यूरिड मीडिया डेस्क
-भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई से यूरोपीय संघ के साथ नयी मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) पर समझौता वार्ता को फिर से शुरू करने का फैसला किया है. भारत और जर्मनी के बीच उच्चस्तरीय वार्ता के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मंगलवार को यह जानकारी दी है. यह पीएम मोदी की चार देशों की यात्रा का अब तक का सबसे बड़ा और एकमात्र ठोस परिणाम है. बताया जाता है कि मोदी के साथ बैठकों के दौरान जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल की ओर से ये मुद्दा उठाए जाने के बाद भारत पर एफटीए पर समझौता वार्ता फिर शुरू करने का दबाव था.
जर्मनी का व्यापार वर्ग दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संधि न होने से चिंतित है क्योंकि यह भारत में व्यापार और निवेश की राह में एक बाधा है. भारत के हितों के लिए भी नई संधि का लागू होना महत्वपूर्ण है. यूरोप के साथ भारत के महत्वपूर्ण व्यापार संबंध रहे हैं. वर्ष 2015-2016 में विश्व के साथ भारत के सकल व्यापार में यूरोप का योगदान 13.5 फीसदी था, जो चीन (10.8 फीसदी), अमेरिका (9.3 फीसदी), संयुक्त अरब अमीरात (7.7 फीसदी) और सऊदी अरब (4.3 फीसदी) से काफी ज्यादा है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1600 से ज्यादा जर्मन कंपनियां और 600 संयुक्त जर्मन उद्यम काम कर रहे हैं जिनसे पिछले दो वर्षों के दौरान भारत में 2 अरब डॉलर का सीधा विदेशी निवेश हुआ.
यूरोप के साथ संबंध अहम
लेखक ने अपने अन्य लेख में इस बात पर जोर दिया था कि मौजूदा हालात में यूरोप के साथ मजबूत संबंध रखना भारत के लिए क्यों जरूरी है. इसके आर्थिक और राजनयिक दोनों कारण हैं. पिछले वर्षों के दौरान जर्मनी के साथ भारत का व्यापार घटा है जो 2011-12 में 23.5 अरब डॉलर से घटकर 18.73 अरब डॉलर रह गया है.
घटता व्यापार और 2007 के बाद से में नई व्यापार संधि पर समझौता वार्ता की धीमी रफ्तार भारत और जर्मनी के बीच संबंधों के बीच कड़वाहट का बिंदु रहा है. भारत में सर्वश्रेष्ठ निर्यातक और प्रमुख आयातक देशों में से एक जर्मनी इस मुद्दे पर लगातार जोर देता रहा है. इस पृष्ठभूमि में देखें तो, अगर व्यापार संधि को लेकर समझौता वार्ता पर औपचारिक सहमति बन जाती है तो ये प्रधानमंत्री मोदी के चार देशों की यात्रा की प्रमुख उपलब्धि होगी.
दूसरी बात ये कि भारत को विश्व स्तर पर अपना दबदबा बढाने के लिए ‘मित्रवत’ यूरोप की आवश्यकता है. ऐसे मौके पर ये और भी महत्वपूर्ण है, जब चीन पाकिस्तान के साथ आर्थिक गलियारा तैयार करने और वन बेल्ट-वन रोड संबंधी पहल कर एशियाई क्षेत्र में निवेश और प्रभाव बढाने के लिए सक्रिय है. भारत इसका हिस्सा नहीं है. चीन के ओबीओआर शिखर सम्मेलन का बहिष्कार करके भारत ने खुद को अलग-थलग कर लिया है, क्योंकि ओबीओआर को लेकर भारत के कई पड़ोसियों सहित अधिकतर देशों के बीच आम सहमति है.
ओबीओआर को व्यापक समर्थन की झलक उद्घाटन समारोह में भी नजर आई जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन सहित 29 देशों के प्रमुखों ने शिरकत की. यही नहीं इस समारोह में एक सौ से ज्यादा देशों के प्रतिनिधिमंडल भी मौजूद थे.
हालांकि यूरोपीय देशों ने ओबीओआर प्रोजेक्टों में ज्यादा पारदर्शिता और सभी देशों को समान मौका सुनिश्चित करने की मांग की है. वह इस बात को भांप गए हैं कि समझौता प्रारूप में चीनी फर्मों को वरीयता दी गयी है. यूरोपीय देशों को लगता है चीन ने ओबीओआर प्रोजेक्टों का बडा हिस्सा हड़पने के इरादे से प्रारूप में ये व्यवस्था की है.
पेरिस जलवायु संधि को लेकर जर्मनी के साथ अमेरिका की ठनी हुई है और डोनाल्ड ट्रंप ने मुक्त व्यापर संधियों से अलग होने का फैसला कर लिया है. ऐसे में भारत के लिए यह अवसर का लाभ उठाने का बिल्कुल सही मौका है. अपने दौरे के अगले चरण में मोदी को स्पेन, रूस औऱ फ्रांस जाना है. मौजूदा हालात में एफटीए समझौता वार्ता की फिर से शुरूआत को लेकर मोदी की प्रतिबद्धता से भारत और यूरोप दोनों को फायदा ही है.
1st June, 2017