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वसीयत की जंग में अखिलेश की जीत?

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वसीयत की जंग में अखिलेश की जीत?

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उल्टा पड़ा शिवपाल का दांव--

मैनपुरी की जनसभा में भूमाफियाओं तथा भू-कब्जा करने वालों की बात कहकर पार्टी से इस्तीफा देने की बात कहकर शिवपाल यादव ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने की बात कहकर शिवपाल ने पहली बार यह उजागर किया कि सरकार तथा यदुबंशी परिवार में सब कुछ ठीक नही चल रहा है। तब इस बात को लोगों ने हल्के में लिया था। इसके बाद माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता का सपा में विलय कराने को लेकर जिस प्रकार जिद्द दिखायी गयी, उससे यदुबंशी परिवार की कलह खुलकर सामने आ गयी। वर्ष 2012 की विधानसभा चुनाव के पहले से ही अखिलेश यादव ने अपराधी विरोधी जो अपनी छवि बनाने का प्रयास किया, उस पर समय-समय पर शिवपाल तथा उनके समर्थक टिंच करने का प्रयास कर रहे थे। सरकार बनने के बाद भी अखिलेश इस मसले पर सतर्क रहे जबकि यादवी साम्राज्य के विस्तार में वह पिता से 10 कदम आगे निकल गये। कौमी एकता के विलय के सवाल पर मुख्यमंत्री को विश्वास में लिए बगैर जिस प्रकार कार्रवाई हुई, उसके नतीजे में पहली बार अखिलेश ने कड़ा कदम उठाते हुए शिवपाल का कद घटा दिया आैर इसमें मुख्य भूमिका निभाने वाले बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बरखास्त कर दिया। सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद शिवपाल ने अखिलेश समर्थक युवा विंग के सभी पदाधिकारियों को पार्टी से बरखास्त कर दिया परन्तु रविवार को मुख्यमंत्री ने शिवपाल को मंत्रिमंडल से हटाकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया। इस प्रकार शिवपाल का पिछले तीन माह से हर राजनीतिक दांव उलटा पड़ता जा रहा है।