यूरिड मीडिया डेस्क /लखनऊ
। अखिलेश सरकार में गोमती नदी तट पर हुए कार्यों की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की गई है। लेकिन अगर अतीत में जाएं तो संवारने के नाम पर गोमती नदी को हमेशा छला गया। अखिलेश यादव सरकार में ही नहीं पूर्व की भाजपा, माया और मुलायम सरकार में भी गोमती नदी को सुंदर बनाने के नाम पर सरकारी धन को बहाया गया था, लेकिन गोमती नदी का स्वरूप नहीं बदल सका।
27 मार्च को जब मुख्यमंत्री योगी ने गोमती नदी का निरीक्षण किया था, तब ही यह संभावना जताई जाने लगी थी कि अखिलेश सरकार में गोमती नदी तट को संवारने के नाम पर बेहिसाब रकम बहाने वाले गुनहगारों को जेल जाना होगा। उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आलोक सिंह की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने भी गोमती नदी संवारने के नाम पर बरती गई अनियमितताओं से जुड़ी रिपोर्ट ने भी गड़बड़ी से परदा हटाया था।
वर्ष 2007 में बसपा सरकार ने भी गोमती नदी को संवारने का बीड़ा उठाया था। नदी की सफाई तलहटी तक करने के लिए सरकार ने यूपी प्रोजेक्ट कारपोरेशन को काम दिया था और एक करोड़ खर्च खर्च हो गए, लेकिन गोमती नदी की गंदगी दूर न हो सकी।
बसपा सरकार में ही अंबेडकर स्मारकों की रौनक बढ़ाने के लिए गोमती नदी में पानी का ठहराव करने के लिए करीब 40 करोड़ रुपये से लामार्ट कॉलेज के पीछे गोमती तट पर वीयर बनाई गई थी। इसमे ढाई मीटर चौड़ा 825 मीटर लंबा जॉगिंग ट्रैक का निर्माण भी कराया था।
तत्कालीन नगर विकास मंत्री आजम खां का दावा था कि स्विटजरलैंड की तर्ज पर गोमती तटों को संवारा जाएगा। इसके लिए भव्य गेट बनने थे। इसके लिए हनुमान सेतु के पास पिलर भी खड़े किए थे और कई अन्य कार्य भी कराए गए थे। कार्य कराने का जिम्मा जलनिगम की सीएंडडीएस इकाई को दिया गया था। प्रथम चरण में हनुमान सेतु से निशातगंज पुल तक गोमती के दोनों तटों को संवारते हुए पिकनिक स्पॉट बनाया जाना था। करीब चार पांच करोड़ खर्च हो गए और सरकार बदलते ही काम रोक दिया गया था।