विजय शंकर पंकज, लखनऊ।
देश की आजादी के 70 वर्षो बाद भी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया मेँ हिन्दू समाज दोयम दर्जे का ही बना हुआ था। विभिन्न जातियों और उपवर्गो मेँ बंटे भारतीय समाज के हिन्दू वर्ग मेँ एकता को लेकर हमेशा ही संशय की स्थिति रहती थी। यही कारण था कि चुनावी जीत के लिए हमेशा से ही राजनीतिक दल मुस्लिम समाज को ही वरीयता देते थे। कारण साफ था कि मुस्लिम वर्ग अपनी पसन्द-नापसन्द के हिसाब से ज्यादा एकजुटता दिखाता था। मुस्लिम समाज की इस रणनीति का ही परिणाम रहा कि ज्यादातर दलों ने मुस्लिम समाज को वोट बैंक बनाकर रख दिया। इस कड़ी मेँ पहले जनसंघ और बाद मेँ भारतीय जनता पार्टी ने ही मुस्लिम तुष्टिकरण से अपने को अलग रखते हुए हिन्दू समाज की एकता पर बल दिया। हिन्दू समाज की इस एकता पर भाजपा के धार्मिक मुलम्मे ने एतिहासिक काम किया। वर्ष 1991 मेँ पहली बार अयोध्या प्रकरण ने भारत के तीन वड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान मेँ गैर मुस्लिम समर्थन के सरकार बनायी और इसे पहली बार भारत की राजनीति मेँ हिन्दूत्व के प्रभुत्व के रूप मेँ आंका गया। इसके पूर्व यह अनुमान भी नही लगाया जाता था कि गैर मुस्लिम समर्थन के भारत के किसी हिस्से मेँ कोई सरकार बन सकती है। इसके बाद भी केन्द्र मेँ ऐसी सरकार को लेकर अब भी संशय की ही स्थिति रही।
विश्व पटल पर बढ़ते आतंकवाद और भारतीय राजनीति मेँ दिनों दिन बढ़ते मुस्लिम तुष्टिकरण की रणनीति ने वर्ष 2014 मेँ क्रान्तिकारी बदलाव किया। भाजपा को छोड़ अन्य ज्यादातर दलों मेँ मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले मेँ लाने के लिए होड़ मची हुई थी। इस बीच केन्द्र की कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार तथा निष्क्रियता के आरोपों मेँ घिर चुकी थी। ऐसे राजनीतिक हालात मेँ भाजपा ने ऐसे नेता को राज्य की राजनीति से उठाकर राष्ट्रीय क्षितिज पर प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया जिस पर कट्टर हिन्दूत्व की छाप लगी हुई थी। 2002 मेँ गोधरा कांड के बाद भाजपा के नरेन्द्र मोदी की स्थिति कट्टर हिन्दू नेता की बनी थी। मोदी ने अपनी छवि के साथ गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप मेँ ईमानदार तथा विकासशील नेता के रूप मेँ भी स्थापित किया। विरोधी दलों के खिलाफ मोदी की आक्रामक शैली कारगर हुई और कमजोर नेतृत्व और भ्रष्टाचार के आरोपों मेँ घिरी कांग्रेस अपनी सफाई पेश नही कर सकी और पहली भारतीय इतिहास मेँ मोदी मुस्लिम समर्थक के बगैर मेँ केन्द्र मेँ बहुमत की सरकार बनाने मेँ सफल रहे। हालांकि यह भाजपा का एक पहलू है। इसके पूर्व भाजपा ने वर्ष 2012 से हिन्दू समाज के अति पिछडों तथा अति दलितों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास शु डिग्री कर दिया था। भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ ने वर्ष 2001 मेँ उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते यह पहल शु डिग्री की थी परन्तु समय के अभाव मेँ यह एजेन्डा परवान नही चढ़ पाया था। इसके बाद भाजपा का अध्यक्ष बनने के बाद राजनाथ सिंह ने यह फार्मूला राष्ट्रीय स्तर पर संगठन के विस्तार के लिए किया। सौभाग्यवश नरेन्द्र मोदी भी पिछड़े वर्ग से रहे जिससे भाजपा की रणनीति का अतिपिछडों तथा अतिदलितों ने भरपूर साथ दिया। इसी रणनीति के तहत अन्य दलों के उपेक्षित अतिपिछड़े एवं अतिदलित नेताओं को भी भाजपा से जोड़ा गया। राष्ट्रीय स्वयं संघ भी हिन्दूत्व की एकता की बात कहकर समाज के सभी वर्गो को एकजुट करने की राष्ट्रीय मुहिम चला रहा था। इस प्रकार नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व मेँ हिन्दूत्व एकता परवान चढ़ी।
कांग्रेस का हिन्दूत्व -- वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की जमीन खीसकने लगी और कई राज्यों मेँ कांग्रेस दूसरे-तीसरे नंबर की पार्टी तक ही सीमित हो कर रह गयी। देश की राजनीति मेँ 40 वर्षो तक कांग्रेस का शासन तीन जातियों के गठजोड़ पर कायम रहा। यह वर्ग था हिन्दू समाज का ब्राह्मण, दलित तथा मुस्लिम। जवाहर लाल नेह डिग्री से लेकर इन्दिरागांधी तक ब्राह्मण वर्ग अपना रहनुमा मानता था। कांग्रेस ने दलित वर्ग को अपने पाले मेँ रखने के लिए जगजीवन राम को आगे किया। इसी प्रकार कई मुस्लिम नेता भी कांग्रेस के साथ रहे। तबतक दलित एवं मुस्लिम समाज का कोई प्रमुख नेता नही होता था। इन्दिरागांधी की असामयिक हत्या तथा राजीव गांधी की अनुभवहीनता के कारण कांग्रेस देश के हिन्दू-मुस्लिम समाज के दोराहे पर खड़ी हो गयी। वर्ष 1985 मेँ शाहबानों प्रकरण पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को संसद से बदला गया तो एक वर्ष बाद ही 1986 मेँ अयोध्या मेँ राम मंदिर का ताला खुलवा दिया गया। कांग्रेस की इस रणनीति से दोनों ही वर्गो हिन्दू तथा मुस्लिम मेँ संशय पैदा हो गया। इसमेँ और दरार पैदा कर दिया कांग्रेस के ही सिपहसालार विश्वनाथ प्रताप सिंह ने। पहले वी पी सिंह ने राजीव गांधी परिवार पर बोफोर्स घोटाले का आरोप लगाकर बदनाम किया और सत्ता हासिल करने के बाद मंडल की राजनीति के माध्यम से पिछड़ा, दलित तथा मुस्लिम गठजोड़ बनाने का प्रयास किया। इस मुहिम से कांग्रेस से दलित एवं मुस्लिम समाज विभाजित हो गया तो ब्राह्मण समाज भी खिन्न हो गया। इससे संभलने मेँ कांग्रेस को लगभग ढाई दशक लग गये। अब गुजरात के चुनाव मेँ राहुल गांधी मंदिर-मंदिर जाकर अपने को हिन्दू और ब्राह्मण साबित करने मेँ लगे हुए है। इसे कांग्रेसियों का बचकानापन ही कहा जाएगा कि जनेऊ पहने राहुल की फोटो दिखाकर उन्हें ब्राह्मण बताने मेँ जुटे हुए है। सामान्य ब्राह्मण भी जानता है कि जनेऊ पहनाया नही जाता, संस्कार होता है। फिलहाल यह तो साफ हो गया है कि अब कांग्रेसियों को भी समझ मेँ आ गया है कि केवल मुस्लिम वोट बैंक से चुनाव जीतना संभव नही होगा और हिन्दू वर्ग का विश्वास हासिल करना होगा।
मायावती की धमकी -- राजनीति के इस दौर मेँ जब सभी दल हिन्दूत्व को अपने पाले मेँ लाने की रणनीति बना रहे है तो बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती हिन्दू धर्म छोड़ बौद्ध धर्म अपनाने की धमकी दे रही है। इस क्रम मेँ मायावती अपने को आम्बेडकर से ज्यादा लोकप्रिय बता रही है। मायावती का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भाजपा दलितों का उत्पीड़न कर रहे है। इसलिए वह बौद्ध धर्म अपना लेगी। मायावती का कहना है कि आम्बेडकर ने लाख लोगों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था और वह करोडों लोगों के साथ यह करिश्मा करेगी। सर्वसमाज के नारे और ब्राह्मण वर्ग के समर्थन से यूपी मेँ बहुमत की सत्ता हासिल करने वाली मायावती को अब दलित उत्पीड़न लग रहा है जब वह और उनका भाई भ्रष्टाचार के आरोप मेँ घिरते जा रहे है। वर्तमान राजनीतिक हालात मेँ किसी नेता की ऐसी बयानबाजी स्वयं को भीड़ से अलग करने का ही प्रयास कहा जा सकता है। साफ है कि मायावती बसपा को राजनीतिक हाशिये पर ले जाने को उददत हो गयी है।
देश की आजादी के 70 वर्षो बाद भी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया मेँ हिन्दू समाज दोयम दर्जे का ही बना हुआ था। विभिन्न जातियों और उपवर्गो मेँ बंटे भारतीय समाज के हिन्दू वर्ग मेँ एकता को लेकर हमेशा ही संशय की स्थिति रहती थी। यही कारण था कि चुनावी जीत के लिए हमेशा से ही राजनीतिक दल मुस्लिम समाज को ही वरीयता देते थे। कारण साफ था कि मुस्लिम वर्ग अपनी पसन्द-नापसन्द के हिसाब से ज्यादा एकजुटता दिखाता था। मुस्लिम समाज की इस रणनीति का ही परिणाम रहा कि ज्यादातर दलों ने मुस्लिम समाज को वोट बैंक बनाकर रख दिया। इस कड़ी मेँ पहले जनसंघ और बाद मेँ भारतीय जनता पार्टी ने ही मुस्लिम तुष्टिकरण से अपने को अलग रखते हुए हिन्दू समाज की एकता पर बल दिया। हिन्दू समाज की इस एकता पर भाजपा के धार्मिक मुलम्मे ने एतिहासिक काम किया। वर्ष 1991 मेँ पहली बार अयोध्या प्रकरण ने भारत के तीन वड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान मेँ गैर मुस्लिम समर्थन के सरकार बनायी और इसे पहली बार भारत की राजनीति मेँ हिन्दूत्व के प्रभुत्व के रूप मेँ आंका गया। इसके पूर्व यह अनुमान भी नही लगाया जाता था कि गैर मुस्लिम समर्थन के भारत के किसी हिस्से मेँ कोई सरकार बन सकती है। इसके बाद भी केन्द्र मेँ ऐसी सरकार को लेकर अब भी संशय की ही स्थिति रही।
12th December, 2017