विजय शंकर पंकज,अहमदाबाद। गुजरात चुनाव को लेकर कांग्रेस के खिलाफ जो भी माहौल बनाया जाय परन्तु यहां पर दो माह से केन्द्रित राजनीति ने राहुल गांधी को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित कर दिया। इस प्रकार गुजरात चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद भी राहुल का राजनीतिक कद बढ़ा ही है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस भले ही गुजरात में सरकार बनाने का दावा करे परन्तु वह भी यह असलियत जानते थे कि वहां पर सरकार बनाना मुमकिन नही है। इसके बावजूद राहुल गांधी की गठबंधन राजनीति, नया तेवर और आक्रामक प्रचार शैली ने उन्हें राजनीति के पप्पू से उपर उठाकर मोदी के विकल्प के रूप में राष्ट्रीय नेता के रूप मे स्थापित कर दिया। यही वजह रही कि राहुल ने हिमांचल में ज्यादा तरजीह न देकर सारा फोकस गुजरात पर ही कायम किया। इसके विपरीत गुजरात में भाजपा की जीत के बाद भी मोदी का प्रभाव मंदा पड़ा है। यह स्थिति तब है जबकि गुजरात के विकास माडल का ही प्रचार कर मोदी देश की राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल हुए। यही वजह है कि गुजरात में मोदी का घटता प्रभाव भविष्य में देश की राजनीति में बढ़े बदलाव का संकेत हो सकती है।
कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण करने के बाद गुजरात चुनाव में बढ़त राहुल के लिए शुभ संकेत लेकर आया है। कांग्रेस के पुराने इतिहास और देश की राजनीतिक धारा पर गौर करे तो साफ है कि अभी तक नेहरू परिवार ही दिशा कायम रखता है। देश की जनता के एक बड़े भाग को नेहरू परिवार तथा कांग्रेस पर अन्य की अपेक्षा ज्यादा विश्वास रहा है। पुरूषवादी मानसिकता के समाज में जहां पुत्र को ज्यादा अहमियत दी जाती रही है, वही पर नेहरू परिवार की महिलाओं को भी काफी सम्मान मिला। इन्दिरागांधी तो जनता की लोकप्रियता की मानक हुई जबकि विदेशी बहु और नागरिकता संबंधी तमाम कुप्रचारों के बाद भी सोनिया ने पतन में जा रही कांग्रेस को जिस प्रकार संभाला और 10 वर्ष तक सत्ता स्थापित की, वह मिसाल रही। वर्ष 1997 में कांग्रेस की सदस्य बनने के कुछ माह बाद ही 1998 में सोनिया अध्यक्ष बनी। उस समय कांग्रेस सबसे दुरावस्था में थी परन्तु सोनिया ने जिस प्रकार देश भर की बिखरी पार्टियों से गठबंधन कर यूपीए का स्वरूप दिया और 2004 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी की ""शाइनिंग इंडिया"" के बाद भी जीत दर्ज की, वह परिपक्व राजनीतिज्ञ और गठबंधन की क्षमता का प्रतीक है। कुछ ऐसी ही परिस्थितियां वर्तमान में राहुल गांधी के भी समक्ष है। देश में नरेन्द्र मोदी जैसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के समक्ष राहुल की हुंकार को सहज में नही लिया जा सकता है। मैजिक स्थायी दौर नही होता है। मोदी मैजिक को कुछ उन्ही के सहयोगी तथा कुछ कार्यशीलता ने मंदा किया है। गुजरात के चुनाव ने मोदी - शाह की जोड़ी को अपनी कार्यशैली में बदलाव का साफ संकेत दिया है। भाजपा कार्यकताओं की उपेक्षा, संगठन से बढ़ती दूरी को पार्टी को फिर से संभालना होगा।
गुजरात चुनाव ने राहुल गांधी को आगे और परिश्रम करने के लिए संकेत दे दिया है। अगले लोकसभा चुनाव से पूर्व राहुल को कई राज्यों में भाजपा विरोधी राजनीतिक शक्तियों को एकजुट करने की जरूरत होगी। लोकसभा चुनाव से पूर्व मिजोरम, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में चुनाव होने है। इसमें तीन राज्यों में भाजपा अपने चरम पर है जिसे बचाना उनकी पहली प्राथमिकता है। कांग्रेस इन राज्यों में बढ़त लेती है तो लोकसभा में पार्टी के लिए शुभ संकेत होगा। इसके साथ ही कांग्रेस को पश्चिम बंगाल, बिहार, यूपी, उड़ीसा, तमिलनाडू, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र आदि में गठबंधन को मजबूत करने की जरूरत पड़ेगी। इसके साथ ही कांग्रेस को वामपंथी दलों को भी साथ मिलाना होगा। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल की पहली परीक्षा लोकसभा चुनाव से ही होगा। भाजपा विरोधी दलों की एकता राहुल की राजनीतिक परिपक्वता की पहचान होगी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस तथा गठबंधन की सीटें बढ़ना ही राहुल के राजनीतिक कद को बढ़ाना होगा। सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने पर भी 2004 में कांग्रेस की जीत की संभावना नही जतायी जा रही थी, कुछ राजनीतिक परिस्थितियां यदि 2019 में होती है तो कुछ अनोखा नही किया जा सकता है। राहुल गांधी ऐसे में मोदी-शाह की मजबूत लाबी के खिलाफ कड़ा विकल्प पेश होगा।
18th December, 2017