बेटा अखिलेश ही राजनीतिक उत्तराधिकारी, भाई शिवपाल की नही गली दाल
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विजय शंकर पंकज, लखनऊ। प्रदेश के सबसे बड़े यादव परिवार में मचे घमासान के बीच आखिरकार अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित हो ही गये। इस बीच अखिलेश की मयभा (सौतेली) महतारी साधना के साथ परिवार की राजनीति में तोड़फोड़ करने की शिवपाल सिंह यादव की पिछले एक वर्ष से चल रही दुलत्ती चाल फ्लाप साबित हुई। इस बीच पिता-पुत्र के रिश्तों में खटास के लेकर तमाम चर्चाएं चली परन्तु अखिलेश का अन्तिम रामबाण ही साबित हुआ कि नेता जी (मुलायम सिंह यादव) मेरे पिता है और इस रिश्ते से मुझे कोई अलग नही कर सकता है। पिता-पुत्र के इस रिश्ते मे बीच विभिषण बने शिवपाल यादव ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन यही दांव पर लगा दिया और अन्त में सत्ता के मोह में शिवपाल को अज्ञातवास ही हाथ लगा।
शिवपाल यादव अपनी यादवी समझ से ही राजनीति करते रहे। शिवपाल के नजदीकियों में हमेशा ही असामाजिक तत्वों का ही बोलबाला रहा। शिवपाल की नजदीकियां समाज एवं राजनीतिक के बहुत ही निम्न सोच के लोगों से मिलती जुलती थी और उनके साथ ऐसे ही तत्वों को बढावा दिया। मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन में कुछ प्रभावशाली एवं समाज के अराजकतत्वों का प्रभाव जरूर रहा परन्तु उनका राजनीतिक इस्तेमाल उतना ही होता था, जितना पार्टी के आर्थिक एवं जातीय पहलू को प्रभावित करता था। इसके अलावा मुलायम के रहते ऐसे तत्व कभी संगठन पर हावी नही हो सके। मुलायम के बाद सपा में ऐसे तत्वों को प्रभावी होने का मौका शिवपाल यादव ने दिया और यह दायरा और ही निम्नतम स्तर पर चलता चला गया। मुलायम के राजनीतिक जीवन में महिलाओं को कभी मोहरा नही बनाया गया परन्तु शिवपाल ने ऐसे तत्वों की भरमार कर दी।
मुलायम सिंह यादव के 50 वर्ष के राजनीति में उनके चारित्रिक जीवन पर कभी अंगुली नही उठी। कुछ ऐसी ही खासियत अखिलेश के भी राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में है। इससे आगे बढ़कर अखिलेश के सांसद एवं उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते कभी भ्रष्टाचार का प्रमाणित आरोप नही लगा। इसके विपरीत शिवपाल सिंह यादव के क्रियाकलापों पर हमेशा ही चारित्रिक एवं भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे है। सपा में शिवपाल यादव के माध्यम से जैसे तत्वों को बढ़ावा दिया गया, उससे भी उनके क्रियाकलापों पर अंगुलिया उठती रही है।
प्रदेश के इस सबसे बड़े यदुवंश में वर्ष 2015 से जबसे पारिवारिक विवाद छिड़ा है तबसे लगभग चार बार शिवपाल अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटाने के अभियान के साथ ही पार्टी से भी बेदखल करने की कोशिश कर चुके है। अखिलेश जब सपा की आमसभा बुलाकर विधानसभा चुनाव से पूर्व अपने को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करा लिया, उसके बाद भी शिवपाल पार्टी को तोड़ने तथा मुलायम सिंह यादव से अलग संगठन बनाने का लगातार प्रयास करते आ रहे है। इस कार्य में शिवपाल को अप्रत्यक्ष रूप में भाभी साधना का भी सहयोग मिल रहा है।
आज दूसरी बार प्रेस कान्फ्रेंस में मुलायम सिंह यादव को अलग पार्टी बनाने की घोषणा का मसौदा पकड़ाया गया परन्तु मुलायम ने उस हिस्से को नही पढ़ा और नही अखिलेश को राजनीतिक रूप से बेदखल करने की घोषणा की। हां यह ठीक है कि मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि वह उसके क्रिया कलाप से खुश नही है। किसी भी बाप-बेटे में ऐसी नाराजगी कई बार होती है परन्तु अन्त में फैसला हमेशा ही बेटे के पक्ष में जाता है।
आखिरकार शिवपाल की इस राजनीतिक दांव पर विचारणीय यह है कि वह मुलायम सिंह की आड़ में कौन सा खेल खेलना चाहते है। उम्र के इस पड़ाव में कोई नयी पार्टी बनाकर मुलायम सिंह यादव फिलहाल कोई राजनीतिक मुकाम हासिल करने की स्थिति में नही है। मुलायम के नाम पर अलग पार्टी बनाकर शिवपाल केवल अखिलेश को कमजोर करने का ही प्रयास कर सकते है। शिवपाल यदि अपने को राजनीतिक रूप से इतना ही सक्षम मानते है तो उन्हे मुलायम सिंह यादव की आड़ नही लेनी चाहिए।
परिवार के झगड़े में एक राजनीतिक दल को कमजोर करने की कोशिश समाज के एक वर्ग के खिलाफ ही मानी जाएगी। अखिलेश का एक समय संरक्षक रहने वाले शिवपाल समझदारी से काम लेते हुए वही पुरानी भूमिका निभाये तो परिवार और पार्टी का भी भला होगा। इस विवाद में तो अखिलेश एक परिपक्व राजनीतिज्ञ के रूप में उभर रहे है। विधानसभा चुनाव के बाद सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सफल बैठक बुलाकर अखिलेश ने अपने नेतृत्व को मजबूत कर लिया है। शिवपाल यादव शायद अपने परिवार अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव का पिछला स्वरूप भूल गये है।
घटना वर्ष 2005 की है जब पहली बार यादव परिवार में संपत्ति को लेकर विवाद शुरू हुआ। तब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और शिवपाल यादव नंबर दो के मिनी मुख्यमंत्री कहे जाते थे। तब अखिलेश लखनऊ से दूर मात्र एक सांसद थे और प्रदेश की राजनीति में उनकी कोई दखलन्दाजी नही थी। मुलायम की संपत्ति के इस बंटवारे में पत्नी साधना तथा उनके पुत्र प्रतीक को अखिलेश के ही समक्ष आर्थिक संपदा का आबंटन हुआ। इसी पारिवारिक वार्ता में जिसमें शिवपाल की अहम भूमिका थी, मुलायम सिंह यादव ने पत्नी साधना तथा प्रतीक को साफ कर दिया था कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी अखिलेश ही होगा और साधना तथा प्रतीक इसमें कोई हस्तक्षेप नही करेंगे। परिवार में यह बात सर्वमान्य कर ली गयी थी। इसमें शिवपाल भी मजबूती के साथ तब अखिलेश के साथ थे।
क्योकि तब अखिलेश अपने चचा शिवपाल की हर बात में बात मिलाते थे और प्रदेश की राजनीति में किसी तरह का हस्तक्षेप नही करते थे।
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स्लाइडशो दोबारा देखेंपरिवार के झगड़े में एक राजनीतिक दल को कमजोर करने की कोशिश समाज के एक वर्ग के खिलाफ ही मानी जाएगी। अखिलेश का एक समय संरक्षक रहने वाले शिवपाल समझदारी से काम लेते हुए वही पुरानी भूमिका निभाये तो परिवार और पार्टी का भी भला होगा। इस विवाद में तो अखिलेश एक परिपक्व राजनीतिज्ञ के रूप में उभर रहे है। विधानसभा चुनाव के बाद सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सफल बैठक बुलाकर अखिलेश ने अपने नेतृत्व को मजबूत कर लिया है। शिवपाल यादव शायद अपने परिवार अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव का पिछला स्वरूप भूल गये है।