उपचुनाव: विपक्ष का साझा उम्मीदवार बीजेपी के लिए चुनौती, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर
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विजय शंकर पंकज, लखनऊ। उत्तर प्रदेश मे दो लोकसभा एवं एक विधानसभा की सीटों के होने वाले उपचुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी की परेशानियां बढ़ने लगी है। यह उपचुनाव फरवरी 2018 में होने की संभावना है। इस उपचुनाव में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, क्योकि लोकसभा की यह दोनों ही सीटे इन्ही के इस्तीफे से खाली हुई है। इन सीटों पर विपक्ष की तरफ से साझा प्रत्याशी उतारे जाने की संभावनाओं को देखते हुए भाजपा नेतृत्व चिन्तित हो रहा है। लोकसभा के आम चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की यह दोनों ही सीटों भाजपा को गंवानी पड़ी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मिशन 2019 को भारी झटका लग सकता है। विपक्ष की कमजोरी और बिखराव को देखते हुए भाजपा मिशन 2019 में सभी 80 सीटों पर जीत की रणनीति बना रही है। प्रदेश के उपचुनाव में यदि विपक्ष संयुक्त प्रत्याशी उतारता है तो वर्ष 1993 के बाद यह पहला मौका होगा जब भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता होगी।
सूत्रों के अनुसार भाजपा के बढ़ते जनाधार से हताश विपक्ष ने लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को मात देने के लिए संयुक्त प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है। इस रणनीति के तहत बसपा, सपा एवं कांग्रेस नेताओं में उच्चस्तरीय वार्ता चल रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अमरीका से वापस लौटने पर इस पर अन्तिम निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व उपचुनाव में अपना प्रत्याशी न उतारकर संयुक्त विपक्ष को समर्थन देने के पक्ष में है। ऐसे में संयुक्त विपक्ष की पूरी मुहिम सपा-बसपा गठबंधन पर आश्रित है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा के खिलाफ मुहिम में बसपा से अपने रिश्ते में सुधार करते हुए गठबंधन की पहल की है। मायावती भी संगठन और चुनावी रणनीति के देखते हुए सपा से गठबंधन को लेकर नकरात्मक रूख नही अपना रही है।
सपा और कांग्रेस पहले से ही गठबंधन की राजनीति पर काम कर रहे है। इसी के तहत सपा-कांग्रेस प्रदेश में बसपा को अपने साथ लेने को तैयार है। इस कड़ी में सपा-कांग्रेस ने पहला मौका बसपा को ही देने का मन बनाया है। संयुक्त विपक्ष का पहला मोर्चा फूलपुर लोकसभा सीट पर है, जहां से बसपा सुप्रीमों मायावती को संयुक्त विपक्ष का प्रत्याशी बनाये जाने की रणनीति बनायी जा रही है। राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद मायावती अभी किसी भी सदन की सदस्य नही है और 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व उनके चुनाव लड़ने या किसी सदन का सदस्य होने की संभावना नही है। मई-जून 2018 के राज्यसभा चुनाव में भी मायावती के विपक्ष के सहयोग के बिना चुनाव जीतना संभव नही है। ऐसे में मायावती को उससे पहले ही फूलपुर से विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ने का आमन्त्रण दिया जा रहा है।
प्रदेश में उपमुख्यमंत्री बनने के बाद से केशव प्रसाद मौर्य की अपने क्षेत्र में जनाधार ज्यादा गिरा है और भाजपा कार्यकर्ता भी नाराज चल रहे है। केशव मौर्य की गिरती साख को देखते हुए विपक्ष को आशा है कि संयुक्त विपक्ष के रूप में मायावती जैसा बड़ा नाम प्रत्याशी बनता है तो भाजपा प्रत्याशी को हराना आसान होगा। यहां से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मायावती का अपने पार्टी को मजबूत करने तथा कार्यकर्ताआंे का मनोबल बढ़ाने का मौका मिलेगा।
सूत्रों के अनुसार मायावती विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है। इसी प्रकार गोरखपुर की लोकसभा सीट से संयुक्त प्रत्याशी के रूप में पंडित हरिशंकर तिवारी को प्रत्याशी बनाये जाने को लेकर चर्चा गरम है। योगी के मुख्यमंत्री बनने और ठाकुर अधिकारियों को महत्व देने की चर्चाओं के बीच पूर्वी यूपी के ब्राह्मणों में काफी नाराजगी है। हालांकि ब्राह्मणों की नाराजगी और योगी के ठाकुरवाद की राजनीति को बैलेन्स करने के लिए भाजपा ने महेन्द्र नाथ पाण्डेय को प्रदेश अध्यक्ष तथा गोरखपुर के राज्यसभा सांसद शिवप्रताप शुक्ल को केन्द्र में वित्त राज्यमंत्री बनाकर आक्रोश को शान्त करने का प्रयास किया गया है। इसके बाद भी संभावना है कि हरिशंकर तिवारी जैसे बड़े नाम के प्रत्याशी के सामने आने पर भाजपा को गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में भारी मशक्कत करना पड़ेगा। हरिशंकर तिवारी फिलहाल लोकतांत्रिक कांग्रेस के अध्यक्ष है और उनके संयुक्त प्रत्याशी बनाये जाने पर पूर्वी यूपी में भाजपा के खिलाफ ब्राह्मण-ठाकुर की बढ़ती खाई को और चौड़ा करने में मदद मिलेगी जिसका फायदा बाद के चुनावों में विपक्ष को मिलेगा। विपक्ष के लिए सबसे पहले भाजपा के साथ जुटते जातीय गठबंधन में दरार डालना है। लोकसभा के उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी के रूप में मायावती और हरिशंकर तिवारी का नाम आने पर प्रदेश की राजनीति में दलित, ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम का बड़ा कम्बिनेशन बनेगा जो भाजपा के लिए अच्छी-खासी मुसीबत खड़ा कर सकता है। यह रणनीति काम कर गयी तो भाजपा के मिशन 2019 को झटका देने में विपक्ष सफल हो सकता है।
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स्लाइडशो दोबारा देखेंसूत्रों के अनुसार मायावती विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है। इसी प्रकार गोरखपुर की लोकसभा सीट से संयुक्त प्रत्याशी के रूप में पंडित हरिशंकर तिवारी को प्रत्याशी बनाये जाने को लेकर चर्चा गरम है। योगी के मुख्यमंत्री बनने और ठाकुर अधिकारियों को महत्व देने की चर्चाओं के बीच पूर्वी यूपी के ब्राह्मणों में काफी नाराजगी है। हालांकि ब्राह्मणों की नाराजगी और योगी के ठाकुरवाद की राजनीति को बैलेन्स करने के लिए भाजपा ने महेन्द्र नाथ पाण्डेय को प्रदेश अध्यक्ष तथा गोरखपुर के राज्यसभा सांसद शिवप्रताप शुक्ल को केन्द्र में वित्त राज्यमंत्री बनाकर आक्रोश को शान्त करने का प्रयास किया गया है। इसके बाद भी संभावना है कि हरिशंकर तिवारी जैसे बड़े नाम के प्रत्याशी के सामने आने पर भाजपा को गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में भारी मशक्कत करना पड़ेगा। हरिशंकर तिवारी फिलहाल लोकतांत्रिक कांग्रेस के अध्यक्ष है और उनके संयुक्त प्रत्याशी बनाये जाने पर पूर्वी यूपी में भाजपा के खिलाफ ब्राह्मण-ठाकुर की बढ़ती खाई को और चौड़ा करने में मदद मिलेगी जिसका फायदा बाद के चुनावों में विपक्ष को मिलेगा। विपक्ष के लिए सबसे पहले भाजपा के साथ जुटते जातीय गठबंधन में दरार डालना है। लोकसभा के उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी के रूप में मायावती और हरिशंकर तिवारी का नाम आने पर प्रदेश की राजनीति में दलित, ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम का बड़ा कम्बिनेशन बनेगा जो भाजपा के लिए अच्छी-खासी मुसीबत खड़ा कर सकता है। यह रणनीति काम कर गयी तो भाजपा के मिशन 2019 को झटका देने में विपक्ष सफल हो सकता है।