नई दिल्ली। 21 जून को समूचा विश्व 'योगा डे' मनायेगा लेकिन कुछ कट्टर धार्मिक संगठन ने मोदी सरकार पर इस दिन को थोपने का आरोप लगाया था। धर्म के ठेकेदारों ने तो यहां तक कहा था कि कि योग करने से इंसान हिंदू बन जाता है क्योंकि ये हिंदू धर्म की देन है, इस कारण इस्लामिक लोगों को इससे दूर रहना चाहिए। जानिए शादी में क्यों लगाई जाती है वर-वधू को हल्दी?
01:04 पीएम मोदी का बहादुर बच्चों को संदेश 03:04 अब हाईवे बनेगा रनवे, चीन-पाक को मिलेगा दुरुस्त जवाब 01:26 घर में रखे कैश की ऊपरी सीमा तय कर सकती है सरकार 'योग' किसी खास मजहब से संबधित नहीं लेकिन अगर आप 'योग' के बारे में पढ़ेंगे तो जानेंगे कि 'योग' किसी खास मजहब से संबधित नहीं है बल्कि यह एक आध्यात्मिक प्रकिया है जिसे करने से चित्त शांत और शारीरिक लाभ होता है। इस्लाम में 'योग' को ध्यान से जोड़ा गया है इस्लाम में भी कहा गया है कि सूफी संगीत के विकास में 'भारतीय योग' का काफी बड़ा हाथ है क्योंकि योग मन की चंचलता पर रोक लगाता है और ईश्वर के ध्यान में मदद करता है।
'नमाज' में 'योग' और 'योग' में 'नमाज' अशरफ एफ निजामी ने 'योग' विषय पर एक किताब लिखी है जिसमें उन्होंने 'नमाज' और 'योग' को एक बताते हुए लिखा है कि जिस तरह से 'नमाज' पढ़ने से पहले 'वजू' की प्रथा है ठीक उसी तरह से 'योग' करने से पहले कहा जाता है कि इंसान 'शौच' करके आये, आशय दोनों का शारीरिक सफाई से ही है। नमाज में भी 'ध्यान' और 'योग' में भी 'ध्यान' 'नमाज' से पहले इंसान 'नियत' करता है तो योग करने से पहले 'संकल्प' लिया जाता है। जब नमाज 'कयाम' के रूप में अता की जाती है तो वो वज्रआसन होता है। नमाज में भी 'ध्यान' लगाया जाता है और 'योग' में भी यही होता है। 'सजदा' करने के लिए इंसान जैसे एक्शन लेता है वो योग में 'शशंक आसन' कहा जाता है, जिससे हार्ट और बीपी कंट्रोल में रहते हैं। इस्लामिक देशों में 'योग' इसलिए 'योग' का अर्थ केवल शारीरिक और मानसिक परेशानियों से मुक्ति पाने से है ना कि किसी धर्म विशेष से इसलिए इस्लामिक देशों में 'योग' को गलत नहीं माना गया है। हालांकि ये और बात है कि कुछ कट्टरपंथियों ने इस किसी समुदाय और धर्म विशेष से जोड़ दिया है।
18th June, 2017