विजय शंकर पंकज, लखनऊ। पिछले 6 माह से भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जो माहौल बन रहा था उसे उत्तर प्रदेश की जनता ने निकाय चुनाव में नकार दिया। निकाय चुनाव में जिस प्रकार भाजपा का परचम लहराया है, वह अभी तक कभी नही हुआ। यह जरूर होता रहा है कि महानगरों में भाजपा को जीत मिल जाती थी परन्तु जिला पंचायत एवं नगर पंचायतों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ता था। इस बार यह पहला मौका है कि महानगरों के साथ ही जिला एवं नगर पंचायतों में भी भाजपा ने अपनी जीत का झंडा गाड़ा है। सबसे महत्वपूर्ण मामला नये महानगरों सहारनपुर, फिरोजबाद, मथुरा एवं अयोध्या में भाजपा ने बाजी मार ली। इसमें सहारनपुर एवं मथुरा भाजपा के लिए काफी कठीन माना जा रहा था। निकाय चुनाव ने केन्द्र की मोदी सरकार के वित्तीय अनुशासन के विवादास्पद मामलों और योगी सरकार के काम ठप होने की शिकायतों को दरकिनार कर अपनी मुहर लगा दी है। इससे साफ हो गया है कि व्यापारी वर्ग के टैक्स को लेकर तमाम आरोपों के बाद जनता ने जीएसटी की परेशानियों को नकार दिया है। प्रदेश के निकाय चुनाव ने विपक्ष की विफलता और बिखराव को भी उजागर कर दिया है। निकाय चुनाव ने विपक्षी दलों को मजबूरी में अपने अस्तित्व के लिए एका करने का भी संदेश दे दिया है। उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में तीनों प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस, सपा एवं बसपा एकजुट नही होते तो उसके लिए भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
जनसंघ के समय से ही भाजपा को शहरों की पार्टी माना जाता रहा है। इसमें धार्मिक स्थलों को छोड़कर कुछ महानगरों में भाजपा को शिकस्त भी मिलती रही है। महानगरों के अलावा जिला पंचायतों एवं नगर पंचायतों में भी 60 प्रतिशत से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कर मजबूत स्थिति दर्ज की है। इसी वर्ष की शुरूआत में भाजपा को प्रदेश विधानसभा के चुनाव में जो जबरदस्त बहुमत मिला था, उस पर 8 माह बाद भी जनता ने निकाय चुनाव में मुहर लगा दी है। इन 8 माह में जीएसटी को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार पर तमाम आरोप लग रहे थे। वही यूपी में भाजपा की सरकार बनते ही स्लाटर हाउस पर प्रतिबंध तथा खनन को लेकर जिस प्रकार कठोर आदेश जारी किये गये, उससे राज्य में बेरोजगारी बढ़ी तथा विकास कार्य मंद हुआ। इन मुद्दों को लेकर योगी सरकार की तमाम तरह की आलोचनाएं हो रही थी। इन आलोचनाओं को दूर करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निकाय चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर पहली बार सभी महानगरों के साथ ही महत्वपूर्ण जिला पंचायतों में भी धुआंधार प्रचार किया। इसमें संगठन को भी सक्रिय किया गया। भाजपा ने पहले ही जातीय समीकरण को साधे रखने का प्रयास किया।
भाजपा के खिलाफ विपक्ष ने निकाय चुनाव को बहुत ही हलके में लिया। विधानसभा चुनाव में एकता करने वाले सपा एवं कांग्रेस नेता निकाय चुनाव में अपना माहौल नही बनाये रखा। इस चुनाव में सर्वाधिक नुकसान सपा को हुआ है। पिछले निकाय चुनाव में सपा ने जिला एवं नगर पंचायतों में अच्छी सफलता हासिल की थी परन्तु अब उसे अपना अस्तित्व बचाये रखने का संकट पैदा हो गया है। बसपा के लिए निकाय चुनाव सुखद एहसास करा गये है और लोकसभा चुनाव से पूर्व पार्टी नये समीकरण पर विचार करती है तो उसे लाभ मिलेगा। निकाय चुनाव में सर्वाधिक फजीहत कांग्रेस की हुई है। कांग्रेस के गढ़ रायबरेली और अमेठी में भी पार्टी को भारी खामियाजा भुगतना पड़ा है। इसी प्रकार पारिवारिक झगड़े में उलझी सपा के गरूर को ठेस लगी है। बसपा ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत कर अपनी साख रखी है। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पूर्व विपक्षी दलों की एकता पर चर्चा होती है तो बसपा अपने प्रभाव का दबाव बना सकती है। इससे सबसे खराब स्थिति सपा की होगी। चुनाव से पूर्व भी सपा ने निकाय चुनाव को गंभीरता से नही लिया और सपा अध्यक्ष अखिलेश बचकानी बयानबाजी में ही उलझे रहे। ऐसे में सपा और बसपा को अपने अहंम को दर किनार कर राजनीतिक अस्मिता को बनाये रखने के लिए एकजुटता करनी होगी।
विजय शंकर पंकज, लखनऊ। पिछले 6 माह से भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जो माहौल बन रहा था उसे उत्तर प्रदेश की जनता ने निकाय चुनाव में नकार दिया। निकाय चुनाव में जिस प्रकार भाजपा का परचम लहराया है, वह अभी तक कभी नही हुआ। यह जरूर होता रहा है कि महानगरों में भाजपा को जीत मिल जाती थी परन्तु जिला पंचायत एवं नगर पंचायतों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ता था। इस बार यह पहला मौका है कि महानगरों के साथ ही जिला एवं नगर पंचायतों में भी भाजपा ने अपनी जीत का झंडा गाड़ा है। सबसे महत्वपूर्ण मामला नये महानगरों सहारनपुर, फिरोजबाद, मथुरा एवं अयोध्या में भाजपा ने बाजी मार ली। इसमें सहारनपुर एवं मथुरा भाजपा के लिए काफी कठीन माना जा रहा था। निकाय चुनाव ने केन्द्र की मोदी सरकार के वित्तीय अनुशासन के विवादास्पद मामलों और योगी सरकार के काम ठप होने की शिकायतों को दरकिनार कर अपनी मुहर लगा दी है। इससे साफ हो गया है कि व्यापारी वर्ग के टैक्स को लेकर तमाम आरोपों के बाद जनता ने जीएसटी की परेशानियों को नकार दिया है। प्रदेश के निकाय चुनाव ने विपक्ष की विफलता और बिखराव को भी उजागर कर दिया है। निकाय चुनाव ने विपक्षी दलों को मजबूरी में अपने अस्तित्व के लिए एका करने का भी संदेश दे दिया है। उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में तीनों प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस, सपा एवं बसपा एकजुट नही होते तो उसके लिए भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
1st December, 2017