विजय शंकर पंकज, लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के किसानों को कर्जमाफी का ऐसा झांसा दिया कि वो फसल दोगुनी होने और उद्योगपतियों की तरह जिन्दगी जीने का सपना देखने लगा। इसके लिए सरकार बनते ही पहली कैबिनेट में कर्जमाफी की घोषणा भी कर दी गयी परन्तु जब उसे अमली जामा पहनाया गया तो फसली ऋण और उसकी तकनीकी कमियों ने किसानों को पूरी तरह छल दिया। सरकार की इस योजना में कुछ पैसे की कर्जमाफी से ही हजारों किसानों को संतोष करना पड़ा। उत्तर प्रदेश में गन्ना और आलू ही दो नकदी फसले होती है परन्तु किसानों के पास होने पर यह इतनी सस्ती हो गयी है कि उन्हें लागत भी नही मिल रहा है। नाराज किसानों ने आलू की फसल को मुख्यमंत्री आवास से लेकर विधानसभा की सड़कों तक फैला कर आक्रोश जताया। इसी प्रकार चीनी मिलों द्वारा गन्ना की आपूर्ति नही होने से खेतों में ही खड़ी फसल जलाने की घटनाएं सामने आ रही है।
कृषि अनुसंधान केन्द्र के अनुसार इस सत्र में आलू की पैदावार की लागत 350 से 375 रूपये और गन्ने की लागत 380 से 400 रूपये प्रति कुन्टल रही है। इसके विपरीत आलू किसानों से 200 से 225 रूपये प्रति कुन्टल की खरीद हो रही है। यही नही इस पर आलू की खुदाई और सेन्टर तक ले जाने की लागत जोड़ दी जाय तो इसका दाम बढ़कर 400 रूपये प्रति कुन्टल तक पहुंच जाता है। इस पर आलू किसानों को अपनी लागत का आधा दाम पर नही मिल रहा है। इसी प्रकार गन्ना किसानों को प्रति कुन्टल सरकारी दरों के हिसाब से लगभग 75 से 100 रूपये प्रति कुन्टल का नुकसान हो रहा है। गन्ना किसानों की समस्या यह भी है कि चीनी मिलें पैदावार के हिसाब से पर्चिया नही दे रही है। इस प्रकार पर्चियों तथा गन्ना तौलाई के नाम पर किसानों के साथ छल किया जा रहा है। इस काम में गन्ना विभाग के कर्मचारियों के साथ ही गन्ना समितियां तथा तौलाई केन्द्र के कर्मचारियों की मिली भगत है। गन्ना किसानों का दो हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की रकम चीनी मिलों पर अभी बकाया है और इसका भुगतान कब तक होगा, इसका अनुमान नही है।
इस प्रकार किसानों की आय दोगुना करने का वादा करने वाली भाजपा सरकार में भी आधे दाम पर अपनी नकदी फसल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।
6th January, 2018