बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे तेज तर्रार माने जाने वाले मुख्यमंत्री पर बाल विकास पुष्टाहार ने निदेशक पद पर तैनात आनन्द कुमार सिंह भारी पड़ रहे है। योगी सरकार के 100 दिन में 2000 से अधिक अधिकारियों को ताश की पत्तों की तरह फेंटा गया, लेकिन 7 वर्षो से बाल विकास पुष्टाहार विभाग में तैनात निदेशक को हटाने की हिम्मत योगी सरकार नहीं जुटा सकी, जबकि नियुक्ति विभाग मुख्यमंत्री के पास है सवाल यह उठता है कि एक अधिकारी इतना पावरफुल हो गया है कि मायावती, अखिलेश सिंह यादव और अब योगी पर भारी पड़ रहा है। इसके पीछे कारण कुछ भी हो लेकिन जिस तरह से नियमों को ताक पर रख करके विभाग में पुष्टाहार की आपूर्ति को सपा सरकार की तरह योगी सरकार में दिया जा रहा है उससे उंगली सरकार पर उठ रही है ऐसा कौन सा कारण है कि प्रमुख सचिव हटा दी गयीं और निदेशक अब भी अपने पद पर बने है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सिंह को पद पर बनाए रखने के लिए भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का दबाव है। नेता के दबाव में ही तकनीकी आधार बनाकर एक बार फिर घोटालेबाज कम्पनियों को तीन माह का पंजीरी आपूर्ति का कार्य दे दिया गया है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि विभाग सचिव अनीता सी मेश्राम ने मंत्रिपरिषद को गुमराह किया है उन्होंने मंत्रीपरिषद को भेजे गये नोट में सही तथ्य नहीं दिये है सचिव द्वारा भेजा गया नोट-में बिन्दु पांच पर लिखा गया है-(आपूर्तिकर्ता इकाइयों द्वारा अनुपूरक पुष्टाहार की आपूर्ति 2012-13 में कराए गए टेण्डर के सम्बन्ध में दिनांक 15.04.2013 का किए गए अनुबन्ध जिसकी समय अवधि दिनांक 14.04.2016 को समाप्त हो चुकी है, की शर्तों, प्रतिबन्धों, दरों के आधार पर की जा रही है तथा अनुबन्ध की विस्तारित अवधि में भी उन्हीं शर्तों, दरों पर आपूर्तिकर्ता इकाइयों द्वारा अनुपूरक पोषाहार की आपूर्ति मई-2017 तक की गयी है। सचिव ने मंत्रीपरिषद को गुमराह किया।
इस आपूर्ति की कार्यदायी मंत्रिपरिषद के निर्णय दिनांक 13.04.2016 के अनुपालन में तथा समय-समय पर मुख्यमंत्री से प्राप्त अनुमोदन से की गयी है। इस प्रकार आपूर्तिकर्ता इकायों द्वारा पूर्व में किए गए अनुबन्ध की दरों, शर्तों पर अनुपूरक पोषाहार की आपूर्ति किए जाने के फलस्वरूप राज्य सरकार पर कोई अतिरिक्त वित्तीय व्ययभार नहीं पड़ रहा है। सचिव ने मंत्रिपरिषद की बिन्दु आठ में लिखा है कि उपर्युक्त निर्णय के क्रियान्वयन में अपरिहार्य कारणोंवश यदि कोई व्यवहारिक कठिनाई आती है अथवा कोई संशोधित निर्णय लिए जाने की आवश्यकता पायी जाती है तो इस समबन्ध में निर्णय लेने का अधिकार मुख्यमंत्री में निहित कि जाना निवेदित है। उन्होंने नोट में स्पष्ट यह भी लिखा है कि मंत्रिपरिषद को भेजने वाली रिपोर्ट को विभागीय मंत्री देख लिया है।) वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि विभागीय सचिव ने इस प्रकरण में मंत्रिपरिषद को गुमराह किया है। सचिव ने कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सही तथ्यों को मंत्रिपरिषद को नहीं बताया। वास्तविकता यह है कि पूर्व सपा सरकार ने 15.04.2013 को कम्पनियों को तीन वर्ष के लिए आपूर्ति के लिए अनुबन्ध किया था जिसकी अवधि 14.04.2016 को समाप्त हो गयी। नियमानुसार मंत्रिपरिषद द्वारा तीन माह ही अनुबन्ध को बढ़ाया जा सकता है। जिसे पूर्व सरकार ने तीन माह के लिए बढ़ाया गया। न्याय विभाग की रिपोर्ट में विभागीय सचिव अनीता सी मेश्राम द्वारा मंत्रिपरिषद को भेजी गयी सूचना को गलत ठहराया गया है। न्याय विभाग में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि 15 जुलाई 2016 व 14 अक्टूबर 2016 एवं 14 जनवरी 2017 को तीन-तीन माह के लिए बढ़ाये गए अनुबन्ध पर न्याय विभाग एवं मंत्रिपरिषद का अनुमोदन नहीं लिया गया।
यही नहीं भाजपा सरकार में भी अप्रैल में जो अनुबन्ध बढ़ाये गये उस पर भी न्याय विभाग एवं मंत्रिपरिषद की सहमति नहीं ली गयी। न्याय विभाग ने स्पष्ट रूप से कहा कि पूर्व सरकार में नियमों के खिलाफ पंजीरी आपूर्ति की अवधि बढ़ायी गयी और वर्तमान भाजपा सरकार में भी आपूर्ति अवधि बढ़ाया जाना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। इस आपत्ति के बाद भी टेण्डर तो निरस्त किया गया, लेकिन आपूर्ति विवादास्पद कम्पनियों को दे दी गयी। जबकि कम्पनियों के निदेशक को सजा भी मिल चुकी है नियमानुसार ऐसे किसी भी कम्पनी को टेन्डर आपूर्ति का कार्य नहीं दिया जा सकता जिस को न्यायलय से सजा या जुर्बाना हो चुका हो। इस सम्बन्ध में भारत पुर्नोत्थान (आईआरआई) अभियान राज्यपाल को और मुख्यमंत्री को शिकायत भी की जा चुकी है। लेकिन इन शिकायतों को भी दरकिनार करके दागी कम्पनियों को ही कार्य दे दिया गया।
8th July, 2017