भाजपा को सता रही ब्राह्मणों की नाराजगी, संगठन पर पकड़ बनाने को महेन्द्र पाण्डेय की परीक्षा
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विजय शंकर पंकज
लखनऊ। पिछले पांच माह से उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद की खोज महेन्द्र नाथ पाण्डेय के रूप में पूरी हुई। परन्तु पाण्डेय की संगठन पर अपनी कमान्ड कायम करने की अग्नि परीक्षा भी शून्य डिग्री हो गयी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्षों पर कई बार संगठन महामंत्रियों के वर्चस्व का ऐसा हौव्वा खड़ा होता रहा है कि पार्टी कार्यकर्ता एक धूरी में समा ही नही पाये और राज्य मुख्यालय पर ही अध्यक्ष एवं महामंत्री संगठन के गुट एक दुजे के निशाने पर रहे।
लगभग डेढ़ वर्षो तक अध्यक्ष रहते और विधानसभा चुनाव में भाजपा की भारी बढ़त के बाद भी केशव प्रसाद मौर्य कभी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में स्थापित ही नही हो पाये। इस अवधि में प्रदेश भाजपा पर महामंत्री संगठन सुनील बंसल का ही पूरा प्रभुत्व है और अध्यक्ष उनके इशारे पर काम करने को विवश। केशव मौर्या तो पिछड़ी जाति और प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका में रहकर प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री पद हासिल करने में कामयाब हो गये परन्तु केन्द्रीय मंत्रिमंडल से विदाई लेकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बने महेन्द्र नाथ पाण्डेय के लिए अपने महामंत्री के अधीन काम करने और कार्यकर्ताओं में अपने वर्चस्व का संदेश देने की चुनौती होगी। महेन्द्र नाथ पाण्डेय का महामंत्री संगठन के समक्ष समर्पण ब्राह्मण अस्मिता के लिए भी सवालिया निशान होंगे।
फिलहाल चार वर्षो से पिछड़ों एवं अति दलित समाज को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी भाजपा को पहली बार यह एहसास हुआ कि उत्तर भारत में ब्राह्मणों की अनदेखी कांग्रेस की तरह उसकी भी राजनीति के लिए मठ्ठा साबित न हो। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ब्राह्मणों में भाजपा की राजनीति के कर्णधारों के बीच नकरात्मक संदेश गया। गोरखपुर मंडल में योगी की राजनीति ब्राह्मणवाद के विरोध मानी जाती है, यही वजह रहा कि सरकार के कई निर्णयों ने योगी की ब्राह्मण विरोधी सोच को हवा दे दी।
भाजपा नेतृत्व ने डा. दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाकर ब्राह्मणों को साधने का प्रयास अवश्य किया परन्तु प्रदेश की राजनीति में इस वर्ग के ब्राह्मणों की कोई खास मान्यता न होने के कारण यह तुक्का काम नही आया। ब्राह्मण नेता के रूप में कलराज मिश्र को वेटेज मिला और यही वजह रही कि 75 वर्ष के उम्र के मानक को तोड़ते हुए उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में बनाये रखा गया जबकि उन्ही की समक्ष नजमा हेपतुल्ला को राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया।
भाजपा के समीकरण में देश में ब्राह्मण विरोध का संदेश ऐसे ही नही गया। भाजपा नेतृत्व एनडीए की 18 राज्यों में सरकारें है। परन्तु महाराष्ट्र को छोड़कर किसी भी राज्य में ब्राह्मण मुख्यमंत्री नही है। यही नही उत्तर भारत के भाजपा शासित राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा आदि किसी भी राज्य में ब्राह्मण मुख्यमंत्री नही है जबकि चार प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ तथा राजस्थान के मुख्यमंत्री सभी ठाकुर वर्ग के है। ऐसे हालात में सभी तरह के जातीय समीकरण को साधने में जुटे भाजपा नेताओं को बहुत देर से ब्राह्मण विरोध की भनक लगी तो उनकी छठी इन्द्री ने उन्हे सचेत करना शून्य डिग्री कर दिया।
उत्तर प्रदेश के प्रभावी ब्राह्मण वर्ग को अपने पाले में बनाये रखने की रणनीति के ही तहत भाजपा ने महेन्द्रनाथ पाण्डेय को प्रदेश भाजपा की कमान सौपने का निर्णय किया। महेन्द्र नाथ भाजपा नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अध्यक्ष अमित शाह के विश्वसनीय है। मोदी-शाह के राजनीतिक गठबंधन में व्यक्ति की राजनीतिक योग्यता से विश्वसनीयता एवं निष्ठा ज्यादा महत्वपूर्ण है। फिलहाल उत्तर प्रदेश के जो राजनीतिक हालात है, उसमें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को लगातार दौरे के साथ ही कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। महेन्द्र नाथ पाण्डेय को स्वास्थ्य कारणों से ऐसी स्थिति कष्टदायी साबित होगी।
ऐसे में प्रदेश भाजपा के रणनीतिकार सुनील बंसल को अपना बर्चस्व बनाये रखने में आसानी होगी। केशव प्रसाद मौर्या के अल्पकालिक राजनीतिक जीवन में सांसद और प्रदेश अध्यक्ष के साथ उपमुख्यमंत्री का पद मिल जाना, उस वर्ग के लिए बड़ी उपलब्धि साबित हुई। ऐसे में मौर्य वर्ग के लिए केशव पर सुनील बंसल के बर्चस्व की बात कुछ नही उखरी। इसके विपरीत महेन्द्र नाथ पाण्डेय के खिलाफ स्थितियां अलग है। महेन्द्र पाण्डेय कमजोर अध्यक्ष साबित हुए तो ब्राह्मण वर्ग ही उन्हे ठुकरा देगा।
अपने समय के धुरन्धर संगठन मंत्रियों में हृदयनाथ सिंह, जयप्रकाश चतुर्वेदी तथा रामप्यारे पाण्डेय के समक्ष कल्याण सिंह एवं राजेन्द्र गुप्त जैसे अध्यक्ष भी चुप्पी साध लेते थे। इसी प्रकार नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने वर्षो तक कई प्रदेश अध्यक्षों पर अपना दबदबा बनाये रखा। यहां तक कि नागेन्द्र से संवाद करने के लिए अध्यक्ष उनके कक्ष तक में जाते थे।
इस कड़ी में विनय कटियार ही ऐसे अध्यक्ष हुए जिन्होंने नागेन्द्र को अपनी कमान में रखा। प्रदेश भाजपा के सहायक महामंत्री संगठन बनकर आये सुनील बंसल ने तीन वर्ष के ही अन्तराल में अपने सभी प्रबल प्रतिद्वन्दियांे को किनारे लगा दिया। पहले महामंत्री संगठन राकेश जैन को निष्प्रभावी साबित कर सुनील बंसल ने उन्हे भाजपा की राजनीति से बेदखल किया और उसके बाद प्रभारी ओम प्रकाश माथुर जैसे दिग्गज एवं अनुभवी नेता को भी दिल्ली में बैठने पर मजबूर कर दिया। अमित शाह का वरद हस्त होने के कारण सुनील बंसल की लगातार बल्ले-बल्ले है। ऐसे में महेन्द्रनाथ पाण्डेय की अध्यक्ष पद की मर्यादा एवं आधिप्त्य कायम रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
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स्लाइडशो दोबारा देखेंइस कड़ी में विनय कटियार ही ऐसे अध्यक्ष हुए जिन्होंने नागेन्द्र को अपनी कमान में रखा। प्रदेश भाजपा के सहायक महामंत्री संगठन बनकर आये सुनील बंसल ने तीन वर्ष के ही अन्तराल में अपने सभी प्रबल प्रतिद्वन्दियांे को किनारे लगा दिया। पहले महामंत्री संगठन राकेश जैन को निष्प्रभावी साबित कर सुनील बंसल ने उन्हे भाजपा की राजनीति से बेदखल किया और उसके बाद प्रभारी ओम प्रकाश माथुर जैसे दिग्गज एवं अनुभवी नेता को भी दिल्ली में बैठने पर मजबूर कर दिया। अमित शाह का वरद हस्त होने के कारण सुनील बंसल की लगातार बल्ले-बल्ले है। ऐसे में महेन्द्रनाथ पाण्डेय की अध्यक्ष पद की मर्यादा एवं आधिप्त्य कायम रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी।