यूरिड मीडिया न्यूज़,लखनऊ। यूपी में होने जा रहे गोरखपुर एवं फूलपुर स संसदीय उपचुनाव परिणाम से नए राजनीतिक समीकरण बनेंगे। यह मात्र दो लोकसभा का उपचुनाव नहीं हैं बल्कि यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या की कार्यशैली तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चार वर्षों के कार्यों पर जनता की मुहर होगी। दोनों सीटें भाजपा के पास थी और 3-3 लाख अधिक मतों से योगी और केशव जीते थे। योगी मुख्यमंत्री और केशव मौर्या उपमुख्यमंत्री है। यहां जीत का श्रेय तभी मिल सकता है जब अंतर तीन लाख से अधिक का हो। 2014 लोकसभा चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा गया था। अगर हार होती है जिसकी संभावना बहुत कम दिखाई दे रही हैं तो यह 2019 लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका साबित होगा। जीत से तो बहुत ज्यादा राजनीतिक बदलाव नहीं होंगे लेकिन हार से उत्तर प्रदेश में एक नया राजनैतिक समीकरण बन जाएगा जिसे 2019 में तोड़ पाना नरेन्द्र मोदी के लिए एक टेड़ी खीर साबित होगी।
गोरखपुर की सीट सीएम योगी आदित्यनाथ की हैं। जिसपर 1989 से लगातार गोरखपुर मठ का कब्जा है। 1989, 1991, 1996 तीन बार महंत अवैधनाथ संसद चुने गए थे। 1998 से योगी आदित्यनाथ लगातार सांसद थे और सीएम बनने के बाद इस्तीफा दिया हैं। 28 वर्षों बाद पहली बार उपेंद्र शुक्ला भाजपा के प्रत्याशी हैं जो योगी की पसंद नहीं कहें जा सकते क्योकि विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ उपेंद्र शुक्ला चुनाव लड़ चुके हैं। यहां उपेंद्र शुक्ला योगी की पसंद हो या ना हो चुनाव परिणाम सीधे योगी से जुड़ा है। 2014 में योगी को 5,39,127 मत मिले थे। समाजवादी पार्टी प्रत्याशी राजमति निषाद को 3 लाख से अधिक मतों से हराया था। सपा प्रत्याशी को 2 लाख 26 हजार 344 मत मिले थे। तीसरे स्थान पर बसपा के रामभुवाल निषाद थे, जिन्हें 1,76412 मत मिले थे। कांग्रेस प्रत्याशी अष्टभुजा त्रिपाठी को 45,719 मत मिले थे।
अगर हम 2014 के लोकसभा चुनाव के मतों का विश्लेषण करे तो यह स्पष्ट होत है कि सपा, बसपा, कांग्रेस तीनों के मत जोड़ने के बाद भी बीजेपी से लगभग 1 लाख मत कम ही है। ऐसे में बीजेपी प्रत्याशी के जीत में बहुत बड़ी चुनौती नहीं हैं। फर्क यह है कि क्या 2014 का जीत का रिकॉर्ड टूट पाएगा। क्योकि चार वर्षों से नरेंद्र मोदी पीएम है और एक वर्ष से योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम है। जीत का अंतर तय करेगा कि योगी और मोदी की लोकप्रियता जनता में घटी है या बढ़ी हैं। उपचुनाव में सपा ने पिछड़े जाति से जुड़े प्रवीण निषाद को प्रत्याशी बनाया है जिनहे पीस पार्टी का समर्थन है। बसपा चुनाव मैदान में नहीं है, कांग्रेस ने सुरहिता करीम को प्रत्याशी बनाया था।
फूलपुर उपचुनाव परिणाम पिछड़े वर्ग के रूप में उभरे प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव मौर्य की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा होगी। भाजपा प्रत्याशी कौशलेन्द्र पटेल की जीत हार से सीधा प्रभाव केशव मौर्य पर ही पड़ेगा। हालांकि यह माना जाता है कि केशव मौर्य की पसंद भाजपा प्रत्याशी कौशलेन्द्र पटेल नहीं है। लेकिन यहां पसंद नापसंद का कोई अर्थ नहीं है। कौशलेन्द्र भाजपा के प्रत्याशी है और यह सीट केशव मौर्य की थी जो प्रदेश में उपमुख्यमंत्री है। 2014 लोकसभा चुनाव में केशव मोर्या को 5,03,564 मत मिले थे। जबकि सपा के धर्मराज सिंह पटेल को 1,95,256 मिले थे। बसपा प्रत्याशी कपिलमुनि करवरिया 1,63,710 मत मिले थे। कांग्रेस के मोहम्मद कैफ को 58,127 मत मिले थे। गोरखपुर की तरह फूलपुर में भी सपा, बसपा और कांग्रेस के मतों को जोड़ ले तो भाजपा के मत से 50,000 से ज्यादा कम है। जीत हार का अंतर केशव मौर्या के राजनीतिक कद से सीधा जुड़ा होगा। फूलपुर से कांग्रेस ने मनीष मिश्रा, सपा ने नागेंद्र पटेल को प्रत्यशी बनाया है।
अगर हम 2014 के लोकसभा चुनाव के मतों का विश्लेषण करे तो यह स्पष्ट होत है कि सपा, बसपा, कांग्रेस तीनों के मत जोड़ने के बाद भी बीजेपी से लगभग 1 लाख मत कम ही है। ऐसे में बीजेपी प्रत्याशी के जीत में बहुत बड़ी चुनौती नहीं हैं। फर्क यह है कि क्या 2014 का जीत का रिकॉर्ड टूट पाएगा। क्योकि चार वर्षों से नरेंद्र मोदी पीएम है और एक वर्ष से योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम है। जीत का अंतर तय करेगा कि योगी और मोदी की लोकप्रियता जनता में घटी है या बढ़ी हैं। उपचुनाव में सपा ने पिछड़े जाति से जुड़े प्रवीण निषाद को प्रत्याशी बनाया है जिनहे पीस पार्टी का समर्थन है। बसपा चुनाव मैदान में नहीं है, कांग्रेस ने सुरहिता करीम को प्रत्याशी बनाया था।
7th March, 2018