मुलायम-मायावती के काले आंसू, काले धन पर विफरे सपा,बसपा आैर कांग्रेसी
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विजय शंकर पंकज (यूरिड मीडिया)
गरीब-किसान का नाम लेकर आंसू पोछ रहे भ्रष्ट नेता
गरीब-किसान का नाम लेकर आंसू पोछ रहे भ्रष्ट नेता
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक से कुछ घंटे पहले ही झांसी की रैली में भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने पौने दो लाख करोड़ रूपये की काली कमायी की परन्तु वर्तमान समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वादों के बाद भी इस भ्रष्टाचार की कोई जांच नही करायी। कारण साफ है कि भ्रष्टाचार के मामले में बसपा-सपा एक ही सिक्के के दो पहलू है। सपा-बसपा नेता भ्रष्टाचार के मामले में एक दूसरे की मदद करते है। कुछ इसी तरह का मामला में केन्द्र की कांग्रेस शासित यूपीए सरकार की भी थी जिसे 10 वर्षो तक सपा-बसपा ने समर्थन दिया। अब यही कारण है कि 500 आैर 1000 के नोट बंद किये जाने से घबड़ाये राजनेताओं के बोल एक से ही निकल रहे है जबकि विपक्ष के ही अन्य इमानदार नेता नीतीश कुमार तथा नवीन पटनायक मोदी सरकार के इस निर्णय की प्रशंसा कर रहे है। कांग्रेस के राहुल गांधी अौर सपा के अखिलेश यादव को काले धन पर लगाम लगाने पर गरीब-किसानों की परेशानी नजर आ रही है। काले धन पर गुरूवार को मुलायम आैर मायावती के बयान से उनकी पीड़ा खुलकर सामने आ गयी। इन नेताओं को अपनी काली कमाई को छिपाने का रास्ता नही दिख रहा है। इस समय में कुछ आैर समय देने की मांग कर ये राजनेता भ्रष्टाचारियों, हवाला कारोबारियों तथा आतंकियों की मदद करने की राह निकालने की कोशिश कर रहे है।
भ्रष्टाचार की राजनीतिक तिकड़ी--
केन्द्र से लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछले लगभग 2004 से 2014 के बीच सरकारों ने भ्रष्टाचार के सारे आयाम तोड़ दिये। केन्द्र की यूपीए सरकार ने विश्व विख्यात अर्थशास्त्री आैर ईमानदार मनमोहन सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़ दिये। इस सरकार में दर्जनों ऐसे घोटाले सामने आये जिसमें सभी में एक लाख करोड़ से ज्यादा केे घोटाले किये गये। सरकार के मद में डूबी यूपीए सरकार ने उस समय के महानियन्त्रक एवं लेखाकार की रिपोर्ट को भी कूडेदान में डालकर अपनी मनमानी करती रही। कोयला, खनन, ऊर्जा, संचार तथा रक्षा सौदे की दलाली ने मनमोहन की ईमानदारी पर भी सवाल उठाये परन्तु वह मुकदर्शक बन कर आर्थिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते रहे। यह बड़े घोटाले व्यापक पैमाने पर चल रही रहे थे कि सोनिया गांधी के दमाद के भूमि घोटाले से लेकर इन्दिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा के निर्माण तथा डीएलएफ के साथ मिलकर रियल स्टेट के घोटाले तथा हेरल्ड के शेयर घोटाले ने देश के सबसे बड़े परिवार को भी अपनी चपेट में ले लिया।
इसी अवधि में 2004 से 2007 तक मुलायम सिंह यादव सरकार, 2007 से 2012 तक मायावती सरकार तथा 2012 से अब तक अखिलेश सरकार के घोटालों ने यदुबंशी परिवार मुलायम सिंह यादव कुनबा तथा दलित के बेटी मायावती को देश के सर्वाधिक संपन्न राजनीतिज्ञों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। इन दोनों ही पार्टियों की सरकारों में खनन की अन्धाधुन्ध कमाई ने भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़ दिये। मायावती सरकार के एक दर्जन मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की हवा खा चुके है आैर अब भी उन पर तलवार लटक रही है। बसपा सरकार के खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा वर्षो तक जेल की हवा खाने के बाद अभी मुकदमे की मार झेल रहे है तो अखिलेश सरकार के खनन मंत्री रहे गायत्री प्रजापति की अवैध कमाई राजनीतिक चर्चाओं के साथ अब यदुबंशी परिवार की कलह का कारण बन गयी है। बसपा छोड़ने वाले मायावती के नजदीकियों ने आरोप लगाया कि बसपा के विधानसभा टिकट के लिए दो से पांच करोड़ रूपये की मांग की जा रही है। आरोप है कि टिकट देने के नाम पर एक वर्ष में बसपा ने लगभग 850 करोड़ रूपये की अवैध वसूली की है। बसपा ने 130 से ज्यादा जिन मुसलमानों को प्रत्याशी बनाया है, वह सभी बिल्डर, ठेकेदार तथा मांस व्यापारी है। मायावती सरकार में उनके भाई तथा अन्य परिवारी जनों के पास करोड़ों की संपदा बढ़ी तो इसी प्रकार मुलायम सिंह यादव सरकार से यदुबंशी परिवार की आय भी लगातार नयी उंचाईया छूती गयी। यही कारण है कि काले धन को लेकर राहुल से लेकर मायावती आैर अखिलेश के बोल एक ही सुर में है आैर सभी अपनी परेशानी को किसानों आैर गरीबो के नाम पर हाय-तौबा करने में लगे हुए है।
भ्रष्ट अफसरों एवं राजनेताओं को ही परेशानी--
मोदी सरकार के 500-1000 के नोट बंद करने के फैसले से आम जनता में आवश्यक आवश्यकताओं को लेकर कुछ पैनिक जरूर है परन्तु आम जन थोड़ा धैर्य रखे तो यह केवल दो-चार दिन की ही समस्या है। नये नोट तथा छोटे करेन्सी के मार्केट में आते ही इसका अपने आप समाधान हो जाएगा आैर लोग राहत महसूस करेंगे। आम जनता बैंकों में ढाई लाख रूपये तक बिना किसी हिसाब-किताब के भी जमा कर अपने धन को सफेद कर सकते है। भारत के आम मीडिल क्लास के पास भी 500-1000 के इतने पुराने नोट होना बहुत कम संभव है। कुछ घरों की गृहणियां भी इससे ज्यादा रकम नही जुटा पायी होगी। हां शादी विवाह के परिवारों में वक्त के तौर पर यह परेशानी अवश्य है। आम जनता के पास पूछे तो 10 से 20 हजार से ज्यादा की रकम नही है। हां उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होना है आैर राजनीतिज्ञ चुनाव को प्रभावित करने के लिए बड़ी संख्या में काला धन छिपाये बैठे थे। जब बसपा का टिकट 2 से 5 करोड़ रूपये में बिक रहा है तो उसके प्रत्याशी चुनाव में 10 से 20 करोड़ रूपये खर्च करते है। यह स्थिति लगभग ज्यादातर प्रत्याशियों के पास है। यही नही नेताओं की चुनाव सभाओं आैर हवाई यात्राओं पर भी करोड़ों का खर्च आता है। चुनाव प्रचार के अलावा अन्य तरीकों से भी मतदाताओं को लुभाया जाता है जिसमें काले धन का उपयोग होता है। अब ऐसे समय में पुराने नोट बंद हो जाने से काले धन का चुनाव में खर्च करने वालों पर प्रतिबंध लग गया है जिससे इनके लिए समस्या पैदा हो गयी है। सपा,बसपा एवं कांग्रेस की ही समस्या है जिसको विभिन्न बहानों से इनके नेता गरीबी के काले आंसू बहा रहे है।
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मोदी सरकार के 500-1000 के नोट बंद करने के फैसले से आम जनता में आवश्यक आवश्यकताओं को लेकर कुछ पैनिक जरूर है परन्तु आम जन थोड़ा धैर्य रखे तो यह केवल दो-चार दिन की ही समस्या है। नये नोट तथा छोटे करेन्सी के मार्केट में आते ही इसका अपने आप समाधान हो जाएगा आैर लोग राहत महसूस करेंगे। आम जनता बैंकों में ढाई लाख रूपये तक बिना किसी हिसाब-किताब के भी जमा कर अपने धन को सफेद कर सकते है। भारत के आम मीडिल क्लास के पास भी 500-1000 के इतने पुराने नोट होना बहुत कम संभव है। कुछ घरों की गृहणियां भी इससे ज्यादा रकम नही जुटा पायी होगी। हां शादी विवाह के परिवारों में वक्त के तौर पर यह परेशानी अवश्य है। आम जनता के पास पूछे तो 10 से 20 हजार से ज्यादा की रकम नही है। हां उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होना है आैर राजनीतिज्ञ चुनाव को प्रभावित करने के लिए बड़ी संख्या में काला धन छिपाये बैठे थे। जब बसपा का टिकट 2 से 5 करोड़ रूपये में बिक रहा है तो उसके प्रत्याशी चुनाव में 10 से 20 करोड़ रूपये खर्च करते है। यह स्थिति लगभग ज्यादातर प्रत्याशियों के पास है। यही नही नेताओं की चुनाव सभाओं आैर हवाई यात्राओं पर भी करोड़ों का खर्च आता है। चुनाव प्रचार के अलावा अन्य तरीकों से भी मतदाताओं को लुभाया जाता है जिसमें काले धन का उपयोग होता है। अब ऐसे समय में पुराने नोट बंद हो जाने से काले धन का चुनाव में खर्च करने वालों पर प्रतिबंध लग गया है जिससे इनके लिए समस्या पैदा हो गयी है। सपा,बसपा एवं कांग्रेस की ही समस्या है जिसको विभिन्न बहानों से इनके नेता गरीबी के काले आंसू बहा रहे है।