राम - अब मंदिर नही संग्रहालय
शायद यह सब कुछ...
सूनी अयोध्या...
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शायद यह सब कुछ "नीति आयोग" की पांच पंचवर्षीय येाजनाओं का खाका है जिसे दीर्घकालीन महायोजना का नाम दिया जा सके। मंदिर निर्माण का सपना देखते हुए महन्त परमहंस आैर अशोक सिंघल "रामलोक" सिधार गये आैर मस्जिद के पैरोकार हासिम अंसारी भी अन्तिम निद्रा में चले गये। महन्त आैर अशोक तो पुर्नजन्म ले सकते है क्योंकि उनकी आत्मा अभी भूलोक में ही भटक रही होगी। मोक्ष प्राप्ति का लक्ष्य हासिल ही नही कर पाये। अधूरी आंस लिए वे भटक रहे है। इनके विपरीत मुद्दई हासिम अंसारी को तो दूसरा जन्म भी नही मिलने वाला है आैर उनके पैरोकार तो जिन्दा रहने तक राजनीतिक रोटियां सेंकेगे ही। इसी प्रकार महन्त आैर अशोक सिंघल की अस्थि कलश तथा चित्रों पर हर वर्ष माल्यार्पण कर भाजपाई एवं विहिप वाले भी मंदिर निर्माण का काम छोड़ राजनीतिक नारे लगाते रहेंगे। इन नारों को सुन ये दोनों ही जीवात्माओं का प्रतीक भी भीषण कोलाहल से विक्षिप्त सा होने की कगार पर पहुंच गया है।
सूनी अयोध्या...