राम गोपाल की कटार...
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विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ:- प्रदेश के सबसे बड़े सियासी मुलायम परिवार का कलह फिर से उभरने लगा है। इस पारिवारिक विवाद में खलनायक की तरह उभरे राम गोपाल यादव ने नोएडा से इटावा तक जुलूस निकाल कर जो शक्ति प्रदर्शन किया, उससे यादवी कलह गंभीर रूप लेते दिख रहा है। इस प्रदर्शन के बाद राम गोपाल ने जिस प्रकार प्रधानमंत्री के रूप में अखिलेश यादव का नाम उछाला, उसे परिवार में नये कलह के रूप में देखा जा रहा है। इस पारिवारिक विवाद में मुलायम सिंह का नाम लेकर तलवारे खींचने वाले शिवपाल एवं अखिलेश (चाचा-भतीजा) दोनों को ही संगठन से सरकार में नुकसान भुगतना पड़ा है। इससे मुलायम की दबंग छबि भी प्रभावित हुई है। राम गोपाल का यह नया तुर्रा राजनीतिक कटार के रूप में देखा जा रहा है।
लखनऊ:- प्रदेश के सबसे बड़े सियासी मुलायम परिवार का कलह फिर से उभरने लगा है। इस पारिवारिक विवाद में खलनायक की तरह उभरे राम गोपाल यादव ने नोएडा से इटावा तक जुलूस निकाल कर जो शक्ति प्रदर्शन किया, उससे यादवी कलह गंभीर रूप लेते दिख रहा है। इस प्रदर्शन के बाद राम गोपाल ने जिस प्रकार प्रधानमंत्री के रूप में अखिलेश यादव का नाम उछाला, उसे परिवार में नये कलह के रूप में देखा जा रहा है। इस पारिवारिक विवाद में मुलायम सिंह का नाम लेकर तलवारे खींचने वाले शिवपाल एवं अखिलेश (चाचा-भतीजा) दोनों को ही संगठन से सरकार में नुकसान भुगतना पड़ा है। इससे मुलायम की दबंग छबि भी प्रभावित हुई है। राम गोपाल का यह नया तुर्रा राजनीतिक कटार के रूप में देखा जा रहा है।
अभी तक सपा खेमे में मुलायम परिवार का राजनीतिक विचारक कहे जाने वाले राम गोपाल पहली बार अलग-थलग पड़े है। राम गोपाल काफी दिनों से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पक्षधर बताये जाते थे। प्रदेश में सपा की सरकार बनने पर पहले मुलायम राज में भी राम गोपाल एवं अमर सिह के बीच तनाव का मुद्दा नोएडा का भूमि कारोबार था। यही वजह रही कि अमर सिंह की वापसी को लेकर राम गोपाल विरोध करते रहे। बताया जाता है कि नोएडा के कारोबार में अपना बर्चस्व रखने के लिए राम गोपाल मुख्यमंत्री को अपने पाले में रखने के हर संभव प्रयास करते थे। यही वजह रही कि जैसे ही प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश को हटाया गया, राम गोपाल खुलकर अखिलेश के पक्ष में आ गये। जबकि अखिलेश को हटाया जाने का पत्र राम गोपाल के ही हस्ताक्षर से जारी हुआ। इसके बाद अमर सिंह का महासचिव बनाये जाने के निर्णय पर सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने किया।
प्रधानमंत्री के रूप में अखिलेश का नाम राम गोपाल ने ऐसे समय में उठाया जबकि इसको लेकर मुलायम सिंह यादव लगातार अपनी अन्तिम इच्छा के रूप में व्यक्त करते आ रहे है। कई बार सार्वजनिक मंचों से मुलायम ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नही बनाओगे। राम गोपाल कभी इस तरह मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाये जाने के लिए खुलकर सामने नही आये जबकि उनके रहते ही अखिलेश को पदासीन करने के ताने-बाने बुनने लगे। राम गोपाल ने यह सब कुछ इसलिए किया ताकि उनके दमाद अरविन्द यादव तथा अन्य निकाले गये युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी में दोबारा लिया जा सके।
आजमगढ़ की जनसभा स्थगित करने के निहितार्थ-
सपा परिवार के इन विवादों के तनाव के चलते आजमगढ़ में 6 अक्टूबर को घोषित मुलायम सिंह यादव की जनसभा को स्थगित कर दिया गया। सपा में इसको लेकर यह चर्चा जोरों पर है कि आखिर यह रैली स्थगित कराने के पीछे कारण क्या था आैर उसकी साजिश किसकी है। आजमगढ़ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का चुनाव क्षेत्र भी है। ऐसे में पारिवारिक विवाद के बाद भी मुलायम सिह से सहानुभूति रखने वालों की भारी भीड़ जुटती। वैसे भी आजमगढ़ सपा मुखिया का ऐसा राजनीतिक गढ़ है जहां से वह हमेशा अपनी पहली रैली कर शक्ति प्रदर्शन करते रहे है। जातीय समीकरण में भी आजमगढ़ यादव-मुस्लिम विरादरी का गढ़ है जो मुलायम की राजनीति के जनाधार के मुख्य पहलू है। विवादों के बाद भी आजमगढ़ की रैली तैयारियों को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल तथा आजम खां की बैठक हो चुकी थी। शिवपाल ने अलग से तैयारी समीक्षा की थी। बताया जाता है कि कुछ दिनों पहले आजमगढ़ में अमर सिंह का पुतला फूंका गया। इसकी पुष्टि मंत्री बलराम यादव ने भी की।
सपा परिवार के इन विवादों के तनाव के चलते आजमगढ़ में 6 अक्टूबर को घोषित मुलायम सिंह यादव की जनसभा को स्थगित कर दिया गया। सपा में इसको लेकर यह चर्चा जोरों पर है कि आखिर यह रैली स्थगित कराने के पीछे कारण क्या था आैर उसकी साजिश किसकी है। आजमगढ़ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का चुनाव क्षेत्र भी है। ऐसे में पारिवारिक विवाद के बाद भी मुलायम सिह से सहानुभूति रखने वालों की भारी भीड़ जुटती। वैसे भी आजमगढ़ सपा मुखिया का ऐसा राजनीतिक गढ़ है जहां से वह हमेशा अपनी पहली रैली कर शक्ति प्रदर्शन करते रहे है। जातीय समीकरण में भी आजमगढ़ यादव-मुस्लिम विरादरी का गढ़ है जो मुलायम की राजनीति के जनाधार के मुख्य पहलू है। विवादों के बाद भी आजमगढ़ की रैली तैयारियों को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल तथा आजम खां की बैठक हो चुकी थी। शिवपाल ने अलग से तैयारी समीक्षा की थी। बताया जाता है कि कुछ दिनों पहले आजमगढ़ में अमर सिंह का पुतला फूंका गया। इसकी पुष्टि मंत्री बलराम यादव ने भी की।
अमर सिंह के पुतला फूंके जाने की घटना के बाद ही आजमगढ़ की रैली स्थगित करने का निर्णय लिया गया। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि पार्टी में गुटबाजी को लेकर रैली में किसी तरह के बड़े बवाल से बचने के लिए स्थगित करने का निर्णय लिया गया। सरकार आैर संगठन के संघर्ष के बीच शिवपाल आैर अखिलेश समर्थक जिस प्रकार लखनऊ में आमने-सामने आ गये थे, उससे मुलायम सिंह काफी विचलित हुए थे। सुरक्षा बलों ने भारी मशक्कत के बीच पिछले दरवाजे से मुलायम सिह को पार्टी कार्यालय से निकाल कर घर पहुंचाया था। अखिलेश समर्थकों ने वहां तक पीछा किया जिससे घबड़ाये मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को फोन कर शक्ति प्रदर्शन रोकने को कहा। अखिलेश ने पिता की बात अवश्य मान ली परन्तु अपनी नाराजगी नही छिपा पाये। यही वजह रही कि मुलायम सिंह यादव को अपने चुनाव क्षेत्र में भी किसी भारी गड़बड़ी की आशंका हुई।
राजनीतिक विरासत की जंग-
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव परिवार इस समय चल रहा विवाद राजनीतिक विरासत के चरम पर पहुंच गया है। इस विवाद से साफ हो गया है कि अब परिवार मुलायम का वह दबदबा नही रह गया कि सभी उनकी बात कान बंदकर सुन ले। मुलायम के निर्णयों पर परिवार में ही अंगुलिया उठने लगी है। परिवार के सदस्य यह मानकर चल रहे है कि मुलायम सिंह यादव की यह अन्तिम राजनीतिक पारी है आैर उसके बाद दूसरी पीढ़ी को बागडोर संभालनी है। यही वजह है कि दशको तक भाई मुलायम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले शिवपाल यादव अपने को राजनीतिक उत्तराधिकारी मान कर चल रहे है।
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव परिवार इस समय चल रहा विवाद राजनीतिक विरासत के चरम पर पहुंच गया है। इस विवाद से साफ हो गया है कि अब परिवार मुलायम का वह दबदबा नही रह गया कि सभी उनकी बात कान बंदकर सुन ले। मुलायम के निर्णयों पर परिवार में ही अंगुलिया उठने लगी है। परिवार के सदस्य यह मानकर चल रहे है कि मुलायम सिंह यादव की यह अन्तिम राजनीतिक पारी है आैर उसके बाद दूसरी पीढ़ी को बागडोर संभालनी है। यही वजह है कि दशको तक भाई मुलायम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले शिवपाल यादव अपने को राजनीतिक उत्तराधिकारी मान कर चल रहे है।
दूसरी तरफ अखिलेश यादव बड़ा पुत्र होने आैर मुख्यमंत्री बनने के बाद अब वही अपने को मुलायम के राजनीतिक उत्तराधिकारी तथा यादवों का नेता मान रहे है। शिवपाल के समर्थन में उनकी भाभी तथा मुलायम सिंह की पत्नी का भी अप्रत्यक्ष हाथ बताया जा रहा है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि तमाम विरोधों के बाद 2012 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने पर मुलायम सिंह यादव ने अपना पद छोड़ अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया परन्तु चार वर्ष जिस प्रकार उन्हें विश्वास में लिए बगैर अचानक प्रदेश सपा अध्यक्ष पद से हटाया गया, उसमें कही आैर का बड़ा दबाव है। अखिलेश का कभी भी अपनी विमाता से संबंध अच्छा नही रहा है। मुलायम की दूसरी पत्नी भी अपने पुत्र को राजनीति में उतारना चाहती है। उनकी बहू अर्पणा पहले से राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय है। ऐसे में शिवपाल का साथ ही इस परिवार को रास आ रहा है। चर्चा यह है कि शिवपाल के नये पदाधिकारियों में मुलायम के दूसरे पुत्र प्रतीक यादव भी शामिल होगे। यही वजह है कि परिवार की इस राजनीतिक विरासत में एक तरफ राम गोपाल यादव तथा अखिलेश यादव है तो दूसरी तरफ शिवपाल आैर उनकी भाभी साधना एवं प्रतीक है।