यूरिड मीडिया टीम, अहमदाबाद। दूसरे चरण मतदान के लिए मात्र 24 घंटे शेष बचे है। आज शाम प्रचार बंद हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रचार के अंतिम दिन जाति एवं धर्म के आधार पर मतदाताओं को लुभाने का अंतिम प्रयास कर रहे है।
दोनों दल पिछले तीन महीनों से एक दूसरे पर गंभीर आरोप और प्रत्यारोप लगा रहे है। बीजेपी जहां मोदी के चेहरे और भाजपा के गुजरात के 22 वर्षों के सुशासन और विकास के नारे पर 150 सीटों पर जीतने का दावा कर रही है। वहीं कांग्रेस राहुल गांधी के आक्रामक राजनीति और मोदी सरकार की असफलताओं तथा दलित मुस्लिम और पाटीदार तथा जीएसटी एवं नोटबंदी से नाराज मतदाताओं के आधार पर दो तिहाई बहुमत का दावा कर रही है। इन्ही दावों के बीच प्रथम चरण में सौराष्ट्र, कच्छ और दक्षिण गुजरात के 19 जनपदों के 89 सीटों पर मतदान 9 दिसम्बर को हो चुके है। इस बार मतदान 2012 की तुलना में 3 फीसदी कम हुआ है। दूसरे चरण मध्य गुजरात की 8 और उत्तर गुजरात की 6 जनपदों की 93 सीटों के मतदान 14 दिसम्बर को होंगे। गुजरात चुनावों पर urid media group की टीम ने गुजरात का व्यापक दौरा किया। दो हफ्तों के दौरों में कच्छ, सौराष्ट्र, मध्य गुजरात और दक्षिण तथा उत्तर गुजरात के 19 जनपदों में मतदाताओं से urid media की टीम रूबरू हुई। सभी जाति, धर्म आयु और क्षेत्र के मतदाताओं से रूबरू होने के बाद और गुजरात विधानसभा चुनावों के पुराने चुनावी परिणामों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि 2017 विधानसभा चुनाव को पिछले चुनाव परिणामों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। प्रत्येक चुनाव के अपने मुद्दे और स्थानीय धार्मिक व जातीय समीकरण रहे है। 1985 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस का स्वर्णिम कार्यकाल माना जाता है। इस चुनाव में कांग्रेस 56 फीसदी मतों के साथ 147 सीटों पर कब्जा करने में कामयाब रही है। इस चुनाव के बाद 1990 से गैर कांग्रेसी सरकारों का दौर शुरू हुआ। जिसमें सुरेश मेहता, केशुभाई पटेल, शंकर वघेला ने भी गुजरात की बागडोर संभाली। अकतूबर 2001 से 22 मई 2014 तक नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री रहे। 2002, 2007, 2012 तीन विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा गया। जिसमें भाजपा को लगातार सफलता मिलती रही। 2002 में 49.85 फीसदी मत और 127 सीट 2007 में 49.12 फीसदी मत और 117 सीट तथा 2012 विधानसभा चुनाव में 47.85 फीसदी मत और 115 सीटें भाजपा को मिली। जबकि कांग्रेस को 2002 को 38.28 फीसदी मत 51 सीट 2007 में 38 फीसदी मत 59 सीट और 2012 में 38.93 फीसदी मत और 61 सीटें मिली। इन तीनों चुनावों में गुजरात के आरक्षित 39 सीटों में से कांग्रेस को हमेशा 18 से 20 सीटें मिलती रही है। पिछले चुनाव में बीजेपी का हिंदुत्व एवं जातीय समीकरण काफी मजबूत थे जो 2017 में दरकतें नजर आ रहे है। गैर कांग्रेसी सरकारों के 22 वर्षों के इतिहास में यह पहला मौका है जब कांग्रेस नेतृत्व राहुल गांधी सीधे मोदी को चुनौती देने के लिए गुजरात चुनाव में उतरे है। इसके पहले गुजरात चुनाव सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के सुझावों एवं रणनीत पर कांग्रेस नेतृत्व लड़ता रहा है। जिसका परिणाम यह रहा कि राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के गृह जनपद भरूच में 2012 में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था। इसलिए इस चुनाव में पटेल को दूर रखा गया। भाजपा छोडकर कांग्रेस में शामिल होने वाले शंकरसिंह वाघेला की भी चाल राहुल गांधी के आक्रामक तेवर के सामने नहीं चली और वाघेला कांग्रेस छोडकर नई पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में है। अन्य राजनीतिक दल सपा, बसपा, एनसीपी, जीपीपी का कोई वजूद नहीं है। उपरोक्त चुनावी आकड़ें का समीकरण वर्तमान 2017 विधानसभा चुनाव में बदले चुनावी माहौल का आधार नहीं बन सकते है।
urid media group की टीम ने 19 जिलों के लगभग 1500 किमी की चुनावी सफर में मतदाताओं से रूबरू होकर उनकी राय जानी। उससे यह स्पस्ट दिखाई दे रहा है कि बीजेपी के साथ कोई नया मतदाताओं का समीकरण नहीं बना है। बल्कि जिस जातीय, धार्मिक समीकरण के आधार पर बीजेपी चुनाव जीतती रही है उन सभी में सेंध लगी है और कांग्रेस सेंध लगाने में सफल दिखाई दे रही है। भाजपा का सबसे मजबूत आधार वोटबैंक और गुजरात में महत्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका निभाने वाला पाटीदार समुदाय हार्दिक पटेल जैस युवा नेतृत्व मे भाजपा को कड़ी चुनौती दे रहा है। जिग्नेश मेवानी और अलपेश ठाकोर के नेतृत्व मेँ दलित और पिछड़े समुदाय को भाजपा से दूर ले जाने मेँ सफल दिखाई दे रहा है। जीएसटी एवं नोटबंदी से व्यापारी वर्ग भी जो भाजपा का आधार वोटबैंक है वह भी नाराज है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी से गुजरात की जनता को जो अपेक्षाएँ थी वह भी पूरी होती नहीं दिख रही है। भाजपा का मूल कैडर अमित शाह के कार्यशैली से भी संतुष्ट नहीं है। इस प्रकार 2017 मेँ भाजपा के पुराने समीकरण मेँ सेंध लगी है। प्रथम चरण मतदान के दौरान सर्वे टीम ने जामनगर, राजकोट के कई बूथों पर मतदाताओं की रुझान को भी देखा। जिसमें स्पष्ट लग रहा था कि भाजपा खेमें मेँ उत्साह कम और कांग्रेस के खेमों मेँ ज्यादा आक्रामकता दिखाई दी। प्रथम चरण मेँ मतदान हुये है उनमें कच्छ, सौराष्ट क्षेत्र के अमरेली, भावनगर, बोहट, देवभूमि द्वारका गिर सोमनाथ, जामनगर जूनागढ़, मोरबी, पोरबंदर, राजकोट और सुरेन्द्र नगर की 54 सीटें शामिल है। इनमें से भाजपा को 35 और कांग्रेस को 16 सीटें है।
दक्षिण गुजरात के जिन 7 जनपदों मेँ डांग, भरूच, नर्मदा, नवसारी, सूरत, तापी एवं बलसाड़ की 35 सीटें है। इनमें भाजपा को 28 कांग्रेस को 6 और अन्य को चार सीटें मिली थी। इस प्रकार प्रथम चरण के 89 सीटों मेँ से भाजपा को 63 कंगेस को 22 और अन्य की चार सीटें थी। इनमें सूरत की 16 मेँ से 15 सीटें भाजपा को मिली थी। कांग्रेस की मात्र 1 सीट थी। सूरत एक व्यवसायिक जनपद है जहां पर व्यापारियों ने 2012 मेँ तमाम संभावनाओं को लेकर अप्रत्याशित मदद भाजपा को की थी जिसमें उसे 16 मेँ से 15 सीट मिली थी। नोटबंदी एवं जीएसटी का सर्वाधिक प्रभाव सूरत मेँ दिखाई दिया। भाजपा और कांग्रेस के रैलियों मेँ भी स्पष्ट रूप से मतदाताओं के रुझान कांग्रेस के पक्ष मे दिखी। पाटीदार समुदाय के युवा नेता हार्दिक पटेल की रैली ने बड़ी भारी संख्या मेँ भीड़ थी जबकि भाजप के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, अमित शाह सहित भाजपा के अन्य नेताओं की रैलिया कमजोर रही। यही स्थिति भावनगर जनपद मेँ रही। जहां पर 7 मेँ से 6 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। प्रथम चरण के मतदान की रुझान मतदाताओं का रुख और 2012 के चुनावी परिणाम का विश्लेषण करने से स्पष्ट लग रहा है कि कांग्रेस प्रथम चरण मेँ भारी रही है। आकड़ों का फिगर भाजपा के पक्ष मेँ नहीं कांग्रेस के साथ ही दिखाई दे रहा है। जनपदों की सर्वे रिपोर्ट और पुराने चुनावी परिणाम स्थानीय जातीय और धार्मिक समीकरण को देखते हुये यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस की सीटें 2012 की तुलना मेँ दो गुनी हो सकती है। सर्वे रिपोर्ट जारी...
12th December, 2017