लखनऊ, यूरिड मीडिया न्यूज़। गोरखपुर एवं फूलपुर उपचुनाव में भाजपा की हार में अतिआत्म विश्वाश के अलावा बहुत सारे अन्य कारण भी थे।
जैसे कि-
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कम मतदान , कार्यकर्ताओं की नाराजगी।
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भाजपा के मतदाता, ब्राह्मण, बनिया और राजपूतों का चुनाव में सक्रिय ना होना।
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हिन्दू युवा वाहिनी द्वारा जगह जगह तांडव से नाराजगी ।
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योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद बेरोजगारों में आशा थी कि उन्हें रोजगार मिलेगा लेकिन एक वर्ष के अंतराल में निराशा हाथ लगी। रोजगार न मिलने से युवाओं में नाराजगी थी और वह बूथ तक नहीं पहुंचे।
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किसानों के कर्ज माफी में प्रभावी कार्रवाई अधिकारियों द्वारा न होने से किसानों में नाराजगी थी ।
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व्यापारियों में जीएसटी के लागू करने से आ रही समस्याओं पर प्रभावी कार्रवाई एवं अधिकारियों से सहयोग न मिलने से व्यापारी उदासीन रहे और बूथ तक नहीं पहुंचे ।
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ग्रामीण क्षेत्रों में समाजवादी सरकार में पिछड़ी व अन्य महिलाओं को अलग-अलग स्कीमों में आर्थिक मदद व पेंशन मिलती थी उसे समीक्षा के नाम पर अधिकारियों ने रोक दिया । इससे कट्टर भाजपा समर्थक महिला भी मतदान करने में उदासीन रही ।
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योगी के सीएम बनने से संसदीय क्षेत्र के गत 18 वर्षों में बूथ स्तर पर लगे पुराने कार्यकर्ता पूरे चुनावभर योगी से मिलना चाहते थे । उन्हें मिलने नहीं दिया गया और फिर वह मायूस होकर चुपचाप घर बैठ गए ।
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वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता भी योगी के सीएम बनने के बाद उनके व्यवहार से असहज थे ।
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जातीय समीकरण में भी पिछड़े, दलित मतों के अलावा योगी के व्यक्तिगत विरोधी पार्टी के अंदर और बाहर सब एकजुट हो गए ।
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भाजपा प्रत्याशी का बीमार होना ।
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जिला प्रशासन द्वारा बूथ मैनेजमेंट की तैयारी पर गलत रिपोर्ट देना ।
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बच्चों की मौत से पीड़ित परिवार एवं रिश्तेदारों की नाराजगी ।
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बच्चों की मौत के मामले में एकतरफा कार्रवाई, प्रधानाचार्य और उनकी पत्नी को जेल भेजा और अन्य अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई ना करना ।
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योगी के साथ आए गैर राजनीतिक युवाओं का जमावड़ा एवं उनके द्वारा आए दिन गोरखपुर में किए जानव वाले दुर्व्यवहार ।
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सीएम बनने के बाद स्थानीय जनता की उम्मीद ज्यादा थी । सांसद के रूप में योगी विशेषकर युवा वर्ग में खासे लोकप्रिय थे । जिसे हर स्तर से मदद करते थे । सीएम बनने के बाद बहुत उम्मीद थी। हिन्दू युवा वाहिनी की गुंडई फैलने लगी तो बदनामी के डर से बूथ स्तर में प्रभावी युवा वाहिनी के नेताओं से भी योगी ने मिलना बंद कर दिया ।
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योगी जी को भाजपा का अश्वमेघ घोडा बना दिया गया था । पूरे देश में हिन्दुत्व एजेंडे पर कमल खिलाने के लिए उनका इस्तेमाल किया गया । मोदी के बाद योगी पूरे देश में सर्वाधिक चर्चित हो गए थे । काफी समय प्रदेश के बाहर दिया। गोरखपुर में एक वर्ष के दौरान कई बार आए । दो-दो, तीन तीन दिन प्रवास भी किया लेकिन इस दौरान उनसे चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अहम कार्यकर्ता नहीं मिल पाये ।
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जातीय समीकरण के अलावा योगी के व्यवहार जनता की उम्मीद आरएसएस की उदासीनता, हिन्दू युवा वाहिनी के द्वारा युवाओं की गुंडई सजातीय वर्ग को अधिक महत्व देना, किसानो, व्यापारियों , युवाओ एवं महिलाओ तथा जनता के अन्य सभी वर्गो में अपेक्षा के अनुरूप अधिकारियों द्वारा व्यवहार और सोश्ल सैक्टर से जुड़ी योजनाओ का लाभ न पहुंचा पाना तमाम ऐसे कारण जिससे मतदान कम हुये और 3 लाख मतों के अंतर से जीतने वाले योगी को हार का सामना करना पड़ा।
इसी तरह फूलपुर संसदीय क्षेत्र उपचुनाव में हुई हार में भी जातीय गठबंधन के अलावा केशव मौर्या भी सबसे बड़े जिम्मेदार है।
फूलपुर में सपा बसपा गठबंधन के जातीय समीकरण से ज्यादा मतदाताओं की केशव मौर्या से नाराजगी थी। केशव मौर्या का कद एवं पद निरंतर बढ़ता गया और जनता से दूर होते गए। विधायक- सांसद, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष फिर उपमुख्यमंत्री की मिली कुर्सी से मौर्या में अहंकार भी हो गया था और वह कार्यकर्ताओ की उपेक्षा करने लगे थे। पहले सड़क मार्ग से जाते थे, प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री बनने के बाद हवाई यात्राएं करने लगे। फूलपुर जनता के बीच जाना बंद कर दिया और गए भी तो हवाई मार्ग से और चुनिंदा लोगो से मिले। विशेषकर वर्ग विशेष मौर्या और व्यवसायिक व्यक्तियों से मिलते रहे जिसका परिणाम ये रहा कि भाजपा के कट्टर समर्थक सवर्ण मतदाता व दूसरे अन्य वर्गों के लोग भी मौर्या से नाराजगी के कारण मतदान करने नहीं निकले। बूथ मैनेजमेंट पूरी तरह फेल रहा। एक बूथ और 20 युथ का नारा कागजो तक सीमित रहा। फूलपुर की जनता ने 2014 में मोदी के समर्थन में एकतरफा मतदान करके पहली बार रिकार्ड मतों से जिताया था। केंद्र में सरकार बनने और केशव मौर्या के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिलने के बाद से जनता में और आशाएं बढ़ी थी। 2017 में एक बार फिर भाजपा को समर्थन किया। केशव मौर्या के बढ़ते हुए कद में और इजाफा हुआ उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गयी। उपमुख्यमंत्री बनने के बाद सर्वे के अनुसार केशव मौर्या के व्यवहार में अप्रत्याशित बदलाव आया। मौर्या प्रधानमंत्री एवं अमित शाह के ही मंचो पर ज्यादा नजर आने लगे और अपने को योगी आदित्यनाथ का विकल्प समझने लगे। मौर्या के बढ़ते प्रभाव एवं पद के साथ साथ जनता एवं कार्यकर्ताओ की अपेक्षाएं बढ़ती गई।
फूलपुर की जनता लखनऊ आने पर भी मौर्या नहीं मिलते उनके कारिंदो द्वारा सम्मान नहीं दिया गया। विकास को लेकर घोषणाएँ होती रही। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और थी। उपचुनाव एकाएक नहीं हुए है उपमुख्यमंत्री बनने के बाद से ही यह तय हो गया था कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र में उपचुनाव होंगे। पूरे एक वर्ष का समय मिल गया। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत सरकार। मौर्या प्रभावशाली नेता थे इसलिए फूलपुर की जनता को पूरी उम्मीद थी कि उनके क्षेत्र का विकास होगा। यहाँ विकास से ज्यादा महत्वपूर्ण ये रहा कि एक वर्ष के अंतराल में मौर्या ने फूलपुर के उपचुनाव को गंभीरता से नहीं लिया। जिन कार्यकर्ताओ एवं विभिन्न जातियों के नेताओ के सहयोग से बेहतर बूथ मैनेजमेंट के कारण 2014 एवं 2017 में अप्रत्याशित सफलता मिली। उन्हें न तो सम्मान मिला न मौर्या मिले और ना ही केंद्र एवं प्रदेश सरकार से अपेक्षागत लाभ मिला। जिसके कारण जुझारू भाजपा कार्यकर्ता बूथ पर सहयोग नहीं किया। मतदान प्रतिशत कम हुआ और पराजय हुई। फूलपुर में 5 विधानसभा सीटें फूलपुर, फाफामऊ, इलाहाबाद पश्चिमी, सोरांव, इलाहाबाद उत्तरी शामिल है। इसमें इलाहाबाद के दो शहरी विधानसभा सीटों में मात्र 43ःः एवं 23ः मतदान हुआ जबकि ग्रामीण क्षेत्रों की 44 से 46 प्रतिशत मतदान हुए जो 2014 में हुये 50.20ः मतदान से से 13.05ः कम हुये। इसमें ये भी जानकारी स्थनीये स्तर से मिली है कि केशव मौर्या यह मान कर चल रहे थे थे की जीत सुनिश्चित है अपने चमचों के बीच ये भी कहते थे की सपा-बसपा के मिलने से भी दोनों के वोट भाजपा से 2014 से कम थे। ऐसे में गठबंधन किसी भी हालत में नहीं जीतेगा। चुनाव के दौरान जब नेता एवं बूथ से जुड़े हुये कार्यकर्ता मौर्या से मिलने जाते तो मिलते नहीं और मिलते तो उपेक्षा से बाते करते। जिसके कारण नाराज होकर बूथ कार्यकर्ता घर बैठ गए और शर्मनाक हार हुई। गठबंधन के बाद भी भाजपा का हार का का जो अंतर है वह इतना अधिक नहीं है जिसे कि केंद्र और प्रदेश में भाजपा सरकार है, जमीनी कार्यकर्ता है, मोदी का प्रभाव है उस हार के अंतर को भाजपा जीत में बदल ना सकी।
फूलपुर में सपा बसपा गठबंधन के जातीय समीकरण से ज्यादा मतदाताओं की केशव मौर्या से नाराजगी थी। केशव मौर्या का कद एवं पद निरंतर बढ़ता गया और जनता से दूर होते गए। विधायक- सांसद, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष फिर उपमुख्यमंत्री की मिली कुर्सी से मौर्या में अहंकार भी हो गया था और वह कार्यकर्ताओ की उपेक्षा करने लगे थे। पहले सड़क मार्ग से जाते थे, प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री बनने के बाद हवाई यात्राएं करने लगे। फूलपुर जनता के बीच जाना बंद कर दिया और गए भी तो हवाई मार्ग से और चुनिंदा लोगो से मिले। विशेषकर वर्ग विशेष मौर्या और व्यवसायिक व्यक्तियों से मिलते रहे जिसका परिणाम ये रहा कि भाजपा के कट्टर समर्थक सवर्ण मतदाता व दूसरे अन्य वर्गों के लोग भी मौर्या से नाराजगी के कारण मतदान करने नहीं निकले। बूथ मैनेजमेंट पूरी तरह फेल रहा। एक बूथ और 20 युथ का नारा कागजो तक सीमित रहा। फूलपुर की जनता ने 2014 में मोदी के समर्थन में एकतरफा मतदान करके पहली बार रिकार्ड मतों से जिताया था। केंद्र में सरकार बनने और केशव मौर्या के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिलने के बाद से जनता में और आशाएं बढ़ी थी। 2017 में एक बार फिर भाजपा को समर्थन किया। केशव मौर्या के बढ़ते हुए कद में और इजाफा हुआ उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गयी। उपमुख्यमंत्री बनने के बाद सर्वे के अनुसार केशव मौर्या के व्यवहार में अप्रत्याशित बदलाव आया। मौर्या प्रधानमंत्री एवं अमित शाह के ही मंचो पर ज्यादा नजर आने लगे और अपने को योगी आदित्यनाथ का विकल्प समझने लगे। मौर्या के बढ़ते प्रभाव एवं पद के साथ साथ जनता एवं कार्यकर्ताओ की अपेक्षाएं बढ़ती गई।
फूलपुर की जनता लखनऊ आने पर भी मौर्या नहीं मिलते उनके कारिंदो द्वारा सम्मान नहीं दिया गया। विकास को लेकर घोषणाएँ होती रही। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और थी। उपचुनाव एकाएक नहीं हुए है उपमुख्यमंत्री बनने के बाद से ही यह तय हो गया था कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र में उपचुनाव होंगे। पूरे एक वर्ष का समय मिल गया। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत सरकार। मौर्या प्रभावशाली नेता थे इसलिए फूलपुर की जनता को पूरी उम्मीद थी कि उनके क्षेत्र का विकास होगा। यहाँ विकास से ज्यादा महत्वपूर्ण ये रहा कि एक वर्ष के अंतराल में मौर्या ने फूलपुर के उपचुनाव को गंभीरता से नहीं लिया। जिन कार्यकर्ताओ एवं विभिन्न जातियों के नेताओ के सहयोग से बेहतर बूथ मैनेजमेंट के कारण 2014 एवं 2017 में अप्रत्याशित सफलता मिली। उन्हें न तो सम्मान मिला न मौर्या मिले और ना ही केंद्र एवं प्रदेश सरकार से अपेक्षागत लाभ मिला। जिसके कारण जुझारू भाजपा कार्यकर्ता बूथ पर सहयोग नहीं किया। मतदान प्रतिशत कम हुआ और पराजय हुई। फूलपुर में 5 विधानसभा सीटें फूलपुर, फाफामऊ, इलाहाबाद पश्चिमी, सोरांव, इलाहाबाद उत्तरी शामिल है। इसमें इलाहाबाद के दो शहरी विधानसभा सीटों में मात्र 43ःः एवं 23ः मतदान हुआ जबकि ग्रामीण क्षेत्रों की 44 से 46 प्रतिशत मतदान हुए जो 2014 में हुये 50.20ः मतदान से से 13.05ः कम हुये। इसमें ये भी जानकारी स्थनीये स्तर से मिली है कि केशव मौर्या यह मान कर चल रहे थे थे की जीत सुनिश्चित है अपने चमचों के बीच ये भी कहते थे की सपा-बसपा के मिलने से भी दोनों के वोट भाजपा से 2014 से कम थे। ऐसे में गठबंधन किसी भी हालत में नहीं जीतेगा। चुनाव के दौरान जब नेता एवं बूथ से जुड़े हुये कार्यकर्ता मौर्या से मिलने जाते तो मिलते नहीं और मिलते तो उपेक्षा से बाते करते। जिसके कारण नाराज होकर बूथ कार्यकर्ता घर बैठ गए और शर्मनाक हार हुई। गठबंधन के बाद भी भाजपा का हार का का जो अंतर है वह इतना अधिक नहीं है जिसे कि केंद्र और प्रदेश में भाजपा सरकार है, जमीनी कार्यकर्ता है, मोदी का प्रभाव है उस हार के अंतर को भाजपा जीत में बदल ना सकी।