभर लोगों को ही बीपीएल कार्ड दिया गया है और उनका घर सरकारी योजनाओं के तहत बना है।
कई लोगों का कहना है कि उन्होंने कई बार बीपीएल कार्ड के लिए 100 रुपए से 300 रुपए तक दिए लेकिन उनका कार्ड नहीं बन सका। कुछ लोगों को एपीएल कार्ड दिया गया जिसमें बहुत कम लाभ मिलता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हजूरा पुख्ता गांव में तकरीबन 150 परिवार रहते हैं लेकिन यहां सिर्फ 11 लोगों के पास बीपीएल या एपीएल कार्ड है। आखिरी बार यहां इस तरह के कार्ड 2002 में बांटे गए थे।
यहां रह रहे तमाम ग्रामीण ऐसे हैं जिनके पास जमीन नहीं है और ना ही नौकरी और वह रोजाना 200 रुपए की दिहाड़ी पर काम करते हैं। वह बटायी में खेती करते हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि उनकी जमीन को भूमि अधिग्रहण के तहत लिया गया लेकिन आजतक उन्हें इसका मुआवजा नहीं मिला। लोगों का कहना है कि यहां लोगों की समस्याओं को कोई पार्टी नहीं खत्म कर सकती है बल्कि उम्मीदवारों से लोगों की करीबी उनकी समस्या का समाधान कर सकती है। यहां के स्थानीय निवासी रिशिपाल का कहना है कि वह सपा के खिलाफ इसलिए वोट कर रहे हैं कि क्योंकि यादवों की दबंगई काफी बढ़ गई है, लेकिन विकास के मामले में सपा से आगे कोई पार्टी नहीं है।
16th February, 2017