भाजपा का दोहरा चेहरा
2 of
5
सीएम योगी का विधान परिषद सदस्य बनने से भाजपा के दोहरे स्वरूप का मानचित्र साफ झलकता है। दिल्ली से लखनऊ तक अब भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी में वह अहमियत नही रह गयी है, जो पिछले साढ़े तीन दर्शकों से पार्टी करती आयी है। भाजपा के स्लोगन में कार्यकर्ताओं की अहमियत को समझाने और उसको महत्व देने के तमाम वादे होते थे परन्तु अब पार्टी में कार्यकर्ता नही"" दुल्हन वही जो पिया मन भाये "" का सिद्धान्त लागू है।
दिल्ली से लखनऊ तक भाजपा कार्यालय अब कार्यकर्ताओं की नही कारपोरेट घराने के इम्प्लाइज का कार्यालय बनकर रह गया है। पूरे कार्यालय परिसर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हुए जिसके माध्यम से कार्यालय में आने-जाने वालों से लेकर कैबिन में बैठे पदाधिकारियों के बातचीत के ब्योरे रिकार्ड किये जाते है। इन रिकार्डो से कभी हंसी-मजाक में भी सही बात का उल्लेख करने वाले कई पदाधिकारियों की छुट्टी भी हो चुकी है।
अब तो हालात यह हो गये है कि राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत भी संगठन मंत्रियों के समक्ष एक मोहरे की हो कर रह गयी है। राज्यों के संगठन मंत्री सीधे तौर पर अमित शाह के दिशा-निर्देश में काम करते है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ज्यादा असर संगठन एवं सरकार पर महामंत्री संगठन सुनील बंसल की है।
सुनील बंसल की शिकायत पर अमित शाह से योगी और पाण्डेय की भी क्लास ले ली जाती है। संगठन में पदाधिकारी बनाने से लेकर सरकार मे मंत्री बनने एवं उनके विभागों के बंटवारे से लेकर अधिकारियों की तैनाती और बड़े प्रोजेक्ट के ठेके देने का निर्णय सुनील बंसल के स्तर से होता है।
सरकार-संगठन पर सुनील बंसल का कब्जा
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ईमानदारी का दावा करने वाले योगी आदित्यनाथ का ऐसे कई मसलों पर सुनील बंसल से तकरार हो चुकी है परन्तु अमित शाह के कारण योगी को ही अपने कदम पीछे खींचने पड़े। भाजपा के इस राजनैतिक चरित्र में योगी का विधानसभा चुनाव न लड़कर विधान परिषद में जाने का यह एक महत्वपूर्ण कारण है।
दूसरा कारण- योगी आदित्यनाथ को कट्टर हिन्दूत्व के चेहरे के रूप में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव तक सामने रखा गया है। केन्द्र सरकार के तीन वर्ष के कार्यकाल के बाद भाजपा नेतृत्व को भी एहसास हो गया है कि अगली बार विकास और भ्रष्टाचार का नारा काम नही आने वाला है। ऐसे में हिन्दूत्व ही भाजपा की नईया पार लगा सकता है। भाजपा के पक्ष में एक पहलू यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का कोई प्रबल प्रतिद्वन्दी नही है।
कांग्रेस नेता के रूप में राहुल अपनी बचकानियों से नेतृत्व का भार नही संभाल पा रहे है तो राज्य स्तर पर बिखरे क्षेत्रीय दल अपनी ही सीमाओं में बंधकर रह गये है। ऐसे में मोदी एवं भाजपा देश की राजनीति में विकल्प हीनता के पोषक बनकर रह गये है। अपने प्रतिद्वन्दी दलालों की अपेक्षा भाजपा ने जातिय आधार पर सभी वर्गो को अपने साथ जोड़ने की वर्षो से मुहिम चला रखी है और उस दिशा में लगातार प्रयास किये जा रहे है जबकि कांग्रेस तथा राज्य के सपा एवं बसपा कुछ जातियों में ही सिमट कर रह गये है।
सपा पर अन्य जातियों की उपेक्षा कर यादव वाद का शिकार होने का आरोप है तो बसपा दलित वर्ग के चमार एवं पासी की जमीन से अपने को मुक्त नही कर पायी है। कांग्रेस के पास अभी तक कोई अपना वोट बैंक नही बच पाया है। इस दिशा में कांग्रेस नेतृत्व दिग्भ्रमित सा है। पिछले चुनाव में आनन-फानन में कांग्रेस ने जिस प्रकार से पहले शीला दीक्षित और फिर से राजबब्बर को सामने लाकर चुनाव लड़ा, उसका नतीजा सिफर रहा। उसके बाद भी कांग्रेस अभी तक अपनी चुनावी दिशा तय नही कर पायी है।
सपा पर अन्य जातियों की उपेक्षा कर यादव वाद का शिकार होने का आरोप है तो बसपा दलित वर्ग के चमार एवं पासी की जमीन से अपने को मुक्त नही कर पायी है। कांग्रेस के पास अभी तक कोई अपना वोट बैंक नही बच पाया है। इस दिशा में कांग्रेस नेतृत्व दिग्भ्रमित सा है। पिछले चुनाव में आनन-फानन में कांग्रेस ने जिस प्रकार से पहले शीला दीक्षित और फिर से राजबब्बर को सामने लाकर चुनाव लड़ा, उसका नतीजा सिफर रहा। उसके बाद भी कांग्रेस अभी तक अपनी चुनावी दिशा तय नही कर पायी है।
विप से योगी का दबदबा कमजोर
विधान परिषद जाकर योगी ने अपना ही राजनीतिक दबदबा कमजोर किया है। असल में चर्चा यह भी है कि भाजपा में कुछ लोग नही चाहते है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी प्रदेश में लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे। इस सिलसिले में दिल्ली से लखनऊ तक भाजपा के कुछ नेताओं का काकस काम कर रहा है। यह काकस योगी को गोरखपुर तथा मठ तक ही सीमित बनाकर रखना चाहता है। योगी की कार्यशैली भी कुछ इसी तरफ इंगित करती है। योगी को उत्तर प्रदेश का प्रशासन भी गोरखपुर मठ की तरह लगता है और उसी प्रकार हर चीज को देखने का उनका नजरिया भी गोरखपुर के ही चस्मे से होता है। यहां तक कि योगी सभी विधायकों को गोरखपुर के अपने कुछ समर्थकों की तरह देखते है जिस पर उनकी दबंगई का हन्टर चलता है।
आपका स्लाइडशो खत्म हो गया है
स्लाइडशो दोबारा देखेंअब तो हालात यह हो गये है कि राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत भी संगठन मंत्रियों के समक्ष एक मोहरे की हो कर रह गयी है। राज्यों के संगठन मंत्री सीधे तौर पर अमित शाह के दिशा-निर्देश में काम करते है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ज्यादा असर संगठन एवं सरकार पर महामंत्री संगठन सुनील बंसल की है।
सुनील बंसल की शिकायत पर अमित शाह से योगी और पाण्डेय की भी क्लास ले ली जाती है। संगठन में पदाधिकारी बनाने से लेकर सरकार मे मंत्री बनने एवं उनके विभागों के बंटवारे से लेकर अधिकारियों की तैनाती और बड़े प्रोजेक्ट के ठेके देने का निर्णय सुनील बंसल के स्तर से होता है।