विजय शंकर पंकज, लखनऊ. गुजरात में आखिरी दौर का मतदान गुरूवार को संपन्न हो गया। लगभग डेढ माह के चुनावी प्रचार अभियान में तमाम उतार-चढ़ाव आये परन्तु तीन वर्षो से हाशिये पर पहुंच गयी कांग्रेस को गुजरात चुनाव ने संजीवनी दे दी। गुजरात चुनाव का परिणाम जो भी हो परन्तु कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही राहुल ने अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत कर ली। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद से कांग्रेस को लगातार पराजय का ही सामना करना पड़ रहा था। यहां तक कि दिल्ली से बिहार तक के चुनाव में हर चुनाव में कांग्रेस तीसरे-चौथे नंबर की ही पार्टी बनकर रह गयी थी। देश के राजनीतिज्ञों की सूची में भी राहुल को अपरिपक्व और दिशाहीन राजनेता मानकर उन पर तमाम छिटाकंशी की जा रही थी। अचानक गुजरात चुनाव ने राहुल को गंभीर राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित कर दिया और वह लोकप्रिय नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में उभरे है। हालांकि राहुल को यह सब कुछ पारिवारिक धरोहर के रूप में मिला है परन्तु उसकी गरिमा बनाये रखने और साख बनाने के लिए कोशिश उन्ही को करनी होगी।
राहुल गांधी दो दिनों बाद ही 16 दिसम्बर को कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण करेंगे। इसके दो दिन बाद गुजरात का चुनाव परिणाम आएगा। गुजरात में चुनाव पूर्व राहुल ने जिस प्रकार आगे बढ़कर पूरी रणनीति बनायी, उसने मोदी-अमित शाह जैसे रणनीतिकारों को भी नाको चने चबाने को मजबूर कर दिया। राहुल की रणनीति का ही हिस्सा था कि गुजरात का नाराज वर्ग कांग्रेस के झंडे तले एकजुट हो गया। राहुल की राजनीति का यह पहला कदम ही भाजपा पर भारी पड़ा। इसके बाद राहुल ने अकेले दम पर आक्रामक प्रचार शैली अपनायी। गुजरात से झनकर जो खबरे आ रही है, उससे कांग्रेस की बढ़त बतायी जा रही है। हालांकि तब भी यह आशंका तैयार की जा रही है कि कांग्रेस की स्थिति में कुछ सुधार के बाद भी भाजपा सरकार बनाने में सफल रहेगी। भाजपा रणनीतिकारों को दिल्ली और बिहार के चुनाव को परिदृश्य में रखकर सोचना चाहिए। यहां पर भाजपा को जिन स्थितियों से होकर गुजरना पड़ा, गुजरात की स्थिति उससे भी कठिन हो गयी है। भाजपा नेता गुजरात विकास का जो भी दावा करे परन्तु इस चुनाव ने उनके सारे दावों की पोल खोल दी। यही स्थिति रही कि विकास की दोहाई देने वाले पीए मोदी गुजराती गौरव की बात कहकर भावनात्मक वोट मांगने पर मजबूर हुए। मोदी के गुजराती गौरव पर जनता की असलियत भारी पड़ रही है। युवा पीढ़ी अब जातीय, धर्म एवं क्षेत्र के मुद्दों पर बहकने वाला नही रहा है। अब युवा पीढ़ी अपने हक और रोजगारी के लिए हर कदम उठाने को तैयार है। यही वजह है कि गुजरात के तीन युवाओं ने अपने समाज की बेहतरी के लिए जो आन्दोलन चलाया, उससे राज्य में नयी चेतना जागृत हुई। राहुल के नेतृत्व में इस नयी चेतना को धार मिली है। राहुल का गुजराती गठबंधन चल गया तो कांग्रेस की बहुमत की सरकार बनाने से कोई नही रोक सकता। यह बदलाव की बयार होगी। गुजरात यह बदलाव दिखाता है तो 2019 मोदी के लिए भारी पड़ सकता है। सत्ता में आने के बाद भाजपा नेताओं का व्यवहार बदल जाता है। यहां तक कि कार्यकर्ताओं को भी किनारे कर दिया जाता है। केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है। केवल चुनाव के समय ही भाजपा नेताओं को कार्यकर्ताओं की याद आती है। अब अमित शाह की राजनीतिक रणनीति में पैसे वाले नये कार्यकर्ता तैयार किये जा रहे है और इनके साथ पैसे के बल पर पेशेवर लोगों की सेवाएं ली जा रही है। यह पेशेवर तकनीकी कार्यकर्ता जनता से जुड़ाव नही करा सकते है और नही जनता में उत्साह पैदा कर सकते है। गुजरात में घटता मत प्रतिशत भाजपा कार्यकर्ताआंे की उपेक्षा का ही परिणाम है। यह स्थिति भाजपा के लिए खतरनाक हो सकती है। यह सही है कि गुजरात में कांग्रेस तथा उसके सहयोगियांे का गठबंधन राजनीतिक प्रबन्धन के रूप में भाजपा से कमजोर है परन्तु बदलाव को लेकर उस वर्ग में अत्यन्त उत्साह है। वर्ष 2014 के लोकसभा से लेकर 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में जनता ने जो उत्साह दिखाया था, वह इस बार गुजरात में कांग्रेस गठबंधन के साथ है। जनता के उत्साह का आधा-अधूरा नही एकतरफा फैसला होता है।
गुजरात ने राहुल गांधी को राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित कर दिया है। अभी तक राहुल को लड़का समझने वाले पुराने क्षेत्रीय नेताओं को अब राहुल के संरक्षण में रहने के अलावा कोई रास्ता नही होगा। वामपंथी दल राहुल को अभी तक गंभीरता से नही ले रहे थे परन्तु उन्हें भी अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए राहुल से हाथ मिलाने को मजबूर होना पड़ेगा। हां यह सही है कि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के साथ ही राहुल के लिए कठोर परिश्रम का समय आ गया है। अब वह महीनों तक विदेश सैर-सपाटा पर नही जा सकते है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक गठबंधन से लेकर राज्यों के दौरों और जनसभाओं का दौर शुरू करना होगा। अच्छा यह होगा कि अध्यक्ष बनने के बाद जनवरी से ही राहुल पहले चरण में सभी राज्यों का दौरा कर कांग्रेस संगठन में आमूल-चूल परिवर्तन करे। पहले राज्यों को ही चुनावी बागडोर सौंपकर नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी जाय। इससे राहुल को जहां संगठन में बदलाव के साथ ही पकड़ मजबूत होगी, वही नयी युवा पीढ़ी उनसे अपना जुड़ाव महसूस करेगी। इसके साथ ही राहुल को कई राज्यों में अपने सहयोगियों की भी तलाश करनी होगी। गुजरात ने राहुल को जो संजीवनी दी है, उसके माध्यम से उन्हें स्वयं और कांग्रेस को ताकतवर बनाकर उभारना होगा।
14th December, 2017