राजेन्द्र द्विवेदी , यूरीड मीडिया- अडानी प्रकरण को लेकर इंडिया गठबंधन में फूट पड़ गयी है और जो राजनीतिक परिस्थितियाँ बन रही है शीघ्र ही ममता बनर्जी के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा बनेगा। हरियाणा, महाराष्ट्र में चुनाव हारने के बाद निशाने पर राहुल गांधी हैं क्योंकि राहुल गांधी अभी भी केवल जनगणना, अडानी पर ही सबसे अधिक भाषण, आंदोलन और बयानबाजी कर रहे हैं जबकि देश महंगाई, बरोजगारी के अलावा राष्ट्र स्तर की समस्या है जिसे उठाने में कांग्रेस सफल नहीं हो रही है। पिछले दो यात्राओं से राहुल गांधी की छवि में सुधार हुआ है लेकिन अभी भी वह मोदी के तर्ज पर संगठन को मजबूत करके सियासत करने में कमजोर दिखाई दे रहे हैं। इसके पीछे कांग्रेस में सत्ता में रहे अरबों की कमाई करने वाले बड़े-बड़े नेता हैं जो कहने के लिए कांग्रेस में हैं, राहुल के साथ धरना प्रदर्शन में दिखाई भी देते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि जांच एजेंसियों के डर के कारण अडानी और मोदी सरकार के खिलाफ संघर्ष नहीं कर रहे हैं। एक तरह से राहुल गांधी की संगठनात्मक क्षमता अभी तक बहुत कमजोर है और इस पर ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है। कांग्रेस पुरानी पार्टी है और बुरे दिनों में भी 3-4 राज्यों में सरकार रहती है जिसके कारण राज्यों से आर्थिक मदद मिलती रहती है। बड़ी पार्टी होने के कारण उद्योगपति औद्योगिक प्रतिस्पर्धा रखते है वह भी कांग्रेस की मदद करते है लेकिन इंडिया गठबंधन में शामिल आप को छोड़कर सभी दल क्षेत्रीय है और उनका प्रभाव एक राज्य तक ही सीमित है। जिसके कारण उन्हें दूसरे राज्यों से मदद नहीं मिलती उनकी मज़बूरी है कि अडानी, अम्बानी जैसे उद्योगपतियों का विरोध न करें क्योकि आर्थिक मदद लेना है।
इंडिया गठबन्धन से जुड़े क्षेत्रीय दल के नेता जांच एजेंसियों के दवाब में है जिसके कारण सीधा फ्रंट राहुल की तरह मोदी के खिलाफ नहीं खोल सकते। इसलिए राहुल के अडानी एजेण्डे से दूरी बना रहे हैं और जांच एजेंसियों से बचने के लिए भाजपा को मजबूत और कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं। इसलिए तीसरे मोर्चे के गठन का प्रयास शुरू हो चूका है। अगर हम गठबंधन के बड़े दलों को देखे तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव कांग्रेस से सम्बन्ध रखेंगे क्योकि उन्हें 2024 की तरह 2027 में कांग्रेस गठबंधन से मदद मिल सकती है। वैसे अडानी मुद्दे पर सपा ममता के साथ तीसरे मोर्चे में अघोषित रूप से समर्थन करेगी। इसलिए कोई जनांदोलन अडानी और मोदी के खिलाफ कांग्रेस शुरू भी करती है तो उसे क्षेत्रीय दलों का समर्थन मिलना मुश्किल है। बिहार में आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव का भी ममता से मधुर सम्बन्ध हैं और जातीय समीकरण के अनुसार कांग्रेस गठबंधन से आरजेडी के पक्ष में परसेप्शन बन सकता है लेकिन ज़मीन पर वोटों का लाभ मिलना बहुत मुश्किल है इसका उदाहरण 2020 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनाव है। केरल कहने के लिए इंडिया गठबंधन में है लेकिन वास्तविकता यह है कि केरल राज्य में लेफ्ट की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है यह अलग बात है कि ममता के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे में शामिल न हो लेकिन केरल राज्य में वह कांग्रेस से लड़ने के लिए तीसरे मोर्चे से समबन्ध रख सकते हैं। दक्षिण के राज्य कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है लेकिन तमिलनाडु में स्टालिन और आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू मुख्यमंत्री है इन दोनों राज्यों में इनके स्थानीय समीकरण हैं। नायडू के समर्थन से मोदी सरकार चल रही है जबकि स्टालिन के कांग्रेस के साथ होने का बहुत ज्यादा फ़ायदा तमिलनाडु में तो मिल सकता है लेकिन अन्य राज्यों में स्टालिन के हिन्दू विरोधी आचरण से कांग्रेस का नुकसान ही होगा। केजरीवाल की आप ऐसा राष्ट्रीय दल है जिनकी दो राज्यों में सरकार है लेकिन यह दोनों सरकारें कांग्रेस से छीनी है पंजाब में कांग्रेस आज भी मुख्य विपक्षी दल है जबकि दिल्ली में भाजपा से सीधी लड़ाई है। आने वाला 2025 बहुत महत्वपूर्ण हैं जो हालात है निश्चित रूप से तीसरे मोर्चे का गठन होना तय है।
इंडिया गठबन्धन से जुड़े क्षेत्रीय दल के नेता जांच एजेंसियों के दवाब में है जिसके कारण सीधा फ्रंट राहुल की तरह मोदी के खिलाफ नहीं खोल सकते। इसलिए राहुल के अडानी एजेण्डे से दूरी बना रहे हैं और जांच एजेंसियों से बचने के लिए भाजपा को मजबूत और कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं। इसलिए तीसरे मोर्चे के गठन का प्रयास शुरू हो चूका है। अगर हम गठबंधन के बड़े दलों को देखे तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव कांग्रेस से सम्बन्ध रखेंगे क्योकि उन्हें 2024 की तरह 2027 में कांग्रेस गठबंधन से मदद मिल सकती है। वैसे अडानी मुद्दे पर सपा ममता के साथ तीसरे मोर्चे में अघोषित रूप से समर्थन करेगी। इसलिए कोई जनांदोलन अडानी और मोदी के खिलाफ कांग्रेस शुरू भी करती है तो उसे क्षेत्रीय दलों का समर्थन मिलना मुश्किल है। बिहार में आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव का भी ममता से मधुर सम्बन्ध हैं और जातीय समीकरण के अनुसार कांग्रेस गठबंधन से आरजेडी के पक्ष में परसेप्शन बन सकता है लेकिन ज़मीन पर वोटों का लाभ मिलना बहुत मुश्किल है इसका उदाहरण 2020 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनाव है। केरल कहने के लिए इंडिया गठबंधन में है लेकिन वास्तविकता यह है कि केरल राज्य में लेफ्ट की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है यह अलग बात है कि ममता के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे में शामिल न हो लेकिन केरल राज्य में वह कांग्रेस से लड़ने के लिए तीसरे मोर्चे से समबन्ध रख सकते हैं। दक्षिण के राज्य कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है लेकिन तमिलनाडु में स्टालिन और आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू मुख्यमंत्री है इन दोनों राज्यों में इनके स्थानीय समीकरण हैं। नायडू के समर्थन से मोदी सरकार चल रही है जबकि स्टालिन के कांग्रेस के साथ होने का बहुत ज्यादा फ़ायदा तमिलनाडु में तो मिल सकता है लेकिन अन्य राज्यों में स्टालिन के हिन्दू विरोधी आचरण से कांग्रेस का नुकसान ही होगा। केजरीवाल की आप ऐसा राष्ट्रीय दल है जिनकी दो राज्यों में सरकार है लेकिन यह दोनों सरकारें कांग्रेस से छीनी है पंजाब में कांग्रेस आज भी मुख्य विपक्षी दल है जबकि दिल्ली में भाजपा से सीधी लड़ाई है। आने वाला 2025 बहुत महत्वपूर्ण हैं जो हालात है निश्चित रूप से तीसरे मोर्चे का गठन होना तय है।
4th December, 2024