विजय शंकर पंकज ( यूरिड मीडिया)
लखनऊ
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उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, भारतीय जनता पार्टी में दूसरे दलों से आने वाले शरणार्थियों का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें ज्यादातर चर्चित चेहरे भाजपा के पुराने एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं एवं नेताओं के खिलाफ ही दावेदारी पेश कर रहे है। कई वरिष्ठ नेता तो प्रदेश से भाजपा के टिकट पर राज्यसभा एवं विधानसभा जाने की भी शर्ते रख रहे है। ऐसे में भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं के समक्ष यह संकट खड़ा होता जा रहा है कि वर्षो से जिनके खिलाफ धरना-प्रदर्शन एवं विरोधी नारे लगाये गये, अब उन्ही को पार्टी के बैनर तले जिताने के लिए वोट मांगने को मजबूर होना पड़ेगा।
सूत्रों के अनुसार प्रदेश की चुनावी बयार में भाजपा की जीत की संभावनाएं बढ़ने के साथ ही पिछले कुछ ही दिनों में विभिन्न दलों के 335 से ज्यादा सांसद, विधायक, पूर्व सांसद-विधायक तथा अन्य कई वरिष्ठ नेता पार्टी में शामिल हुए है। इसमें ज्यादातर स्वयं या अपने रिश्तेदारों को चुनाव लड़ाने की तैयारी में है। सर्वाधिक नेता बसपा से आये है जबकि सपा, कांग्रेस तथा रालोद के साथ अन्य छोटे दलों के भी नेता समर्थकों सहित भाजपा में शामिल हुए है। सपा के बड़ी तादात में मंत्री एवं विधायक भाजपा में अपना टिकट पक्का होने के आश्वासन में लाइन लगाये हुए है आैर चुनाव की घोषणा के साथ ही यह सभी भाजपा ज्वाइन करने को तैयार बैठे है। बताया जाता है कि सपा सरकार के 4 मंत्री तथा 16 विधायकों की भाजपा में शामिल होने की बात लगभग पक्की हो गयी है। ऐसे हालात में भाजपा नेतृत्व के लिए संकट यह है कि 125 से 150 सीेटें दूसरे दलों से आये नेताओं को ही देनी पड़ेगी।
दूसरे दलों से आये नेताओं की तरफदारी करने वाले भाजपा नेताओं का कहना है कि भाजपा के पास 250 से 300 ही ऐसी सीटे है जिस पर भाजपा प्रत्याशी विजयी होते रहे है। ऐसे मेंं इन सीटों पर जहां से भाजपा को जीत नही मिली है अथवा कभी-कभी ही जीते है, उन पर दूसरे दलों के सक्षम प्रत्याशियों को लड़ाने में कोई परेशानी नही है। भाजपा के पास कई ऐसी सीटें है जिन पर सक्षम उम्मीदवार प्रत्याशी के पास नही है। चुनावी रणनीति के तहत भाजपा ने प्रदेश की 403 विधानसभा सीटांे को तीन हिस्सों में बांटा है। ऐसी सीटें को प्रथम श्रेणी में रखा गया है जिस पर भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित मानती है। दूसरी श्रेणी में जीत के लिए भाजपा नेतृत्व को कड़ी मशक्कत करनी होगी आैर उसके लिए सक्षम प्रत्याशियों की भी तलाश है। तीसरी श्रेणी में ज्यादातर ऐसी सीटें है जिन पर भाजपा को जीत की उम्मीद कम है परन्तु कुछ ऐसी सीटें है जिन पर सक्षम प्रत्याशी आैर रणनीति के हिसाब से जीत हासिल किया जाना संभव हो सकता है। भाजपा की प्रथम श्रेणी की सीटों में 100, दूसरी श्रेणी में 125-130 तथा तीसरी श्रेणी में 175-180 सीटें है।
लोकसभा चुनाव के समय ही वर्ष 2014 में प्रदेश में भाजपा की फिजां बनने के बाद बसपा के कई वरिष्ठ नेता पार्टी में शामिल हो गये। इसमें लोकसभा में बसपा दल के नेता दारा सिंह चौहान एवं तत्कालीन राज्यसभा सदस्य जुगल किशोर। दारा सिंह चौहान लोकसभा एवं राज्यसभा में जाने की मंशा लेकर भाजपा में शामिल हुए परन्तु उनकी मंशा पूरी नही हुई। इससे नाराज दारा सिंह चौहान दोबारा बसपा की तरफ जाने को मुखातिब हुए परन्तु मायावती ने बात तक नही की। इस समय बसपाइयों को भाजपा की नाव में सवार कराने के लिए मायावती के खासमखास सिपहसालार रहे जुगल किशोर सबसे आगे है। जुगल किशोर ने रणनीति के तहत भाजपा में अपनी पैठ मजबूत बनायी है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं बसपा दल के नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्या तथा पूर्व सांसद बृजेश पाठक के आने के बाद पिछड़े एवं सवर्ण बसपाइयों की भी भाजपा में आकर्षण बढ़ा है। बताया जाता है कि पश्चिमी यूपी के बसपा के दो बडे़ दिग्गज एवं पूर्व मंत्री जिसमें एक ब्राह्मण एवं एक ठाकुर है, शीघ्र ही भाजपा में शामिल होगे। इसी प्रकार कभी भाजपा के साथ रहे सपा के कई मंत्री एवं विधायक भी अपनी कमजोर स्थिति को देखते हुए भाजपा में शामिल होने को तैयार बैठे है। कांग्रेस एवं लोकदल के निराश नेता भी भाजपा में आने की तैयारी कर रहे है परन्तु उन्हें ठोस जमीन नही मिल रही है।
इतनी बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओँ के आने से भाजपा नेतृत्व के लिए भी संकट खड़ा होता जा रहा है। इनके साथ ही भाजपा ने जातीय समीकरण साधने के लिए कुछ छोटे दलों से गठबंधन किया है जिन्हे भी टिकट में समायोजित करना है। टिकटों के बढ़ते दबाव को देखते हुए भाजपा ने यह साफ कर दिया है कि गठबंधन वाले दलों के प्रत्याशियों को भी कमल के चुनाव चिन्ह पर भी लड़ना होगा। इसके साथ ही दूसरे दलांे के बड़े नेताआंे को भी अब टिकट देने की अनिवार्य शर्ते भाजपा नेतृत्व मानने को तैयार नही हो रहा है। इन नेताओं को भी वही से टिकट दिया जाएगा, जहां से भाजपा का सक्षम उम्मीदवार नही होगा। भाजपा नेतृत्व को यह भय भी सता रहा है कि दूसरे दलों से आने वाले कई नेता वैचारिक तौर पर कभी भी पलटी मार सकते है, इसलिए किसी को भी महत्वपूर्ण स्थान पर अभी तक नही रखा गया है जबकि संगठन की नयी कमेटी गठित होने पर कई नेता अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। यहां तक कि कुछ नेताओं ने मुख्यमंत्री घोषित किये जाने की भी चर्चा मीडिया में करा दी। दूसरे दलों के कई बड़े नेताओं के जातीय समीकरण को भी लेकर भाजपा में खींचतान चल रही है।
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1st September, 2016