यूरिड मीडिया- लखनऊ | दलित वोटों के नाम पर जिस तरह मायावती अक्रामक दवाब बनाने की राजनीति कर रही है अगर कांग्रेस की तरह सपा भी दवाब में नहीं आयी तो बसपा का 2019 में भी 2014 जैसा ही हश्र होगा। मायावती के दलित वोट बैंक में भी सेंध लग चुकी है और दूसरा कोई वोट बैंक मायावती के पास है नहीं। SC-ST एक्ट, प्रमोशन में आरक्षण से सवर्णों एवं मुसलमानों में जबरदस्त नाराजगी है। इसका खामियाजा भाजपा के साथ साथ मायावती और राम विलास पासवान जैसे दलित नेताओ को भी भुगतना पड़ेगा। पिछले 10 वर्षों से मायावती का ग्राफ निरंतर गिरता जा रहा है। पिछले 5 साल में 16 राज्यों के 2021 विधानसभा सीटों पर बसपा ने चुनाव लड़ा लेकिन केवल 25 सीटों पर ही जीत पायी है 8 राज्य ऐसे रहे है जहाँ पर बसपा का खाता तक नहीं खुला। इन 25 सीटों में केवल 17 सीट उत्तर प्रदेश से ही है। 2007 में जिस तरह से पूर्ण बहुमत की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी थी उसके बाद से मायावती की राजनीति की दिशा बदलती गयी . जिसका परिणाम 2014 लोकसभा चुनाव में खाता नहीं खुलना और 2017 विधानसभा में मात्र 17 सीटों पर सिमट कर रह गयी। आज भी मायावती अगर अकेले चुनाव लड़ेगी तो 2019 में खाता खुलना मुश्किल हो जायेगा।
9th October, 2018