योगी सरकार के 6 माह, रिजल्ट सिफर- विपक्ष पर ठिकरा
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विजय शंकर पंकज, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सरकार के 6 माह पूरे होने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो दिनों में दो परिपत्र जारी किये। पिछले 10 वर्षो के बहुजन समाज पार्टी तथा समाजवादी पार्टी की सरकारों के क्रियाकलापों पर "श्वेत पत्र" जारी कर भ्रष्टाचार एवं आर्थिक तंत्र की कमजोरियों का जिक्र किया तो दूसरे दिन अपनी सरकार की 6 माह की उपलब्धियों का गुणगान किया।
विधानसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा नेताओं ने सपा-बसपा सरकारों के भ्रष्टाचार का पूरे जोर-शोर से प्रचार कर ईमानदार सरकार का वादा किया था परन्तु 6 माह के बाद भी योगी सरकार एक भी भ्रष्टाचार की रिपोर्ट पर न तो कोई एक्शन लिया और नही जांच के ही आदेश दिये गये। इस प्रकार भ्रष्टाचार मिटाने तथा दोषियों को कड़ी सजा दिलाने के वादे पर योगी सरकार विफल रही है। इसी प्रकार जनहित के निर्णयों पर भी योगी सरकार का नतीजा सिफर ही रहा है।
भाजपा का किसानों की कर्जमाफी का वादा भी मजाक बनकर ही रह गया है। यहां तक कि किसानों का जितना कर्ज नही माफ हुआ, उससे ज्यादा कर्ज माफी का प्रमाणपत्र देने में सरकारी कोष का खजाना खाली हो गया। किसानों का रोना है कि उसके उपर बैंकों का लाखों रूपये बकाया है जबकि एक पैसे से कुछ रूपये के कर्ज माफी के प्रमाण पत्र जारी किये जा रहे है। इस पर सरकार की बेशर्मी यह है कि मंत्री दलील दे रहे है कि कर्ज माफी की रकम पर ध्यान न देकर सरकार की नियत पर भरोसा किया जाना चाहिए। इन दोनों ही परिपत्रों से साफ है कि विपक्ष पर ठिकरा फोड़कर योगी सरकार अपनी सफलता को कोई ठोस प्रमाण नही दे पायी।
योगी अब अपनी ही कई घोषणाओं पर चुप्पी साध रहे है। इसमें योगी की अन्नपूर्णा योजना सरकारी फाइलो में ही दबकर रह गयी है। श्वेत पत्र में योगी सरकार ने बजटीय आकडों को ही नये तरीके से सजा कर पेश किया है। सरकार का कहना है कि वर्ष 2007 से 2017 के बीच राज्य के प्रति व्यक्ति पर कर्ज दोगुना से ज्यादा हो गया है। वर्ष 2007 में राज्य के प्रति व्यक्ति पर 7795 रूपये कर्ज था जो 2017 में बढ़कर 17097 रूपये हो गया है। इसी प्रकार राज्य सरकार वर्ष 2007 में एक लाख 34 हजार 915 करोड़ रूपये की कर्जदार थी जो मार्च 2017 में बढ़कर 3 लाख 74 हजार 775 करोड़ रूपये हो गया है।
इसी प्रकार पिछली सरकारों ने राज्य के सकल आय के तीन प्रतिशत तक कर्ज लिये जाने की सीमा को लांघकर 4 प्रतिशत तक का कर्ज लिया जो वित्तीय अनियमितताओं को बढ़ावा देता है। इसी प्रकार पूंजीगत व्यय में कमी भी सरकार के आर्थिक तंत्र की कमजोरी को दर्शाता है। इसी प्रकार योगी सरकार ने राज्य की वित्तीय स्थिति पर नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्टो को हवाला देते हुए पिछली सरकारों पर तमाम आरोप लगाये है तो सार्वजनिक उपक्रमों की खामियों एवं बढ़ते घाटे का भी उल्लेख किया गया है।
श्वेतपत्र में योगी सरकार ने केवल पिछली सरकारों की कमियों का ही उल्लेख किया है परन्तु उसमें सुधार तथा व्यवस्थागत घाटे से उबरने के कोई भी संकेत नही दिया है। यही नही भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेन्स की नीति पर चलने वाली भाजपा की योगी सरकार ने पिछली सरकारों के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 6 माह में अथवा आगे भी किसी तरह की कार्रवाई के कोई संकेत नही दिया है। इसमें सबसे बड़ा घोटाला चीनी मिलों की बिक्री, स्मारक घोटाला, रिवर फ्रंट, नोएडा-ग्रेटर नोएडा भूमि घोटाला तथा सरकारी जमीनों पर कब्जे के मसले पर अभी तक योगी सरकार चुपी साधे हुए है।
मुख्यमंत्री योगी ने सरकार के 6 माह पूरे होने पर अपनी उपलब्धियों का गुणगान किया। इसमें सबसे उपर पिछले दिनों में पुलिस मुठभेड़ में मारे गये कुछ अपराधियों का ही विशेष उल्लेख था। असल में शुरूआती तीन माह में राज्य की बिगड़ती कानून-व्यवस्था को लेकर योगी सरकार कठघरे में खड़ी हो गयी थी। सरकार ने मुख्यसचिव तथा पुलिस महानिदेशक को भी हटाया परन्तु अपराधों में कमी नही आयी। पूरब से पश्चिम तक अपराधियों के हौसले बुलन्द रहे।
दिल्ली से लखनऊ हाईवे से यात्रा करना कठिन हो गया था। इस बीच पुलिस की मुस्तैदी कुछ काम आयी और कई अपराधी मारे गये अथवा पकड़े गये। पिछले दो माह में अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई से एक शान्ति का माहौल बना है। मुख्यमंत्री ने अपनी उपलब्धियों में इसी का जिक्र करते हुए कहा कि 6 माह में अपराधियों के साथ पुलिस की 431 मुठभेड़ हुई जिसमें 17 मारे गये और 1106 गिरफ्तार हुए। इसमें 688 इनामी अपराधी थे। पुलिस मुठभेड़ में 88 जवान घायल हुए तथा एक वीरगति को प्राप्त हुआ। योगी ने कहा कि 69 अपराधियों की संपत्ति जब्त हुई है जबकि भूमाफियों की 35 करोड़ की संपत्ति जब्त हुई है।
6 माह की इन उपलब्धियों में योगी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के किसी भी मामले का उल्लेख ही नही किया। राज्य लोकसेवा आयोग की भर्तियों में धांधली की तमाम शिकायतों के बाद भी सरकार ने इसकी सीबीआई जांच न कराकर सतर्कता अधिष्ठान को जिम्मेदारी सौपा दी। जातिवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को हटा दिया गया परन्तु उनके स्थान पर अभी तक किसी की नियुक्ति नही हुई है जिससे आयोग का सारा काम ठप पड़ा है। प्रदेश के कई महत्वपूर्ण पदों पर अधिकारियों/कर्मचारियों के पद भारी संख्या में खाली पड़े है परन्तु उन पर नियुक्ति नही हो पा रहा है।
पुलिस, शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कमी से चरमरा गयी है। इस संदर्भ में सरकार अभी तक केवल आश्वासन ही देती आ रही है। असल में सरकार के पास भर्तिया करने और रोजगार देने की मंशा में ढिलाई के पीछे उनके वेतनमान देने की भी समस्या है। राज्य का आर्थिक तंत्र जार-जार हो चुका है। वर्तमान सरकारी कर्मचारियों/शिक्षकों का ही वेतनमान देना कठिन हो रहा है, उस पर नयी भर्तिया सरकार के लिए और मुसीबत ही पैदा करेगी। यही नही योगी सरकार ने गरीबों एवं श्रमिकों के लिए सस्ता भोजन उपलब्ध कराने के लिए "अन्नपूर्णा योजना" शु डिग्री करने की घोषणा की थी परन्तु इस दिशा में सरकार एक कदम भी आगे नही बढ़ी है। यही वजह है कि योगी ने 6 माह की उपलब्धियों पर इसका उल्लेख तक नही किया।
योगी सरकार का गड्ढामुक्त सड़कों का अभियान पहले ही चरण में विफल साबित हुआ है और सारे वादे कागजों पर ही सिमट कर रह गये। 6 माह में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छोड़कर ज्यादातर प्रिय मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे है। इसको लेकर मंत्रियों में आपस में भी तकरार की खबरे आयी है। हालात यह है कि योगी मंत्रिमंडल का एक बड़ा तंत्र भाजपा प्रदेश कार्यालय के एक पदाधिकारी के संकेत पर चल रहा है।
पारदर्शी व्यवस्था का दंभ भरने वाली योगी सरकर अपने पहले ही दौर में शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति पर कठघरे में खड़ी हो गयी है और इलाहाबाद उच्चन्यायालय की कड़ी टिप्पणी के बाद भी सरकार इसमें संशोधन नही कर पायी है। यही नही खदान घोटाले में सुधार के नाम पर योगी सरकार ने रोक लगा दी जिससे प्रदेश में बालू मौरंग तथा गिट्टी का काम ठप हो गया है जिससे प्रदेश में सारे निर्माण काम चार माह से बंद चल रहा है। इससे विकास ठप हुआ है और मजदूरों को बेरोजगारी का सामना करने को विवश होना पड़ा है।
इससे साफ है कि योगी सरकार 6 माह में अपने वादों से मुकरने के साथ ही कमियों को छिपाने के लिए पिछली सरकारों पर ठिकरा फोड़कर अपने दामन को बचाने का प्रयास कर रही है।
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स्लाइडशो दोबारा देखेंभाजपा का किसानों की कर्जमाफी का वादा भी मजाक बनकर ही रह गया है। यहां तक कि किसानों का जितना कर्ज नही माफ हुआ, उससे ज्यादा कर्ज माफी का प्रमाणपत्र देने में सरकारी कोष का खजाना खाली हो गया। किसानों का रोना है कि उसके उपर बैंकों का लाखों रूपये बकाया है जबकि एक पैसे से कुछ रूपये के कर्ज माफी के प्रमाण पत्र जारी किये जा रहे है। इस पर सरकार की बेशर्मी यह है कि मंत्री दलील दे रहे है कि कर्ज माफी की रकम पर ध्यान न देकर सरकार की नियत पर भरोसा किया जाना चाहिए। इन दोनों ही परिपत्रों से साफ है कि विपक्ष पर ठिकरा फोड़कर योगी सरकार अपनी सफलता को कोई ठोस प्रमाण नही दे पायी।
योगी अब अपनी ही कई घोषणाओं पर चुप्पी साध रहे है। इसमें योगी की अन्नपूर्णा योजना सरकारी फाइलो में ही दबकर रह गयी है। श्वेत पत्र में योगी सरकार ने बजटीय आकडों को ही नये तरीके से सजा कर पेश किया है। सरकार का कहना है कि वर्ष 2007 से 2017 के बीच राज्य के प्रति व्यक्ति पर कर्ज दोगुना से ज्यादा हो गया है। वर्ष 2007 में राज्य के प्रति व्यक्ति पर 7795 रूपये कर्ज था जो 2017 में बढ़कर 17097 रूपये हो गया है। इसी प्रकार राज्य सरकार वर्ष 2007 में एक लाख 34 हजार 915 करोड़ रूपये की कर्जदार थी जो मार्च 2017 में बढ़कर 3 लाख 74 हजार 775 करोड़ रूपये हो गया है।