उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए दो चरणों का मतदान हो चुका है, लेकिन कभी मुख्यमंत्री पद की दावेदार बताई जा रहीं स्मृति इरानी इस दौरान कहीं खो सी गई हैं। न वे प्रचार में कहीं दिख रही हैं और न ही चुनाव प्रबंधन में। 2014 में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी में आक्रामक तेवर दिखा चुकीं स्मृति का आखिर भाजपा इस बार इस्तेमाल क्यों नहीं कर रही है?
क्या मंत्रालय बदलने के बाद उनका कद घटा दिया गया है या कोई और वजह है? पिछले एक महीने के दौरान वे केवल एक बार उत्तर प्रदेश के दौरे पर गईं और वह भी पार्टी मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वापस लौट आईं। पांच फरवरी को पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने तीन तलाक के मुद्दे पर विपक्षी दलों को घेरने की कोशिश जरूर की।
उन्होंने मायावती, राहुल गांधी और अखिलेश यादव से इस मुद्दे पर अपना स्टैंड साफ करने को कहा। स्मृति न सिर्फ एक स्टार प्रचारक हैं बल्कि अच्छी वक्ता भी हैं। फिल्मी बैकग्राउंड होने की वजह से भी वे काफी लोकप्रिय हैं। वे 1998 में मिस इंडिया के फाइनल में पहुँची, लेकिन जीत नहीं पाईं।
स्मृति इरानी ने राजनीतिक जीवन में अपनी अलग जगह बना ली है।
अमेठी में मुकाबला
कई सालों तक चले एक टीवी सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में निभाया तुलसी विरानी का चरित्र आज भी उनकी पहचान का एक हिस्सा है। लेकिन पिछले कुछ सालों मे उन्होंने राजनीतिक जीवन में अपनी अलग जगह बना ली है। खासतौर पर 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ अच्छा मुकाबला करने के बाद।
केवल 15-20 दिन के प्रचार के बाद ही वे राहुल के साथ सीधे मुकाबले में आ गई थीं। दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी के कद्दावर नेता कुमार विश्वास दो महीने से अमेठी में डेरा डाले रहने के बावजूद चंद हजार वोट ही बटोर पाने में कामयाब हो पाए। अमेठी के लोकसभा चुनाव दौरान वे स्थानीय लोगों से इंस्टैंट कनेक्ट बनाने में सफल रही थीं। खासतौर पर महिलाओं में उन्होंने अच्छी पैठ बना ली थी।
स्मृति इरानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी नेताओं में शुमार किया जाता है।
मोदी की करीबी
स्मृति की चुनौती के मद्देनजर ही कांग्रेस ने राहुल के पक्ष में प्रियंका गांधी को प्रचार की जिम्मेदारी दी थी। राहुल की जीत का श्रेय इसीलिए किसी हद तक प्रियंका को जाता है। स्मृति इरानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी नेताओं में शुमार किया जाता है। यही वजह है कि उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी मिली।
हालांकि शिक्षा के भगवाकरण को लेकर उन पर काफी आरोप लगे तो कभी अपनी शिक्षा को लेकर वे सवालों के घेरे में खड़ी नजर आईं, लेकिन उन्होंने सभी चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया। संसद में रोहित वेमुला के मामले पर दिए उनके भाषण के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे।
लेकिन पिछले फेरबदल में मोदी ने उन्हें टेक्सटाइल मिनिस्ट्री में भेज दिया। हालाँकि वहां भी उन्होंने खादी को बढ़ावा देने को लेकर हेडलाइन्स बटोरीं लेकिन वे किसी हद तक लाइमलाइट से बाहर हो गईं।
लोकसभा क्षेत्र होने के बावजूद गांधी परिवार ने इसकी उपेक्षा की है।
गांधी परिवार
स्मृति अमेठी से जीतने में सफल भले ही न हो पाई हों, लेकिन उन्होंने अमेठी से नाता बनाए रखा। वे लगातार अमेठी जाती रहती हैं और वहां विकास के काम शुरू कराने से लेकर चल रहे कामों की समीक्षा करती रहती हैं। उनका आरोप है इतना महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र होने के बावजूद गांधी परिवार ने इसकी उपेक्षा की है और इस परिवार से 40 सालों से ज्यादा समय से जुड़ाव के बावजूद यह प्रदेश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाता है।
वे कहती रही हैं कि अगली बार वे फिर यहीं से लड़ेंगी और जीत दर्ज करने के बाद विकास की गंगा बहा देंगी। यही वजह थी कि यूपी की नेता-विहीन भारतीय जनता पार्टी को लगा कि स्मृति के रूप में उसे एक चेहरा मिल गया है जिसे बतौर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार उतारा जा सकता है। स्मृति के यूपी के लगातार बढ़ते दौरों ने भी इस खबर को आधार प्रदान किया।
इस बार पीएम मोदी को यूपी में अपनी प्रतिष्ठा दाँव पर नहीं लगानी पड़ेगी।
यूपी की राजनीति
माना गया कि इस बार पीएम मोदी को यूपी में अपनी प्रतिष्ठा दाँव पर नहीं लगानी पड़ेगी। लेकिन फिर स्मृति इरानी को लड़ाई से बाहर कर दिया गया। माना जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीएम कैंडिडेट किरण बेदी को बाहरी आदमी मानकर न तो पार्टी के स्थानीय नेताओं ने सहयोग दिया और न ही लोगों ने वोट दिया।
नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री बनना तो दूर वे अपने विधानसभा क्षेत्र से भी हार गई थीं। भाजपा को डर था कि कहीं किरण बेदी जैसा हश्र स्मृति इरानी का भी न हो। वहीं आरएसएस भी स्मृति को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने के खिलाफ था। हालाँकि भाजपा नेता इसे एक रणनीतिक फैसला करार देते हैं।
उनका कहना है कि उन्होंने स्मृति इरानी को केवल प्रियंका गांधी से मुकाबले के लिए बचा कर रखा है। उन्होंने कहा, "जब तक प्रियंका लड़ाई में नहीं उतरतीं, हम स्मृति को चुनाव से बाहर ही रखेंगे।" पिछले चालीस साल से यूपी की राजनीति पर छाए कुछ अन्य नेता भी स्मृति की तरह चुनाव पटल से नदारद हैं।
17th February, 2017