राजेन्द्र द्विवेदी, यूरीड मीडिया - उमर अब्दुल्ला, अब्दुल्ला खानदान के तीसरे मुख्यमंत्री है। उनके बाबा शेख अब्दुल्ला पिता फारुख
अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रह चुके है। बाबा और पिता ने राजनीतिक उठा-पठक
, केंद्र से लड़ाई, जेल सब कुछ झेला भी है। उमर अब्दुल्ला के सामने भी चुनौतियों का अम्बार है। इसके पहले जब उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे तो जम्मू कश्मीर लद्दाख एक राज्य था, अब लद्दाख अलग है और जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है। जहाँ पर मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र पूर्व राज्य की तुलना में काफी कम होते है। उमर ने बहुत ही बैलेंस और अच्छी कैबिनेट
बनाई है। जम्मू क्षेत्र में कम सीटें
होने के बाद भी भाजपा
के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र
रैना
को हराने वाले
सुरिंदर
कुमार चौधरी को उपमुख्यमंत्री
बनाया है और जैसा कि बहुमत मिलने के बाद उमर ने बयान भी दिया था कि एनसी
की जम्मू में कम सीटें
होने के बाद भी कोई भेदभाव नहीं होगा। जम्मू की जनता को पूरा सम्मान दिया जायेगा। चौधरी को उपमुख्यंत्री
बना कर यह सन्देश देने में सफल रहे है कि जम्मू की उपेक्षा नहीं होगी। 6 सदस्यीय
मंत्री मंडल में 2 हिन्दू 1 महिला और 2 मुस्लिम शामिल हैं। चौधरी के अलावा निर्दलीय विधायक सतीश शर्मा को मंत्रीमंडल
में शामिल किया है। कांग्रेस का समर्थन है लेकिन सरकार में शामिल नहीं है। उमर अब्दुल्ला ने कैबिनेट
में 4 मंत्रियों के पद अभी खाली रखे हैं जिससे आने वाले दिनों में कांग्रेस या
दूसरे निर्दलीय को शामिल कर सके। जिस सूझ-बुझ के साथ राजनीतिक परिपक्वता सरकार के गठन में दिखी है। निश्चित रूप से यह दूर दृष्टि मानी जाएगी। सीएम
बनने के बाद उमर अब्दुल्ला के रिश्ते केंद्र सरकार से कैसे रहेंगे यह बहुत महत्वपूर्ण
है क्योंकि
चुनाव में इंडिया गठबंधन के एजेंडे
में धारा 370 हटाना जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देना कई अहम् मुद्दे
है। हालांकि
उमर ने फिलहाल राज्य के दर्जा की बहाली प्रमुखता से रखा है क्योकि
केंद्र शासित राज्य में सीमित अधिकारों में निर्णय लेना कठिन होगा क्योकि
देश की राजधानी इसका उदाहरण है जहाँ मुख्यमंत्री और एलजी
के बीच अधिकारों के टकराव से सरकार कमजोर साबित हुई। केजरीवाल
निरन्तर
आरोप लगाते रहे है कि उन्हें कार्य करने नहीं दिया जा रहा है। ऐसी ही स्थिति केंद्र शासित जम्मू कश्मीर के नवनियुक्त
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बीच होगी। मनोज सिंह एलजी
से बेहतर तालमेल और बेहतर कार्य करने में तभी सहूलियत होगी जब केंद्र से रिश्ते अच्छे होंगे। अगर केंन्द्र
और राज्य के रिश्तों में कटास
हुई तो राज्य के विकास में निर्णय लेने में उमर को बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रह चुके है। बाबा और पिता ने राजनीतिक उठा-पठक
, केंद्र से लड़ाई, जेल सब कुछ झेला भी है। उमर अब्दुल्ला के सामने भी चुनौतियों का अम्बार है। इसके पहले जब उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे तो जम्मू कश्मीर लद्दाख एक राज्य था, अब लद्दाख अलग है और जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है। जहाँ पर मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र पूर्व राज्य की तुलना में काफी कम होते है। उमर ने बहुत ही बैलेंस और अच्छी कैबिनेट
बनाई है। जम्मू क्षेत्र में कम सीटें
होने के बाद भी भाजपा
के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र
रैना
को हराने वाले
सुरिंदर
कुमार चौधरी को उपमुख्यमंत्री
बनाया है और जैसा कि बहुमत मिलने के बाद उमर ने बयान भी दिया था कि एनसी
की जम्मू में कम सीटें
होने के बाद भी कोई भेदभाव नहीं होगा। जम्मू की जनता को पूरा सम्मान दिया जायेगा। चौधरी को उपमुख्यंत्री
बना कर यह सन्देश देने में सफल रहे है कि जम्मू की उपेक्षा नहीं होगी। 6 सदस्यीय
मंत्री मंडल में 2 हिन्दू 1 महिला और 2 मुस्लिम शामिल हैं। चौधरी के अलावा निर्दलीय विधायक सतीश शर्मा को मंत्रीमंडल
में शामिल किया है। कांग्रेस का समर्थन है लेकिन सरकार में शामिल नहीं है। उमर अब्दुल्ला ने कैबिनेट
में 4 मंत्रियों के पद अभी खाली रखे हैं जिससे आने वाले दिनों में कांग्रेस या
दूसरे निर्दलीय को शामिल कर सके। जिस सूझ-बुझ के साथ राजनीतिक परिपक्वता सरकार के गठन में दिखी है। निश्चित रूप से यह दूर दृष्टि मानी जाएगी। सीएम
बनने के बाद उमर अब्दुल्ला के रिश्ते केंद्र सरकार से कैसे रहेंगे यह बहुत महत्वपूर्ण
है क्योंकि
चुनाव में इंडिया गठबंधन के एजेंडे
में धारा 370 हटाना जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देना कई अहम् मुद्दे
है। हालांकि
उमर ने फिलहाल राज्य के दर्जा की बहाली प्रमुखता से रखा है क्योकि
केंद्र शासित राज्य में सीमित अधिकारों में निर्णय लेना कठिन होगा क्योकि
देश की राजधानी इसका उदाहरण है जहाँ मुख्यमंत्री और एलजी
के बीच अधिकारों के टकराव से सरकार कमजोर साबित हुई। केजरीवाल
निरन्तर
आरोप लगाते रहे है कि उन्हें कार्य करने नहीं दिया जा रहा है। ऐसी ही स्थिति केंद्र शासित जम्मू कश्मीर के नवनियुक्त
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बीच होगी। मनोज सिंह एलजी
से बेहतर तालमेल और बेहतर कार्य करने में तभी सहूलियत होगी जब केंद्र से रिश्ते अच्छे होंगे। अगर केंन्द्र
और राज्य के रिश्तों में कटास
हुई तो राज्य के विकास में निर्णय लेने में उमर को बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
16th October, 2024