ओपिनियन पोल चुनावों से पहले किया जाता है, ताकि लोगों की चुनाव से जुड़े मुद्दों पर राय ली जा सके, जबकि एग्जिट पोल लोगों द्वारा वोट डाले जाने के तुरंत बाद किया जाता है ताकि राजनीतिक पार्टियों और उनके उम्मीदवारों के प्रति समर्थन का आकलन किया जा सके।
पहली बार आयोग ने एग्जिट और ओपिनियन पोल्स पर राजनीतिक पार्टियों से बैठक 22-23 दिसंबर 1997 को की थी।
अकसर चुनाव के दौरान ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल जैसे शब्दों से आपका पाला जरूर पड़ता होगा। लेकिन क्या आपने कभी इन दोनों में फर्क जानने की कोशिश की है। अगर नहीं तो आज हम आपको इन दोनों शब्दों के मतलब से रूबरू करा देते हैं। ओपिनियन पोल चुनावों से पहले किया जाता है, ताकि लोगों की चुनाव से जुड़े मुद्दों पर राय ली जा सके। दूसरी ओर एग्जिट पोल लोगों द्वारा वोट डाले जाने के तुरंत बाद किया जाता है ताकि राजनीतिक पार्टियों और उनके उम्मीदवारों के प्रति समर्थन का आकलन किया जा सके।
एेसा भी नहीं है कि इस पर चुनाव आयोग की नजर नहीं पड़ी थी। पहली बार आयोग ने एग्जिट और ओपिनियन पोल्स पर राजनीतिक पार्टियों से बैठक 22-23 दिसंबर 1997 को की थी। उस वक्त एमएस गिल मुख्य चुनाव आयुक्त थे। इस बैठक में ज्यादातर राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों ने कहा था कि यह पोल्स अवैज्ञानिक हैं और इनकी प्रकृति और आकार के साथ भेदभाव किया गया है।
इसके बाद 11 जनवरी, 1998 को लोकसभा चुनाव के साथ गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव हुए। इसके बाद चुनाव आयोग ने 14 फरवरी और 7 मार्च को आर्टिकल 324 के तहत गाइडलाइंस जारी कर अखबारों, न्यूज चैनलों पर एग्जिट और ओपिनियन पोल्स छापने या दिखाने पर बैन लगा दिया। इन चुनावों में पहले चरण की वोटिंग 16 फरवरी और आखिरी चरण की 7 मार्च 1998 को होनी थी। चुनाव आयोग ने यह भी कहा था कि अगर अखबार और न्यूज चैनल एग्जिट और ओपिनियन पोल्स छाप रहे हैं तो उन्हें मतदाताओं के सैंपल साइज, मतदान पद्धति, गलती की संभावना और पोलिंग एजेंसी के बैकग्राउंड के ब्योरे का खुलासा भी करना चाहिए।
गाइडलाइंस का हुआ था विरोध: चुनाव आयोग की इन गाइडलाइंस का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जमकर विरोध किया था। इसमें अभिव्यक्ति की आजादी के उल्लंघन की बात कही गई थी। चुनाव आयोग के निर्देश को सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली व राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाएं फ्रंटलाइन के तत्कालीन संपादक एन.राम, तमिल के साप्ताहिक अखबार नक्कीरन के संपादक आर राजगोपाल और राजस्थान के एसएन तिवारी ने दायर की थीं। सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत इस मामले को सुना, लेकिन आयोग की गाइडलाइंस पर स्टे नहीं लगाया। इस कारण सिर्फ 1998 के लोकसभा चुनावों में ही एक महीने तक एग्जिट और ओपिनियन पोल्स पर पाबंदी लगी रही थी।
फिलहाल एग्जिट पोल्स पर बैन: 1998 की कामयाबी के बाद चुनाव आयोग ने इसके बाद भी इसे लागू करने पर विचार किया। लेकिन मीडिया के कुछ धड़ों ने इससे मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद आयोग ने कोर्ट का रुख किया। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच को रेफर कर दिया गया, जिसने गाइडलाइंस की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए। बेंच ने कहा कि चुनाव आयोग किसी वैधानिक मंजूरी के बिना एेसी गाइडलाइंस लागू नहीं करा सकता। इसके बाद आयोग ने अपनी योजनाओं को वापस ले लिया।
तब बीजेपी ने किया था विरोध: इसके बाद साल 2004 में चुनाव आयोग इसी मुद्दे पर 6 राष्ट्रीय पार्टियों और 18 राज्य पार्टियों के समर्थन के साथ कानून मंत्रालय के पास पहुंचा। आयोग ने यहां कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए और आयोग द्वारा तय एक समय के दौरान एग्जिट और ओपिनियन पोल्स पर बैन लगाया जाना चाहिए। आयोग की इन सिफारिशों को मानते हुए फरवरी 2010 में सिर्फ एग्जिट पोल्स पर पाबंदी लगा दी गई। इसके बाद नवंबर 2013 में चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों से विचार विमर्श कर कहा कि वह ओपिनियन पोल्स पर पाबंदी लगाने की अपनी मांग को फिर से उठाएं। बीजेपी को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों ने इस सुझाव का समर्थन किया कि चुनाव की तारीख नोटिफाई होने से चुनाव खत्म होने तक ओपिनियन पोल्स नहीं छापा जाना चाहिए।
बाकी देशों में यह होता है: 16 यूरोपीय संघ के देशों में पूरे महीने और मतदान के दिन से 24 घंटे पहले तक ओपनियन पोल्स की रिपोर्टिंग करने पर बैन है। सिर्फ इटली, स्लोवाकिया और लग्जमबर्ग में 7 दिन से ज्यादा का बैन है। वहीं ब्रिटेन में ओपिनियन पोल्स छापने पर कोई बैन नहीं है, लेकिन वोटिंग खत्म होने तक एग्जिट पोल्स नहीं छापे जा सकते। वहीं अमेरिका में भी ओपिनियन पोल्स का मीडिया कवरेज चुनावों का अभिन्न अंग माना जाता है।
16th February, 2017