राम - अब मंदिर नही संग्रहालय
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विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
लखनऊ। राजनीति तो छलावा है। इसीलिए सत्ता के लिए 'साम-दाम- दण्ड- भेद' की नीति अनिवार्य बनायी गयी है। आम जन जब इसका उपयोग करता है तो वह दण्ड का भागी होता है परन्तु सत्तासीनों के लिए यह आदर्श कार्य प्रणाली का हिस्सा माना जाता है। इसीलिए राजनीतिज्ञों आैर सत्ता नसीनों के लिए धर्म, सामाजिक नैतिकता आैर वादा खिलाफी को कोई गुनाह नही माना जाता है। सत्ता के लिए सारे उपाय किये जाते है। ऐसा नही होता तो "राम" के नाम पर दो सांसदों से केन्द्र की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा तीन दशकों बाद भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के स्थान पर संग्रहालय का "लालीपाप" पकड़ाने को बाध्य नही होना पड़ता।
शायद यह सब कुछ...
शायद यह सब कुछ...
शायद यह सब कुछ "नीति आयोग" की पांच पंचवर्षीय येाजनाओं का खाका है जिसे दीर्घकालीन महायोजना का नाम दिया जा सके। मंदिर निर्माण का सपना देखते हुए महन्त परमहंस आैर अशोक सिंघल "रामलोक" सिधार गये आैर मस्जिद के पैरोकार हासिम अंसारी भी अन्तिम निद्रा में चले गये। महन्त आैर अशोक तो पुर्नजन्म ले सकते है क्योंकि उनकी आत्मा अभी भूलोक में ही भटक रही होगी। मोक्ष प्राप्ति का लक्ष्य हासिल ही नही कर पाये। अधूरी आंस लिए वे भटक रहे है। इनके विपरीत मुद्दई हासिम अंसारी को तो दूसरा जन्म भी नही मिलने वाला है आैर उनके पैरोकार तो जिन्दा रहने तक राजनीतिक रोटियां सेंकेगे ही। इसी प्रकार महन्त आैर अशोक सिंघल की अस्थि कलश तथा चित्रों पर हर वर्ष माल्यार्पण कर भाजपाई एवं विहिप वाले भी मंदिर निर्माण का काम छोड़ राजनीतिक नारे लगाते रहेंगे। इन नारों को सुन ये दोनों ही जीवात्माओं का प्रतीक भी भीषण कोलाहल से विक्षिप्त सा होने की कगार पर पहुंच गया है।
सूनी अयोध्या...
सूनी अयोध्या...
भारतीय समाज की कहावत है- "बिन घरनी-घर सूना"। अयोध्या का हाले बयां भी कुछ ऐसा ही है। वैसे तो अयोध्या का मसला धार्मिक रूप से आजादी के बाद 1948 में ही अपना स्वरूप दिखाने लगा था जब हिन्दू मान्यताओं के अनुसार विवादित स्थल पर राम लला की मूर्ति प्रस्फुटित हुई। उस समय तक मुसलमान उक्त स्थल को बाबरी मस्जिद के नाम से पुकारते थे जबकि हिन्दू राम जन्म स्थल कहते थे। विवाद के कारण मस्जिद कहलाने के बाद भी कभी वहां पर मुस्लिम समुदाय नमाज नही पढ़ता था। रामलला की मूर्ति के प्राक्ट्य ने हिन्दू जनमानस में जो धार्मिक भाव प्रस्फुटित किया, वही से यहां पर पूजा-अर्चना शुरू हो गयी। पूजा के विवाद से प्रशासन ने रामलला के प्राक्ट्य स्थल पर ताला लगा दिया परन्तु बाहरी चबूतरे पर पूजा की अनुमति जारी रही। यही से विवादित स्थल के स्वामित्व को लेकर विवाद शु डिग्री हुआ। किसी धार्मिक स्थल के भूमि स्वामित्व को लेकर इतना लंबा सिविल केस विश्व के किसी देश में नही देखने को मिलता है। वर्ष 1986 में मंदिर का ताला खुलने के बाद यह मामला आन्दोलन का रूप लेता गया। उसके बाद का इतिहास सभी जानते है। भाजपा की तीन राज्यों में पहली बार 1991 में सरकार राम के नाम पर बनी परन्तु 1992 में विवादित स्थल ढहाने के बाद यह सरकारे तो भंग हो गयी परन्तु मंदिर निर्माण का नारा चलता रहा। केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार में मंदिर निर्माण से यह कहकर भाजपा पिन्ड छुड़ाती रही कि उसके लिए जनता का पूर्ण बहुमत नही मिला है। अब मोदी के नाम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के ढाई साल बाद भी भाजपा मंदिर निर्माण नही संग्रहालय का प्रस्ताव लेकर अयोध्या पहुंची है।
अब तो यही हश्र है कि रामराज्य के शुरूआती दौर में ही माता सीता को अयोध्या से निष्कासित कर दिया गया था। यह घटना अयोध्या वासियों की शंका के कारण प्रकट हुई। तभी से अयोध्या सूनी है। राजा राम का प्रताप भी अयोध्यावासियों को खुशहाली का जीवन नही दे पाये। ऐसे में राम के नाम पर भाजपा जब बार-बार जनता के बीच अविश्वास का भाव पैदा करेगी तो उन्हें भगवान राम भी माफ नही करेंगे। राम ने भाजपा को मंदिर निर्माण का निमित्त तो बना दिया परन्तु बार -बार भाजपा नेतृत्व बहाने से मामले को टालता जा रहा है। मंदिर आंदोलन के कारण तीन दशकों से अयोध्या का कारोबार मंदा पड़ा है। अयोध्या शहर के विकास के लिए इन वर्षो में दर्जनों योजनाएं बनी परन्तु टूटी सड़के आैर उजड़ी, सूनसान अयोध्या के अलावा यहां के निवासियों तथा देश-विदेश से आने वाले भक्तों को खुशहाली का राग नही सुनायी देता।
बजरंगी की दहाड़--
मंदिर की बात छोड़ संग्रहालय के प्रस्ताव के आते ही राम मंदिर आन्दोलन के बजरंगी ( विनय कटियार) ने पार्टी नेतृत्व की नीतियों के खिलाफ खुलकर मोर्चा कहते हुए दहाड़ लगायी कि अब मंदिर के अलावा कुछ भी मंजूर नही। बजरंगी के सुर में सुर मिलाते हुए दक्षिण भारतीय स्वामी ने भी तत्काल मंदिर निर्माण का कार्य छोड़ने का राग अलापा। संग्रहालय का प्रस्ताव लेकर अयोध्या पहुंचेे केन्द्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने अयोध्या के विकास आैर पहचान की बात अवश्य की परन्तु मंदिर निर्माण के मसले पर कोई स्पष्ट जवाब नही दे पाये। अयोध्या पर भाजपा के रूख को देखते हुए उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने "अन्तर्राष्ट्रीय थीम पार्क" बनाने की घोषणा कर दी।
आखिरकार भाजपा नेतृत्व को यह समझ में क्यों नही आ रहा है कि अयोध्या में यदि राम का मंदिर ही नही होगा तो वहां पर लोग क्या घूमने जाएगे। अयोध्या में राम के दर्शन करने लोग भक्तिभाव से पूजा-अर्चना करने जाते है न कि पिकनिक मनाने। अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण के बिना अब केन्द्र का संग्रहालय आैर राज्य सरकार का अन्तर्राष्ट्रीय थीम पार्क तो पिकनिक स्पाट की ही तरह से होगा न कि भक्ति भाव का केन्द्र। पिकनिक मनाने लोग से पहाड़ों की वादियों आैर जंगलों में जाते है कि किसी धार्मिक स्थल पर।
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लखनऊ। राजनीति तो छलावा है। इसीलिए सत्ता के लिए 'साम-दाम- दण्ड- भेद' की नीति अनिवार्य बनायी गयी है। आम जन जब इसका उपयोग करता है तो वह दण्ड का भागी होता है परन्तु सत्तासीनों के लिए यह आदर्श कार्य प्रणाली का हिस्सा माना जाता है। इसीलिए राजनीतिज्ञों आैर सत्ता नसीनों के लिए धर्म, सामाजिक नैतिकता आैर वादा खिलाफी को कोई गुनाह नही माना जाता है। सत्ता के लिए सारे उपाय किये जाते है। ऐसा नही होता तो "राम" के नाम पर दो सांसदों से केन्द्र की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा तीन दशकों बाद भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के स्थान पर संग्रहालय का "लालीपाप" पकड़ाने को बाध्य नही होना पड़ता।
शायद यह सब कुछ...
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