मोदी का जश्न और योगी का हठ
विजय शंकर पंकज-- लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्र में मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने पर देश भर में जश्न मनाया है जबकि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के 60 दिन पूरे होने पर भाजपा कार्यकर्ता हठ योग करने को मजबूर हो रहा है।
जश्न मनाने में मोदी मंत्रिमंडल के अनुभवी राजनीतिज्ञों तथा उनकी योग्यता और कार्य कुशलता का विपक्षी भी विरोध नही करते है जबकि योगी मंत्रिमंडल न केवल अनुभवहीन बल्कि राजनीतिक रूप से भी अपरिपक्व नजर आ रहा है। हालात यह
है कि संघ की प्रदक्षिणा से निकले लाठी भांजने वालों की एक फौज पूरे प्रदेश में बिखर कर अपनी मनमानी करने में जुटी है तो सत्ता में बैठे मंत्री "जुबानी जमा खर्च" में ही लगे हुए है। मोदी सरकार का तीन वर्ष का कामकाज पीएमओ
(प्रधानमंत्री कार्यालय) से ही गवर्न होता है तो योगी सरकार के मंत्री 60 दिनों में अभी एक भी फाइल सरका नही पाये है।
केन्द्रीकृत प्रशासन व्यवस्था... प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीन साल की एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि पहली बार लोकतांत्रिक भारत की प्रशासनिक मशीनरी केन्द्रीकृत हो गयी है। केन्द्र सरकार के मंत्रालयों का नियन्त्रण पीएमओ के पास है और किसी मंत्री से ज्यादा पीएमओ को सचिव (आईएएस) पर है। जब कोई अधिकारी सीधे तौर पर प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करने लगता है तो विभागीय मंत्री महत्वहीन हो जाता है। यही वजह है कि कई वरिष्ठ मंत्री भी कई मौके पर अधिकारियों की उपेक्षा और आदेश न मानने की शिकायत करते है। मोदी की इस केन्द्रीकृत व्यवस्था को लेकर सहयोगी मंत्री असहज अवश्य महसूस कर रहे हो लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी रहा कि तीन वर्ष के कार्यकाल मे किसी मंत्रालय में भ्रष्टाचार तथा मनमानी का किसी प्रकार का आरोप नही लगा। इसका नकरात्मक पहलू यह नजर आता है कि केन्द्रीकृत प्रणाली में काम का बोझ बढ़ने से कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव अधर में लटक जाते है अथवा उनमें निर्णय लेने में बहुत देर हो जाती है।
गरीबों के नाम पर अमीरों की पौ बारह... मोदी सरकार के तीन वर्ष के कामकाज को लेकर गौर करे तो एक बात साफ होती है कि सत्ता संभालते ही मोदी ने यह साफ कर दिया था कि भ्रष्टाचार पनपने नही दिया जाएगा। ईमानदार नेतृत्व का उसके मातहतों पर भी असर पड़ता है परन्तु यह भी ख्याल रखने वाली बात होती है कि गोमुख से स्वच्छ निर्मल धारा ले आने वाली गंगा मैदानी इलाके में आते-आते गंदी क्यो हो जाती है? कुछ ऐसा ही असर मोदी सरकार के कामकाज में भी है। वर्षो की भ्रष्ट मशीनरी को यकायक पाक नही किया जा सकता है। यही वजह रही कि नोटबंदी के दौर में सबसे ज्यादा भ्रष्ट सिस्टम बैकों का ही मिला जिन पर इस कार्य को अंजाम देना था। वैसे भी बैकिंग प्रणाली का पूरा सिस्टम ही अमीरों की आर्थिक सुरक्षा एवं संपन्नता और गरीबों की लूट है।
मोदी सरकार में भी बैंकों की यह कारगुजारी जारी है। भारत का आर्थिक तंत्र दिनों-दिन अमीरों की ही झोली में जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस जनधन योजना का राग अलापते नही थकते है, वह बैकिंग प्रणाली से गरीबों को चोट पहुंचाने वाला और अमीरों को सस्ते दर पर रकम जुटाने की प्रणाली ही साबित हो रहा है। जनधन योजना के माध्यम से बैंकों के पास 65 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम मिली परन्तु बैंक ऐसा शो कर रहे है जैसे उन खातों का संचालन उन पर भारी पड़ रहा है।
गरीब का खाता खोलने में बैंक उससे ज्यादा समय लगाता है जितने कम समय में वह अमीरों को हजारो करोड़ का फर्जी कागजों पर कर्ज दे देता है। आखिरकार गरीबों का 65 हजार करोड़ बैंकों के माध्यम से अमीरों की ही झोली में गया है। मोदी सरकार उज्जवला योजना का ज्यादा बखान करती है जिसके माध्यम से 2 करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन मिला। सरकार की यह योजना किसी पूंजीपति घराने या सरकारी मदद से नही मिली बल्कि उस जनता के सहयोग से मिला जिसने अपनी सब्सिडी छोड़ी। इसके बाद भी तमाम ऐसे औद्योगिक घराने, पूंजीपति एवं सांसद, विधायक है जो सब्सिडी का गैस सिलेन्डर इस्तेमाल करते है और उनकी स्वेच्छा पर प्रधानमंत्री का असर नही पड़ा।
जश्न मनाने में मोदी मंत्रिमंडल के अनुभवी राजनीतिज्ञों तथा उनकी योग्यता और कार्य कुशलता का विपक्षी भी विरोध नही करते है जबकि योगी मंत्रिमंडल न केवल अनुभवहीन बल्कि राजनीतिक रूप से भी अपरिपक्व नजर आ रहा है। हालात यह
है कि संघ की प्रदक्षिणा से निकले लाठी भांजने वालों की एक फौज पूरे प्रदेश में बिखर कर अपनी मनमानी करने में जुटी है तो सत्ता में बैठे मंत्री "जुबानी जमा खर्च" में ही लगे हुए है। मोदी सरकार का तीन वर्ष का कामकाज पीएमओ
(प्रधानमंत्री कार्यालय) से ही गवर्न होता है तो योगी सरकार के मंत्री 60 दिनों में अभी एक भी फाइल सरका नही पाये है।
मोदी सरकार में भी बैंकों की यह कारगुजारी जारी है। भारत का आर्थिक तंत्र दिनों-दिन अमीरों की ही झोली में जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस जनधन योजना का राग अलापते नही थकते है, वह बैकिंग प्रणाली से गरीबों को चोट पहुंचाने वाला और अमीरों को सस्ते दर पर रकम जुटाने की प्रणाली ही साबित हो रहा है। जनधन योजना के माध्यम से बैंकों के पास 65 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम मिली परन्तु बैंक ऐसा शो कर रहे है जैसे उन खातों का संचालन उन पर भारी पड़ रहा है।
गरीब का खाता खोलने में बैंक उससे ज्यादा समय लगाता है जितने कम समय में वह अमीरों को हजारो करोड़ का फर्जी कागजों पर कर्ज दे देता है। आखिरकार गरीबों का 65 हजार करोड़ बैंकों के माध्यम से अमीरों की ही झोली में गया है। मोदी सरकार उज्जवला योजना का ज्यादा बखान करती है जिसके माध्यम से 2 करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन मिला। सरकार की यह योजना किसी पूंजीपति घराने या सरकारी मदद से नही मिली बल्कि उस जनता के सहयोग से मिला जिसने अपनी सब्सिडी छोड़ी। इसके बाद भी तमाम ऐसे औद्योगिक घराने, पूंजीपति एवं सांसद, विधायक है जो सब्सिडी का गैस सिलेन्डर इस्तेमाल करते है और उनकी स्वेच्छा पर प्रधानमंत्री का असर नही पड़ा।
6th June, 2017