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सांई - धार्मिक वर्णशंकर 

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सांई - धार्मिक वर्णशंकर 

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वर्ण-प्राकृतिक गुण-दोष--

ऋगवेद के पुरूषसुक्त में "वर्ण" शब्द का पहले उल्लेख मिलता है। यह वर्ण बाद के भारतीय समाज की वर्ण-व्यवस्था की अवधारणा से अलग है। ऋगवेद का वर्ण  "प्रकृति आैर मनुष्य" के गुण-दोष को परिभाषित करने के लिए उल्लेखित किया गया है। आधुनिक विज्ञान इसे "केमिस्ट्री" कहता है परन्तु वर्ण की मूलभूत अवधारणा के समक्ष यह बहुत ही लघु है। बाद में वर्ण के गुण-दोष के आधार पर भारतीय समाज को चार वर्गो में विभाजित कर कार्य रचना निर्धारित की गयी। इसका कोई स्थायी मानक निर्धारित नही था आैर हर व्यक्ति को इसके माध्यम से स्वयं में सुधार एवं अपने प्रभाव विस्तार का अधिकार प्राप्त था। मनुष्य के मोह-लोभ ने वर्ण को अपभ्रंश कर दिया आैर इसका निकृष्ट रूप जातीय व्यवस्था में आया जिसमें दिनों दिन गिरावट आती गयी।