सपा का जातीय समीकरण, अब भी सुलग रहा है यादवी कलह... ठाकुरों की हिकारत, पंडितों को भिक्षापात्र
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विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ: विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी यादवी परिवार को यह एहसास हो गया कि सियासी राजनीति में यादव अन्य जातियों से अलग-थलग पड़ गया है। यही नही आये दिन जिस प्रकार से समीकरण बदल रहे है, वैसे में मुस्लिम कभी भी बेमौसम बरसात की तरह पाला बदल सकता है। ऐसे में चुनावी माहौल को थोड़ा नरम करने के लिए यादवी परिवार ने मंत्रिमंडल विस्तार कर अन्य जातियों को भी साधने की कोशिश की। मंत्रिमंडल विस्तार की यह कवायद उस समय हुई जब परिवारकी कलह सड़कों पर आमने-सामने आ गयी थी आैर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को भी अपने चपेट में ले लिया। मंत्रिमंडल विस्तार से इस कलह को भी छिपाने की कोशिश की गयी परन्तु विभाग बंटवारे ने बुझी राख की चिनगारी को उभार दिया।
ठाकुरों की हिकारत....
ठाकुरों की हिकारत--
अखिलेश सरकार में मात्र 4 ठाकुर मंत्री है। यह भी सरकार में अपने को वर्षो से उपेक्षित ही नही महसूस कर रहे है बल्कि कुंठा में जी रहे है। समय-समय पर ये मंत्री तथा इनके समर्थक अपनी उपेक्षा का बखान भी करते है। इस सच्चाई से अवगत होते हुए भी नये विस्तार में किसी ठाकुर मंत्री को न तो शामिल किया गया आैर नही विभाग बंटवारे में उन्हें मुख्यमंत्री सभी ठाकुरों से नाराज है आैर उन्हें अपने प्रति तथा पार्टी के प्रति बफादार नही मानते। इनका कहना है कि अखिलेश ठाकुरों को दगाबाज राजनेता कहते है। एक समय सपा में सबसे ताकतवर नेताओं में गिने जाने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैय्या वर्षो से केवल लालबत्ती तक ही सीमित होकर रह गये है। खाद्य एवं रसद विभाग छिने जाने के बाद राजा भैय्या वर्षो से न तो कार्यालय गये आैर नही मंत्रिमंडल की बैठक में ही शामिल हुए। यह स्थिति तब है जबकि सपा में केवल राजा भैय्या ही ऐसे है जिनकी प्रदेश के ठाकुरों में अलग पहचान है।
कहा जाता है कि मुख्यमंत्री दबंग छवि को लेकर राजा भैय्या से नाराज रहते है। इसके विपरीत यही मुख्यमंत्री विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह की अधिकारियों से मारपीट करने, जमीनों पर कब्जा करने तथा अवैध खनन की कार्रवाई की तमाम शिकायतों के बाद भी हमेशा दूसरों से तरजीह देते है। एक बार विनोद को मंत्रिमंडल से हटाकर फिर से शामिल किया गया। इसी प्रकार अरविन्द सिंह गोप भी मुख्यमंत्री की पसन्द माने जाते है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री ने गोप को ग्राम विकास जैसा विभाग देने के बाद भी सपा का प्रदेश महामंत्री बना दिया। सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनते ही शिवपाल ने गोप को महामंत्री पद से हटा दिया। सपा में गोप की पहचान अमर सिंह के निकटस्थों में थी परन्तु उनके बाहर जाते है गोप ने अखिलेश का दामन थाम लिया। गोप आैर विनोद की हालत यह है कि इनका राजनीतिक कैरियर अपने विधानसभा क्षेत्र तक ही सीमित है।
पंडितों को भिक्षापात्र...
अब सपा में बेनी वर्मा के आने के बाद बाराबंकी में गोप की अहमियत वैसे भी खत्म हो गयी है। पर्यटन मंत्री ओम प्रकाश सिंह सपा के सबसे पुराने आैर विश्वसनीय नेता है परन्तु मुलायम से लेकर अखिलेश सरकार में कभी भी ओम प्रकाश सिंह को उनकी राजनैतिक हैसियत के हिसाब से मंत्रिमंडल में विभाग नही दिया गया। राज्यमंत्री राजीव कुमार सिंह भी पार्टी में वर्षो से उपेक्षित ही पड़े हुए है। यही नही खनन घोटाले के आरोपों में घिरे गायत्री प्रजापति को तो दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया परन्तु जमीन कब्जे के आरोपों से घिरे ठाकुर मंत्री राजकिशोर सिंह को दोबारा मंत्री नही बनाया गया।
पंडितों को भिक्षापात्र--
समाजवादी पार्टी में ब्राह्मण विरादरी के मंत्रियों की हैसियत भिक्षापात्र लेकर द्वार-द्वार भटकने की है। इन मंत्रियों को जब चाहा निकाल बाहर किया आैर जब हुआ मंच पर खड़ा कर पंडितों का हिमायती बता दिया। नये मंत्रिमंडल विस्तार में निकाले गये ब्राह्मण नेताओं को दोबारा भिक्षापात्र पकड़ा कर चुनावी मैदान में जाने को कहा गया है। पुराने समाजवादी ब्रह्माशंकर त्रिपाठी की राजनीतिक हैसियत खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग से आगे नही बढ़ी। अपराधी छवि के मनोज पांडेय कभी समाजवादी नही रहे परन्तु सपा का वह ब्राह्मण चेहरा है।
विभाग बंटवारे से भड़की चिनगारी...
पहले मंत्रिमंडल से निकाल आैर अब चुनाव से पहले मनोज तथा शिवाकांत ओझा को भिक्षा पात्र देकर सपा ने घर-घर जाने का आदेश दिया है। मनोज को तो पुराना इलेक्ट्रानिक्स विभाग दिया गया है परन्तु शिवाकांत ओझा को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग देकर मुख्यमंत्री ने उनकी स्वच्छ छवि को सम्मान दिया है। इसके पहले शिवाकांत ओझा के पास प्राविधिक शिक्षा विभाग था। शिवाकांत ने अपने एक सहयोगी मंत्री पर भ्रष्टाचार का मामला उठाया था जो सपा नेतृत्व को रास नही आया था।
शारदा प्रताप शुक्ला पुराने समाजवादी....
शारदा प्रताप शुक्ला पुराने समाजवादी....
शारदा प्रताप शुक्ला पुराने समाजवादी है परन्तु उन पर भी अवैध भूमि कब्जाने का आरोप है। ऐसे में लखनऊ में वह सपा नेतृत्व की दबंग पहचान बने है। अभिषेक मिश्रा नौकरशाह के बेटे है आैर अंग्रेजी अच्छी होने के नाते उनकी राजनीतिक स्थिति मुख्यमंत्री के दुभाषिये के ही स्तर की है। विजय मिश्र एवं तेज नारायण पाण्डेय को भी राज्यमंत्री के रूप में भिक्षापात्र ही मिला है। विजय को विभाग भी धर्माथ कार्य ही मिला है जबकि तेज नारायण को बाहर निकाल कर दोबारा शामिल किया गया।
विभाग बंटवारे से भड़की चिनगारी--
विधानसभा चुनाव से पहले जब अखिलेश मंत्रिमंडल का आखिरी विस्तार हुआ तो कई दिनों से कलह में डूबे यादवी परिवार ने यह जताने का प्रयास किया कि अब सब कुछ शान्त हो गया है आैर सरकार तथा संगठन एक साथ मिलकर चुनावी तैयारी में जुटेगा। इसके बाद विभाग बंटवारे को लेकर शान्त हुई कलह की चिनगारी फूट पड़ी। चुनाव में जाने से पहले अपनी स्वच्छ छवि बनाने के चक्कर में पड़े मुख्यमंत्री ने खनन घोटाले के आरोपों से घिरे गायत्री प्रजापति को भी मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
उसके पहले बाहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय पर वीटो लगाकर अखिलेश ने अपनी ताकत तथा छवि के प्रति जागरूकता को दर्शाया था। मुख्यमंत्री की यह पहले आगे नही चल पायी आैर यादवी परिवार की गुटबाजी के आगे झूकते हुए उन्हें गायत्री को दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल करने को विवश होना पड़ा। गायत्री को दोबारा खनन विभाग देने के दबाव को लेकर मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कई दिनों तक विभाग बंटवारे का काम रूका रहा। यही नही कई जगह निष्ठा दिखाने वाले कई मंत्रियों को भी मुख्यमंत्री ने उनकी हैसियत दिखा दी।
यासर शाह को कमतर विभाग देकर उन्हें कई जगह निष्ठा बदलने की सजा दी गयी। इसी प्रकार उपर से दबाव दिलाकर मंत्रिमंडल में प्रोन्नति पाने की आस लगाये राज्यमंत्री नितिन अग्रवाल को भी मुख्यमंत्री ने उनके दायरे में बांध कर रख दिया। नितिन सपा महासचिव आैर वरिष्ठ नेता नरेश अग्रवाल के बेटे है। प्रदेश की राजनीति में नरेश अग्रवाल दबाव की राजनीति के माहिर शिकारी माने जाते है। इन्हें केवल राजनाथ सिंह ने मंत्रिमंडल से बरखास्त कर दबाव की राजनीति करने की हैसियत बतायी थी। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने अभिषेक मिश्रा, शारदा प्रताप शुक्ला, रविदास मेहरोत्रा तथा नरेन्द्र वर्मा की पदोन्नति कर अपने प्रति वफादार रहने का साफ संकेत दे दिया। इस प्रकार मंत्रिमंडल विस्तार से लेकर विभाग बंटवारे में समाजवादी पार्टी आैर यादवी परिवार में जिस प्रकार कलह खुलकर सामने आया है उससे साफ है कि यह राजनीतिक उठापटक आगे तक जाएगी।