युरिड मीडिया डेस्क। क्रोध के लिए फकीरों ने कहा है कि यह गरजता ही नहीं, सरकता भी है। बड़े-बड़े संत-महात्माओं को भी क्रोध आ सकता है। क्रोध की तीन स्थितियां बनती हैं। उसे आप दबा लें, उसे कहीं ओर सरका दें और या उसे निकाल बाहर फेंकें। आजकल सभी को जरा-जरा सी बात पर क्रोध आ जाता है। भले ही आप किसी और पर क्रोध कर रहे हैं, लेकिन शरीर से जो निगेटिव वाइब्रेशन निकलते हैं, वे आपके आसपास के लोगों को भी परेशान कर सकते हैं।
पिछले दिनों मैं और मेरी पत्नी शिमला के एक प्रमुख कैफेटेरिया में बैठे थे। उसी समय एक युगल अपनी छोटी बच्ची के साथ चाय पीने आया। वे कम उम्र के थे। बच्ची भी सात-आठ साल की रही होगी। पत्नी अत्यधिक पढ़ी-लिखी और किसी संस्थान की बड़ी पदाधिकारी लग रही थी। वे आरक्षित टेबल पर बैठ गए। बैरे ने मना किया और वह महिला गुस्सा हो गईं। उन्होंने मैनेजर को बुलाकर बैरे कोे हटाने की हिदायत दी। उनका क्रोध बढ़ता जा रहा था। पति बार-बार टोक रहा था कि छोड़ो, दूसरी टेबल पर बैठ जाते हैं, लेकिन महिला अड़ गई। पत्नी को बात मानते न देख पति चुप हो गया। बच्ची दोनों को देखकर चुपचाप बैठ गई। उसकी उदासी में भी क्रोध था। देखते ही देखते तीनों का आनंद भंग हो गया।
क्रोध अपने परम मित्र अहंकार के बिना आता ही नहीं। ये दोनों ऐसे मित्र हैं जो अपने-अपने दुर्गुण एक-दूसरे पर डालते हैं। क्रोध आए तो उसकी ताकत आपसे अच्छे काम भी करा सकती है और गलत काम भी। इसलिए क्रोध को सरकाइए। कोई रचनात्मक कार्य किया जा सकता है। अपने संयम को क्रोध से शक्ति भी दी जा सकती है, लेकिन कम से कम इतना ध्यान तो रखें कि क्रोध आने पर आपका और आपके आसपास के लोगों का आनंद भंग न हो।
3rd July, 2017