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यूरीड मीडिया- चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव में नोटा पर मतदान पिछले दो आम चुनाव के मुकाबले कम हुआ है। वहीं बिहार में सबसे ज्यादा नोटा का बटन दबाया गया है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (NOTA) विकल्प को 2013 में इसकी शुरुआत के बाद से बीते लोकसभा चुनाव में सबसे कम मत प्रतिशत हासिल हुआ।
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों से यह जानकारी सामने आई है। नोटा का विकल्प पहली बार 2014 में लोकसभा चुनाव में लागू किया गया था। आयोग की ‘एटलस-2024’ नामक पुस्तक के अनुसार, पिछले तीन लोकसभा चुनावों में नोटा मतों में धीरे-धीरे गिरावट आई है, जो 2014 में 1.08 प्रतिशत से घटकर 2024 में 0.99 प्रतिशत हो गई। यह मत प्रतिशत भले ही छोटा लगता हो, लेकिन ‘नोटा’ को मिले मत उन सीटों में महत्वपूर्ण हो सकते हैं जहां जीत का अंतर काम होता है।
‘नोटा’ के मतों में सबसे अधिक हिस्सेदारी (प्रतिशत) बिहार में 2.07 प्रतिशत दर्ज की गई, इसके बाद दादरा और नगर हवेली और दमन एवं दीव में 2.06 प्रतिशत तथा गुजरात में 1.58 प्रतिशत दर्ज हुई। इसके विपरीत, नगालैंड में नोटा मतों की सबसे कम हिस्सेदारी मात्र 0.21 प्रतिशत दर्ज की गई। राज्यों में इस तरह के अलग-अलग रुझान राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, क्षेत्रीय दलों की प्रमुखता, मतदाता शिक्षा और प्रत्येक क्षेत्र के भीतर समग्र चुनावी परिदृश्य जैसे कारकों से प्रभावित हो सकते हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को पहली बार नोटा का विकल्प दिया गया था। अगर किसी मतदाता को कोई भी प्रत्याशी या फिर पार्टी पसंद नहीं है तो वह नोटा का बटन दबा सकता है। मतदान प्रतिशत बढ़ाने और मतदाताओं की इच्छा का सम्मान करने की उद्देश्य से इसकी शुरुआत की गई थी। ऐसे में किसी को भी वोट ना देने पर वोटर कम से कम बूथ तक आता है और वोट करता है।
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों से यह जानकारी सामने आई है। नोटा का विकल्प पहली बार 2014 में लोकसभा चुनाव में लागू किया गया था। आयोग की ‘एटलस-2024’ नामक पुस्तक के अनुसार, पिछले तीन लोकसभा चुनावों में नोटा मतों में धीरे-धीरे गिरावट आई है, जो 2014 में 1.08 प्रतिशत से घटकर 2024 में 0.99 प्रतिशत हो गई। यह मत प्रतिशत भले ही छोटा लगता हो, लेकिन ‘नोटा’ को मिले मत उन सीटों में महत्वपूर्ण हो सकते हैं जहां जीत का अंतर काम होता है।
‘नोटा’ के मतों में सबसे अधिक हिस्सेदारी (प्रतिशत) बिहार में 2.07 प्रतिशत दर्ज की गई, इसके बाद दादरा और नगर हवेली और दमन एवं दीव में 2.06 प्रतिशत तथा गुजरात में 1.58 प्रतिशत दर्ज हुई। इसके विपरीत, नगालैंड में नोटा मतों की सबसे कम हिस्सेदारी मात्र 0.21 प्रतिशत दर्ज की गई। राज्यों में इस तरह के अलग-अलग रुझान राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, क्षेत्रीय दलों की प्रमुखता, मतदाता शिक्षा और प्रत्येक क्षेत्र के भीतर समग्र चुनावी परिदृश्य जैसे कारकों से प्रभावित हो सकते हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को पहली बार नोटा का विकल्प दिया गया था। अगर किसी मतदाता को कोई भी प्रत्याशी या फिर पार्टी पसंद नहीं है तो वह नोटा का बटन दबा सकता है। मतदान प्रतिशत बढ़ाने और मतदाताओं की इच्छा का सम्मान करने की उद्देश्य से इसकी शुरुआत की गई थी। ऐसे में किसी को भी वोट ना देने पर वोटर कम से कम बूथ तक आता है और वोट करता है।
14th February, 2025