सांई - धार्मिक वर्णशंकर
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स्लाइडशो दोबारा देखेंवैदिक काल के मध्य में ही ऋषि याज्ञवलक्य ने "वर्ण शंकर" शब्द की अवधारणा दी। जब परस्पर प्रतिकूल गुण-दोेष के लोगों का आपस में संयोग होता है तो उसे वर्ण शंकर कहते है। प्रतिकूल गुण-दोष के संयोग का व्यवहार कभी भी स्थायी या शान्तिपूर्ण नही होता है। रसायन शास्त्र में विभिन्न रसायानों के मिश्रण में इस अवधारणा की जानकारी तथा उसके परिणाम का प्रभाव परिलक्षित होता है। रावण आैर उसके पुत्र मेघनाद की प्रकृति तामसी आैर हिंसक थी जबकि उनकी पत्नियां सात्विक एवं शान्ति प्रकृति की थी। यही वजह रही कि इन दोनों संयोगों में आपसी समझौता होते भी जीवन भर किसी विषय पर एका नही रही। राम आैर सीता के संयोग में यही नही दिखता है। हर झंझावात में दोनों एक साथ निष्ठा, प्रेम आैर समर्पण के साथ है। दोनों का एक दूसरे के साथ त्याग आैर समर्पण दुर्लभ है। कृष्ण की 8 पटरानियां है परन्तु इन सभी में इतना संयोग है कि कभी कलह नही उपजती जबकि यह सभी अलग-अलग प्रकृति की है परन्तु कृष्ण का व्यापक स्वरूप सबको आत्मसात कर लेता है।