बयानबाजी के निम्न स्तर पर उतरे नेता, भाजपा के जातीय गठबंधन गुजरात में भाजपा का विकास माडल फेल
बयानबाजी के निम्न स्तर पर उतरे नेता, भाजपा के जातीय गठबंधन में सेंध
राजेन्द्र द्विवेदी, अहमदाबाद (गुजरात)। गुजरात के 19 जिलों की 89 सीटों पर प्रथम चरण में हुए मतदान के बाद भारतीय जनता पार्टी की सांसे अटक गयी है। इन 89 में से 63 भाजपा तथा 22 सीटें कांग्रेस की थी। इस बार पासा पलटा हुआ लगता है। गुजरात में दलित-मुस्लिम गठबंधन के साथ ही पाटीदारों की कांग्रेस के साथ सहभागिता ने पिछले ढाई दशक से चल रहे भाजपा के जातीय समीकरण को गड़बड़ा दिया है। भाजपा में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी पार्टी नेतृत्व पर भारी पड़ रहा है। पूरे चुनावी माहौल में भाजपा कार्यकर्ता प्रचार से कतराते दिखे तो कांग्रेस और उसके सहयोगी गुटों में भारी उत्साह रहा। इस बार कम वोट प्रतिशत भी भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है।
पहले चरण में गुजरात में जिन क्षेत्रांे में मतदान हुआ, उसमें सौराष्ट्र के 11, दक्षिण गुजरात के 7 तथा कच्छ का एक जिला है। गुजरात में 2002 के मोदी राज से लगातार हुए चुनावों में भाजपा का ग्राफ नीचे जाता रहा है। गुजरात दंगे के बाद कट्टर हिन्दू छवि के रूप में उभरे मोदी को 2002 में 49.85 प्रतिशत मत मिला तो 2007 में घटकर 49.12 प्रतिशत रह गया। इस वोट प्रतिशत के छोटे अन्तराल के बाद भी भाजपा को 10 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। 2002 में भाजपा को 127 सीटे मिली तो 2002 में घटकर 117 रह गयी। इसके बाद 2012 में भाजपा को 47.85 प्रतिशत मत मिला और सीटें घटकर 115 रह गयी। 2012 के चुनाव में 72 प्रतिशत मतदान हुआ था जो अभी पहले चरण में घटकर 68 प्रतिशत ही रह गया है। पहले चरण के चुनावी ट्रेन्ड से साफ हो रहा है कि वोट प्रतिशत की कमी भाजपा के लिए भारी पड़ सकती है। भाजपा कार्यकर्ताओं की उदासीनता के चलते मत प्रतिशत में कमी आयी है तो विपक्षी दलों के कांग्रेसी गठबंधन में अति उत्साह से वहां का वोट प्रतिशत बढ़ने के कयास लगाये जा रहे है।
गुजरात के नायक के रूप में उभरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद दूसरी श्रेणी का नेतृत्व नही रह गया है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजराज के दो भाजपाई मुख्यमंत्री बने आनन्दी बेन तथा विजय रूपाणी जनता की आकांछाओं में खरा नही उतरे। रूपाणी राज में ही पिछले दिनों आयी बाढ़ से तबाह लोगों में खासी नाराजगी है। गुजरात विकास का जो माडल दिखाकर नरेन्द्र मोदी ने देश के समक्ष जो खाका खींचा था, वह अब साढ़े तीन वर्ष की केन्द्र सरकार के बाद ही हाशिये पर चला गया है। पिछले एक माह से गुजरात चुनाव में जुटे नरेन्द्र मोदी खुद ही अपनी जनसभाओं में अब गुजरात के विकास का जिक्र न कर भावनात्मक राग अलाप रहे है। गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए मोदी के ही फार्मूले का ईजाद किया। इसमें भाजपा के जातीय गठबंधन को तोड़ने के लिए कांग्रेस ने पाटीदारों के युवा नेता हार्दिक पटेल, पिछड़े वर्ग के नेता अल्पेश ठाकर तथा दलित युवा नेता जिग्नेश को साथ मिलाकर भाजपा के समक्ष कड़ी चुनौती पेश की। पहले तो भाजपा ने इनमें तोड़फोड़ कर कांग्रेसी गठबंधन को कमजोर करने का प्रयास किया परन्तु युवा लावी को मिलते समर्थन तथा जातीय समीकरण ने भाजपा रणनीतिकारों को नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया। कांग्रेस के इस जातीय गठबंधन का प्रभाव है कि मोदी को अब गुजराती अस्मिता की आड़ लेकर झोली फैलानी पड़ रही है। इस चुनावी दंगल में कांग्रेस से लेकर भाजपा नेताओं ने एक दूसरे पर जिस प्रकार से हलकी और सतही बयानबाजी की, उससे गुजराती ही नही पूरे देश की जनता राजनीतिक क्षरण को लेकर चिन्तित है। भाजपा ने गुजरात चुनाव को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अस्मिता से जोड़ दिया है। इस चुनाव में भाजपा ने अपने सारे हथकंडे अपनाये और पूरे देश से कार्यकर्ताओं को इक्कठा कर चुनाव अभियान में लगाया है। दर्जनों केन्द्रीय एवं राज्यों के मंत्री गुजरात में डेरा डाले हुए है। भाजपा नेता भी मान रहे है कि गुजरात का चुनाव मोदी की लोकप्रियता तथा गुजराती अस्मिता के साथ ही अमित शाह के राजनैतिक मैनेजमेंट की परीक्षा है।
10th December, 2017